भारत में कोरोना वायरस का कहर तेजी से बढ़ रहा है. एक दिन में कोरोना के नए केस की संख्या साढ़े तीन लाख तक पहुंच गई है. ऐसे में वैक्सीनेशन से बही उम्मीद बची है. भारत में अगले चरण में 18 साल से अधिक उम्र के युवाओं को भी वैक्सीन लगाई जाएगी. ऐसे में वैक्सीन का प्रोडक्शन बनाने पर जोर दिया जा रहा है. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से वैक्सीन के कच्चे माल के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने का अनुरोध किया था. पूनावाला के इस अनुरोध पर अब अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा है कि बाइडन प्रशासन का पहला दायित्व अमेरिकी लोगों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना है. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि अमेरिका, भारत की जरूरतों को समझता है लेकिन अमेरिकी लोग उसकी प्राथमिकता में हैं. पहले अमेरिकी लोगों को वैक्सीन मिलनी चाहिए.
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कौन सा अमेरिकी कानून बन रहा निर्यात में रोड़ा?
दरअसल, बाइडन और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने युद्धकाल में इस्तेमाल होने वाले ‘रक्षा उत्पादन कानून’ (डीपीए) को लागू कर दिया है जिसके तहत अमेरिकी कंपनियों के पास घरेलू उत्पादन के लिए कोविड-19 टीकों और निजी सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) के उत्पादन को प्राथमिकता देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है, ताकि अमेरिका में इस घातक महामारी से निपटा जा सके.
बिडेन प्रशासन ने हाल ही में नई दिल्ली को अवगत कराया कि वह भारत की दवा आवश्यकताओं को समझता है और इस मामले पर उचित विचार करने का वादा किया है। यह देखा गया कि COVID-19 टीकों के निर्माण के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण कच्चे माल के निर्यात में मौजूदा कठिनाई मुख्य रूप से एक अधिनियम के कारण है जो अमेरिकी कंपनियों को घरेलू खपत को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर करती है.
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राष्ट्रपति जो बिडेन और उनके पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रम्प ने युद्ध-समय रक्षा उत्पादन अधिनियम (DPA) लागू किया था, जो अमेरिकी कंपनियों को घरेलू उत्पादन के लिए COVID-19 टीकों और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (PPE) के उत्पादन को प्राथमिकता देने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ता है. अमेरिका ने 4 जुलाई तक अपनी पूरी आबादी का टीकाकरण करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए Pfizer और Moderna द्वारा COVID-19 टीकों के उत्पादन में वृद्धि की है.