भारत की कोवैक्सीन और कोविडशिल्ड दुनिया के कई देशों में भेजी जा चुकी हैं. लेकिन अमेरिका जाने वाले लोगों के लिए ये कोरोना वैक्सीन काम मान्य नहीं होगा. दरअसल, भारत की रहने वाली मिलोनी दोषी कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मास्टर करना चाहती हैं. इसके लिए वो कोवैक्सीन की दोनों डोज ले चुकी हैं. लेकिन फिर भी उन्हें यूनिवर्सिटी आने पर वैक्सीन लगवानी होगी. कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने मिलोनी को कहा है कि वो जब भी कैंपस में आएंगी तो उन्हें फिर से वैक्सीन लगवानी होगी. हालांकि अभी तक किसी विशेषज्ञ और डॉक्टर ने ये नहीं बताया है कि दोबारा वैक्सीन लगवाना कितना सुरक्षित है.
मिलोनी के अलावा तमाम ऐसे छात्र-छात्राएं हैं जो कोवैक्सीन और स्पुतनिक-वी की दोनों डोज ले चुके हैं. इसके बाद भी उन्हें अमेरिका आने पर दोबारा वैक्सीन लगवाने को कहा गया है. ऐसे हालात में इन सभी छात्रों को चिंता है कि दो अलग-अलग वैक्सीन लगवाना कितना सेफ होगा.
कोवैक्सीन और स्पुतनिक-V को अभी तक डब्ल्यूएचओ से मंजूरी नहीं मिली है, इसलिए अमेरिकी यूनिवर्सिटीज ने इन वैक्सीन को लगवा चुके छात्रों को अमेरिका आने पर दोबारा डब्ल्यूएचओ से एप्रूव्ड वैक्सीन लगवाने को कहा है.
अमेरिकी वेबसाइट न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च से लेकर अब तक अमेरिका की 400 से ज्यादा यूनिवर्सिटी ऐसा आदेश जारी कर चुकी हैं जिसमें ऐसे स्टूडेंट्स को दोबारा वैक्सीन लगवाने को कहा गया है जिन्होंने कोवैक्सीन और स्पुतनिक-V लगवाई है. ऐसा इसलिए क्योंकि इन दोनों ही वैक्सीन को अभी तक डब्ल्यूएचओ की तरफ से एप्रूवल नहीं मिला है.
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स्पुतनिक वी को भारत के ड्रग कंट्रोलर द्वारा आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दी गई है। रूस के टीके को आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण प्रक्रिया के तहत 12 अप्रैल को भारत में पंजीकृत किया गया था और रूसी वैक्सीन का उपयोग 14 मई से शुरू हुआ था। आरडीआईएफ और पैनेशिया बायोटेक स्पुतनिक वी की एक वर्ष में 10 करोड़ खुराक का उत्पादन करने के लिए सहमत हुए हैं।
स्पुतनिक वी अब तक 3.2 अरब से अधिक की कुल आबादी वाले 66 देशों में पंजीकृत है। आरडीआईएफ और गामालेया सेंटर ने कहा है कि स्पुतनिक वी की प्रभावकारिता 97.6 प्रतिशत है, जो पिछले साल 5 दिसंबर से इस साल 31 मार्च तक स्पुतनिक वी की दोनों खुराक के साथ रूस में टीकाकरण करने वालों के बीच कोरोनावायरस संक्रमण दर के आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है।