पाकिस्तान (Pakistan) के इमरान सरकार (Imran Khan Government) के लिए गुरुवार का दिन कयामत का दिन होगा. इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने की बड़ी तैयारी हो चुकी है. जमीयत उलेमा-इस्लाम-फजलके प्रमुख फजलुर रहमान (Fazlur Rahman) की अगुवाई में शुरू हुए आजादी मार्च में पाकिस्तान (Pakistan) का पूरा विपक्ष एकजुट हैं. 31 अक्टूबर को केसरिया सैलाब पाकिस्तान (Pakistan) की राजधानी इस्लामाबाद में नजर आएगा. फजलुर रहमान (Fazlur Rahman) किसी भी कीमत पर 15 महीने पुरानी इमरान सरकार (Imran Khan Government) का इस्तीफा चाहते हैं. आइए जानें कौन है फजलुर रहमान
28 अक्टूबर को शुरू हुए इस मार्च में पाकिस्तान (Pakistan) पीपुल्स पार्टी (पीपीपी), पाकिस्तान (Pakistan) मुस्लिम लीग (पीएमएल-एन) आवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) और दर्जनों पार्टियां शामिल है. पाकिस्तान (Pakistan) के अलग-अलग शहरों से लोग इस्लामाबाद की ओर बढ़ रहे हैं. क्वेटा, खैबर पख़्तूनखवा, रावलपिंडी, पेशावर से होते हुए ये मार्च इस्लामाबाद की तरफ बढ़ रहा है.
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बुधवार को लाहौर के आजादी चौक पर एक केसरिया रंग के कपड़ों में आए लोगों के विशाल समूह को संबोधित करते हुए फजल-उर- रहमान ने ' आजादी मार्च ' को पाकिस्तान (Pakistan) में हर उत्पीड़ित आत्मा की आवाज बताया. रहमान ने कहा कि यह समाज के हर वर्ग को प्रतिनिधित्व करता है, जिन्होंने अपनी सभी आशाओं को मार्च के साथ जोड़ा है. अब यह एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया है.
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रहमान ने कहा, "इस नाटक को रोकना है. इस देश में इस तरह के और ड्रामों के लिए कोई जगह नहीं है,". रहमान ने सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के संदर्भ में कहा कि पीएमएल-एन सुप्रीमो नवाज शरीफ और पीपीपी के सह-अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी को जेल की सजा सुनाई गई.
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रहमान ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की भी प्रशंसा की जिन्होंने "यह साबित किया कि वे शांतिपूर्ण हैं". "किसी को भी उन पर खरोंच नहीं लगी. आपने इसे एक शांत मार्च साबित किया है." बता दें इस मार्च में राजनीतिक दलों के अलावा मदरसे, स्कूल, कॉलेज के छात्र भी शामिल हैं. दूसरे छोटी-मोटी पार्टियां भी इमरान के खिलाफ इंकलाब का आगाज कर चुकी हैं.
कौन है फजलुर रहमान
बता दें मौलाना फजलुर रहमान पाकिस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी और सुन्नी कट्टरपंथी दल जमिअत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के चीफ हैं. उनके पिता खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के सीएम रह चुके हैं. वहां की सियासत में उनके परिवार का खासा प्रभाव रहा है. मौलाना पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में नेता विपक्ष भी रह चुके हैं.
- वे संसद में विदेश नीति पर स्टैंडिंग कमेटी के चीफ, कश्मीर कमेटी के मुखिया रह चुके हैं.
- वे तालिबान समर्थक माने जाते हैं लेकिन पिछले कुछ साल से उदारवादी होने का दावा करते हैं.
- इसके अलावा 2018 के चुनाव के बाद इमरान को सत्ता में आने से रोकने के लिए साझा पहल कर सुर्खियों में आए थे.
- पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की ओर से उम्मीदवार भी थे. सत्ता में नहीं रहते हुए भी नवाज शरीफ की सरकार ने मौलाना को केंद्रीय मंत्री का दर्जा दे रखा था.
- मौलाना फजलुर रहमान की जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल धर्म के आधार पर पाक की सबसे बड़ी पार्टी में से एक रही है.
- मौलाना ने पाकिस्तान की सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि ‘नकली सरकारें एक राष्ट्र का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती हैं.
- मौलाना फजलुर रहमान के बारे में कहा जाता है कि पाकिस्तान में सरकार किसी की भी बने, उसमें इनकी भूमिका जरूर होती है.
- उनके अफगान तालिबान जैसे गुटों के साथ-साथ पाकिस्तान की सेना से भी अच्छे संबंध हैं. मौलाना की सबसे बड़ी ताकत यही मानी जाती है.
- उनकी एक खासियत यह भी है कि वे चुनाव से पहले कई दलों का गठबंधन बनाने में कामयाब हो जाते हैं.
- 2018 के राष्ट्रीय चुनावों ने (JUI-F) को लगभग खत्म कर दिया गया और स्वयं फजलुर्रहमान की हार हुई और वह लंबे अंतराल के बाद नेशनल असेंबली में जगह नहीं बना सका.
- इसके साथ ही उसने कश्मीर कमेटी के चेयरमैन की अपनी लंबे समय से कब्जा की हुई स्थिति को भी खो दिया.
- फजलुर्रहमान सत्ता के साथ चिपकने वाले नेता माने जाते हैं और 1990 के दशक की शुरुआत से (JUI-F) लगभग सभी सरकारों का हिस्सा रहा है, चाहे वह किसी भी दल की हो.