लगभग छह साल पहले चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के अवैध अतिक्रमण और अधोभूत संरचना के निर्माण के मसले पर डोकलाम (Doklam) में भारतीय और चीनी सैनिकों के आमने-सामने आने के बाद भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग (Lotay Tshering) के हालिया बयान ने मोदी सरकार (Modi Government) की पेशानी पर बल ला दिया है. बेल्जियम के दैनिक ला लिबरे के साथ एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने कहा, 'समस्या को हल करना अकेले भूटान (Bhutan) पर निर्भर नहीं है. हम तीन हैं. कोई बड़ा या छोटा देश नहीं है, तीन समान देश. प्रत्येक एक तिहाई के लिए गिना जाता है. इस लिहाज से बीजिंग का भी उच्च ऊंचाई वाले पठार डोकलाम पर विवाद का समाधान खोजने में समान अधिकार है.' गौरतलब है कि नई दिल्ली का मानना है कि डोकलाम के कुछ हिस्से पर चीन (China) ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है.
थिम्पू ने चीन के साथ अपनाया व्यावहारिक रुख
चीन ने भूटानी क्षेत्र के अंदर पठार के पास गांवों और सड़कों का निर्माण किया है, जो भारत के लिए सामरिक चुनौतियां खड़ी करता है. सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी गलियारे से निकटता के कारण भारत डोकलाम में चीनी विस्तार का विरोध करता आ रहा है. इस कड़ी में लोटे शेरिंग का बयान वास्तव में थिम्पू की भारत, चीन और भूटान के बीच डोकलाम में त्रि-जंक्शन की स्थिति पर बातचीत करने की इच्छा के प्रति संकेत करता है, जो विवाद के मूल में है. चीन का लक्ष्य ट्राई-जंक्शन को दक्षिण की ओर स्थानांतरित करना है, जो पूरे डोकलाम पठार को कानूनी रूप से चीन का हिस्सा बना देगा. बीजिंग का यह एक ऐसा कदम जिसे भारत ने अस्वीकार कर दिया है औऱ डोकलाम संघर्ष भी इसी वजह से हुआ था.
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2017 में सामने आया था डोकलाम गतिरोध, जो दो महीने चला
2017 में भारतीय और चीनी सैनिक दो महीने से अधिक समय तक चलने वाले तनावपूर्ण गतिरोध में शामिल रहे थे. भारतीय सैनिकों ने चीन को माउंट जिपमोची और आसपास के झम्फेरी रिज की ओर अवैध रूप से निर्मित सड़क का विस्तार करने से रोकने के लिए डोकलाम पठार में प्रवेश किया था. भारतीय सेना का दावा है कि चीनी सेना को झम्फेरी तक पहुंचने की अनुमति देने से पीएलए सिलीगुड़ी कॉरिडोर की एक-एक आंखों देखी जानकारी मिल जाएगी. भूटान ने ऐतिहासिक रूप से भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे हैं, लेकिन उसके प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग के हालिया बयान से पता चलता है कि थिम्पू संभवतः भारत से संबंधों की कीमत पर डोकलाम विवाद के लिए अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपना रहा है. हालांकि शेरिंग का यह बटान उनके 2019 के रुख से बिल्कुल विपरीत है, जहां उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि किसी भी पक्ष को मौजूदा ट्राइजंक्शन बिंदु के पास एकतरफा कार्रवाई नहीं करनी चाहिए.
डोकलाम पठार के पास चीन की निर्माण गतिविधियां बढ़ीं
डोकलाम पठार के पास चीन की निर्माण गतिविधियां बढ़ गई हैं, जिसमें अमू चू नदी पर एक पुल का निर्माण भी शामिल है. लोटे शेरिंग की हालिया टिप्पणियों से संकेत मिलता है कि थिम्पू के पास भूटानी क्षेत्र पर चीन के बढ़ते अतिक्रमण को रोकने के सीमित विकल्प हैं. न केवल डोकलाम के पास अपनी पश्चिमी सीमाओं के साथ-साथ, बल्कि उत्तर में जकारलुंग और पासमलंग घाटियों में भी. गौरतलब है कि विवादित पश्चिमी क्षेत्र लगभग 270 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जबकि उत्तरी विवादित क्षेत्र लगभग 500 वर्ग किलोमीटर में फैला है.
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भू-राजनीतिक मुद्दे पर एक नई चुनौती
चीन और भूटान के बीच सीमा वार्ता और क्षेत्रीय समझौतों के परिणाम क्षेत्र में रणनीतिक महत्व के लिहाज से भारत और चीन के बीच महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं. ऐसे में नई दिल्ली मानचित्र पर ऐसी किसी भी विभाजन रेखा की स्थिति पर बारीकी से नजर रख रही है. जाहिर है डोकलाम विवाद को सुलझाने में चीन की भूमिका की भूटानी प्रधानमंत्री की स्वीकृति और त्रि-जंक्शन की स्थिति पर बातचीत करने की इच्छा ने भूटान, चीन और भारत के हितों से जुड़े जटिल भू-राजनीतिक मुद्दे में एक नई चुनौती जोड़ दी है.
HIGHLIGHTS
- पश्चिमी भूटान में चीनी निर्माण को मंजूरी भारतीय सामरिक हितों के खिलाफ
- डोकलाम पर भूटानी पीएम लोटे शेरिंग का हालिया बयान बेहद चिंता की बात
- सिलीगुड़ी कॉरीडोर के सामरिक महत्व से भारत कर रहा है चीन का विरोध