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समंदर में रेडियो एक्टिव पानी छोड़ रहा जापान? चीन ने सीफूड आयात पर लगाया बैन, नमक पर भी हाहाकर!

अब फुकुशिमा प्लांट में एक हजार छियालीस स्टोरेज टैंक हैं. इनमें 1343 मिलियन क्यूबिक टन पानी स्टोर किया जा सकता है. अब प्लांट बंद है. इसमें करीब 13 लाख टन पानी स्टोर है. ये पानी इतना है कि ओलंपिक के करीब 500 स्विमिंग पूल्स को इससे भरा जा सकता है.

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Prashant Jha
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समंदर में रेडियो एक्टिव पानी छोड़ा गया( Photo Credit : फाइल फोटो)

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चीन में नमक के लिए मारामारी की स्थिति है. सोशल मीडिया पर भी ऐसे कई वीडियो सामने आ रहे हैं जिनमें लोग. भारी मात्रा में नमक खरीदते हुए दिख रहे हैं. बताया जा रहा है कि नमक की कीमतों में 300 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है. हालात ऐसे बने कि चाइना सॉल्ट एसोसिशन को सामने आना पड़ा. लोगों से शांत रहने की अपील करनी पड़ी. लेकिन आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि चीन में नमक के दाम इतने अधिक बढ़ गए.ऐसा क्या हो गया कि लोग नमक को स्टोर करना चाह रहे हैं. ऐसा क्या हो गया जो लोग इतने परेशान हैं. चलिए समझने की कोशिश करते हैं. बता दें कि चीन ने जापान से आने वाले सीफूड पर भी बैन लगा दिया है. यानी सीफूड का आयात बंद कर दिया है. अब सवाल ये कि चीन में आखिर चल क्या रहा है. चीन में नमक को लेकर क्यों परेशानी हो रही है. सीफूड को लेकर क्यों परेशानी हो रही है. तो इन तमाम सवालों के जवाब छुपे हैं. करीब 3 हजार किलोमीटर दूर जापान में.  जापान अपने फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट से निकले पानी को पैसेफिक ओशन यानी प्रशांत महासागर में छोड़ रहा है. 

साल 2011 में जापान में 9 की तीव्रता का भूकंप आया था और भूकंप के बाद आई थी सुनामी. इस सुनामी से फुकुशिमा प्लांट तबाह हो गया था. इस तबाही के बाद प्लांट के मलबे को हटाने का एक अभियान शुरु किया गया था, लेकिन जितना मुश्किल होता है इसी परमाणु प्लांट को बनाना. उतना ही मुश्किल होता है इसके मलबे को हटाना. इस काम में कई साल तक लग जाते हैं. मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि फुकुशिमा प्लांट के मलबे को हटाने में 30 साल से भी अधिक का वक्त लग सकता है. अब फुकुशिमा प्लांट में जमा पानी को समंदर में छोड़ा जा रहा है और पूरा विवाद यहीं से शुरु होता है.

ये पूरा विवाद भी आपको बताएंगे. लेकिन उससे पहले समझिए कि आखिर ये पानी आया कहां से है. दरअसल परमाणु बिजलीघर में रिएक्टर के कोर को ठंडा करने के लिए ताजा पानी की जरूरत होती है. इसीलिए परमाणु बिजलीघरों में हमेशा पानी वाली जगह के पास बनाया जाता है. फुकुशिमा प्लांट को भी इसलिए प्रशांत महासागर के पास बनाया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक यहां करीब 170 टन पानी की रोजाना जरूरत होती थी, लेकिन कोर को ठंडा करने के दौरान ये पानी रेडियोएक्टिव हो जाता है. इसलिए इस पानी को प्लांट के स्टोरेज टैंक में जमा किया जाता है.

