डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन (Donald Trump Administration) ने ईरान के सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर और खुफिया प्रमुख मेजर जनरल कासिम सुलेमानी (Major General Qassim Soleimani) को न केवल तेहरान को गैर पारंपरिक युद्ध में मात देने के लिए, बल्कि सऊदी अरब (Saudi Arabia) को भी एक संदेश देने के लिए मार डाला. शिया मुसलमानों का प्रमुख देश ईरान पश्चिम एशिया में प्रभुत्व के लिए प्रतिस्पर्धा करता रहा है, जो लंबे समय से सुन्नी प्रमुख सऊदी अरब के प्रभाव में है. हालांकि दोनों ही देश प्रमुख तेल उत्पादक हैं. सऊदी दुनिया में तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है. ईरान पर उसके यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को रोकने के लिए 2006 में तीसरी बार अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद, देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ.
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ईरान के सशस्त्र बलों की शाखा इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC-आईआरजीसी) हालांकि अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभावों की भरपाई के लिए प्रयासरत है, जिसकी अध्यक्षता जनरल सुलेमानी कर रहे थे. लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक अफेयर्स (IISA-आईआईएसए) द्वारा नवंबर 2019 में प्रकाशित डोजियर के अनुसार, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ने 1979 की क्रांति के बाद पहली बार उप-पारंपरिक युद्ध की रणनीति का इस्तेमाल किया और उसने लेबनान में शिया आतंकी समूह हिजबुल्लाह बनाया.
इस देश का आतंकवादी गुटों को बढ़ाने और अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ दुर्व्यवहार करने का दृष्टिकोण नया नहीं है. डोजियर का दावा है कि 2003 में इराक में अमेरिका द्वारा सद्दाम हुसैन के शासन को उखाड़ फेंकने के बाद से कुर्द बलों ने तेहरान से संबद्ध लड़ाकों को प्रशिक्षण, धन और हथियार प्रदान करते हुए वहां अपना संचालन तेज कर दिया.
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डोजियर के अनुसार, सुलेमानी ने पॉपुलर मोबलाइजेशन यूनिट्स (पीएमयू) नामक एक अर्धसैनिक बल को सशस्त्र और प्रशिक्षित किया, जिसने आईएस को हराने में मदद की. 2016 में अधिकांश प्रतिबंधों को हटाए जाने के बाद जब ईरान ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ कम से कम 10 वर्षो तक फैले अपने परमाणु कार्यक्रम की सीमा के बदले सौदा किया, तो सुलेमानी का प्रभाव तेजी से बढ़ा.
हालांकि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने सत्ता में आने के बाद, ईरान के साथ समझौते को रद्द करने का फैसला लिया, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तल्खी काफी बढ़ गई.
Source : IANS