पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकारों और सेना के बीच का छत्तीस का आंकड़ा रहता है. दोनों के बीच कभी संबंध सहज नहीं होता है. यह कहा जाये कि पाकिस्तान की सरकार के ऊपर वहां की सेना का शासन होता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं. यह पहली बार नहीं है कि पाक सरकार और सेना के बीच मतभेद की खबरें समाने हैं. यह मतभेद तब और गहरा जाता है जब सरकार और प्रधानमंत्री कमजोर होते हैं. पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. पिछलों दिनों सेना और सरकार के बीच कई मुद्दों पर गहरे मतभेद सामने आये.
पहले प्रधानमंत्री औऱ सेना प्रमुख के बीच आईएसआई के प्रमुख की नियुक्ति को लेकर इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच मतभेद की खबरें आयीं. उसके बाद सेना द्वारा प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के खिलाफ कार्रवाई करने के इमरान खान के आदेश को मानने से इनकार कर दिया था. टीएलपी ने अप्रैल और अक्टूबर में लाहौर, कराची, इस्लामबाद सहित पाकिस्तान के कई हिस्सों में जमकर बवाल काटा था.
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सेना के इस फैसले से आहत इमरान खान सरकार अब टीएलपी के साथ किए गए समझौते को 10 दिन के अंदर सार्वजनिक करने की तैयारी में है. सोमवार को राष्ट्रीय सुरक्षा पर संसदीय समिति की कार्यवाही के दौरान इस समझौते को सार्वजनिक करने का फैसला लिया गया. अप्रैल में भी पाकिस्तान सरकार ने टीएलपी के कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेकते हुए समझौता किया था. उस समय तो पाकिस्तान में गृहयुद्ध की नौबत आ गई थी. टीएलपी ने कई पुलिसकर्मियों को भी कैद कर रखा था.
पाकिस्तान सरकार और टीएलपी के बीच समझौता कैसे हुआ और इतने दिनों तक इसको गुप्त क्यों रखा गया. सैन्य अधिकारियों ने कहा कि उनका प्राथमिकता सड़कों पर कब्जा किए बैठे टीएलपी के दंगाइयों को हटाना था. पाकिस्तानी सेना हर हाल में स्थिति को काबू करना चाहती थी. समझौते को गुप्त रखने पर बताया गया कि सरकार और सेना को डर था कि अगर प्रारंभिक समझौते को सार्वजनिक किया गया तो बहस शुरू हो सकती है. इतना ही नहीं, इससे समझौते पर अमल करने में भी दिक्कत आ जाती, जिससे उपद्रव के और भड़कने का खतरा था.
इस घटनाक्रम पर बारीक नजर रखने वाले ने बताया कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने हालात को देखते हुए टीएलपी के प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग की अनुमति दे दी थी. लेकिन, सेना ने इमरान खान की सलाह को मानने से पहले खुद की एक उच्चस्तरीय बैठक बुला ली. इस बैठक में प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई के बाद पैदा होने वाले हालात पर चर्चा की गई. उन्होंने सलाह मशविरा किया कि अगर हम कानून तोड़ने वाले इन लोगों पर गोलियां चलाते हैं तो कितने हताहत हो सकते हैं, प्रदर्शनकारियों की तरफ से क्या प्रतिक्रिया आ सकती है. जिसके बाद सेना ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया था.
HIGHLIGHTS
- टीएलपी के प्रदर्शन को देख इमरान खान के उड़ गए थे होश
- PM इमरान के कार्रवाई के आदेश को सेना ने नहीं माना
- जनरल बाजवा ने सरकार को गिनाई थी मजबूरी