जापान प्रशान्त महासागर में गिराएगा पानी

अब फुकुशिमा प्लांट में एक हजार छियालीस स्टोरेज टैंक हैं. इनमें 1343 मिलियन क्यूबिक टन पानी स्टोर किया जा सकता है. अब प्लांट बंद है. इसमें करीब 13 लाख टन पानी स्टोर है. ये पानी इतना है कि ओलंपिक के करीब 500 स्विमिंग पूल्स को इससे भरा जा सकता है. अब जापान ने इस रेडियो एक्टिव पानी को प्रशांत महासागर में बहाने का फैसला किया है. प्लांट के मलबे को हटाने का काम कर रही कंपनी टेपको. पानी को समुद्र में डालने से पहले फिल्टर कर रही है. ऐसा इसलिए ताकि समुद्र में रेडियोएक्टिविटी न फैल जाए. इस पानी को कितना भी फिल्टर कर लिया जाए लेकिन ट्राइटियम को इससे अलग करना संभव नहीं है.

जापान की सरकार ने टेपको कंपनी से कहा है कि वो ट्राइटियम की मात्रा को एक निश्चित स्तर से नीचे कर दे. इसी शर्त पर टेपको को ये पानी समुद्र में छोड़ने की इजाजत दी गई है. अब ये ट्राइटियम इतना खतरनाक है कि इससे इंसानों को कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती है. साथ ही समुद्री जीव-जंतुओं को भी इससे बड़ा खतरा हो सकता है. जापान की सरकार के अलावा यूएस की ओर से भी पानी समंदर में छोड़ने के लिए हरी झंडी मिल चुकी है. अब इस बात का विरोध कई पर्यावरणविद कर रहे हैं. कई का ऐसा मानना है कि इससे समंदर को. उसकी जीव जंतुओं को बड़ा खतरा हो सकता है. 

चीन ने बीमारियों के डर से सीफूड्स पर लगाया बैन

जापान के मसले को आपने समझ लिए. अब दोबारा लौटते हैं चीन पर. जापान समंदर में रेडियो एक्टिव पानी छोड़ रहा है, इस बात ने चीन को गुस्सा दिला दिया है. इतना गुस्सा कि उसने जापान से आने वाले सीफूड्स के आयात पर बैन लगा दिया है.  दरअसल चीन को शक है कि जापान से आने वाले सीफूड के जरिए उसके नागरिकों को भी बीमारियां हो सकती हैं. इसी शक के चलते चीन ने जापानी सीफूड्स पर बैन का फैसला किया है. अब इससे होगा ये कि जापान की फिशरीज इंडस्ट्री को बहुत बड़ा झटका लगेगा. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल जापान से चीन को 72 अरब येन के सीफूड की सप्लाई की गई थी. ये रकम करीब 496 मिलियन डॉलर होती है. 

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नमक को लेकर हाहाकार की खबरों में दम नहीं

अब आखिरी बात. चीन में जो नमक इस्तेमाल होता है. उसमें से करीब 10 फीसद नमक ही समंदर के पानी से बनाया जाता है. इसके बाद भी चीन के कुछ बाजारों में हडकंप की स्थिति बन गई. लोग बेतहाशा नमक खरीदने लगे. चाइना सॉल्ट एसोसिशन को बयान जारी करना पड़ा. लेकिन चीन के बीजिंग में रहने वाले पत्रकार अखिल पाराशर न्यूज़ नेशन के कहने पर सुपर मार्केट में पहुंचे जहां नमक के दाम उन्हें सामान्य मिले. यानी चीन के कुछ हिस्सों में नमक को लेकर मारामारी की स्थिति जरूर बनी लेकिन, कमोबेश हालात सामान्य हैं. हां, जापानी सीफूड पर बैन एक बड़ा फैसला है और इसका असर देर तक होगा. हालांकि अब देखना ये होगा कि जापान के सीफूड पर क्या दुनिया के दूसरे देश भी नजरें तरेंगे या फिर इस सीफूड को नए ग्राहक मिल जाएंगे.

वरुण कुमार की रिपोर्ट

Source : News Nation Bureau

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