नेपाल की संसद में अमेरिका की महत्वाकांक्षी परियोजना मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) नेपाल कॉम्पैक्ट आखिरकार पेश हो ही गया. करीब तीन साल से यह परियोजना अधर में लटकी हुई थी और चीन की हस्तक्षेपकारी नीति के कारण संसद में पेश नहीं हो पा रहा था. इस परियोजना को लेकर चीन और अमेरिका के बीच कूटनीतिक विरोध प्रतिरोध का सिलसिला ही चल पड़ा था. इस मामले में आखिरकार चीन को मुंह की खानी पड़ी और अमेरिका की यह बड़ी कूटनीतिक जीत हुई है.
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नेपाल के सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल माओवादी, जनता समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनमोर्चा जैसी कम्यूनिष्ट पार्टियां चीन के दबाब में MCC को संसद में पेश करने में लगातार अवरोध डाल रहे थे. नेपाल में चीन की राजदूत होउ यांकी से लेकर कम्यूनिष्ट पार्टी ऑफ चाईना (CPC) के विदेश विभाग प्रमुख Sang Tao के लगातार दबाब के बावजूद चीन इसे संसद में पेश होने से नहीं रोक पाया. नेपाल के कम्यूनिस्ट नेताओं पर चीन के लगातार दबाब के कारण इसे पेश नहीं होने देने के बाद अमेरिका ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया था. अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने नेपाल के सभी दलों के शीर्ष नेताओं को फोन पर दो टूक बता दिया था कि अगर 28 फरवरी तक इसे संसद से पारित नहीं किया तो इसे सीधे सीधे चीन का हस्तक्षेप माना जाएगा और अमेरिका नेपाल को लेकर अपनी नीति में पुनर्विचार करने को मजबूर हो जाएगा.
नेपाल को चीन के चंगुल में नहीं फंसने की सलाह
एक तरफ अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री ने नेपाल के नेताओं को चीन के चंगुल में नहीं फंसने की सलाह दी वहीं अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने वाशिंगटन से यह संदेश दिया कि अगर चीन के कहने पर अमेरिका के परियोजना को संसद से पास नहीं किया गया तो सिर्फ अमेरिका ही नहीं उसके सभी मित्र देश जैसे जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूके, जर्मनी, कोरिया के तरफ से जो भी नेपाल को हर साल आर्थिक मदद मिलती है वह भी रुक जाएगी. इधर नेपाल में भी अमेरिका सहित यूरोप के अधिकांश देशों के राजदूतों की सक्रियता बढ़ गई और उन्होंने सरकार के मंत्रियों और विभिन्न दलों के नेताओं से मुलाकात कर अमेरिकी परियोजना पास नहीं होने की स्थिति में वर्ल्ड बैंक, एशियाई विकास बैंक (ADB) जैसी संस्थाओं के द्वारा दिया जाने वाला आर्थिक सहयोग भी रुक सकने की चेतावनी दी थी. इन सबसे नेपाल की सरकार और सत्तारूढ गठबंधन में रहे चीन समर्थित दलों पर लगातार दबाव बढ़ता गया. चीन और अमेरिका के चंगुल में फंसे प्रचण्ड, माधव नेपाल, उपेन्द्र यादव जैसे नेताओं की हालत MCC के मसले पर सांप-छुछुंदर जैसी हो गई थी. उनको ना चीन के विरोध में जाने की हिम्मत हो पा रही थी और ना ही अमेरिका के प्रतिबंधों को झेलने की ताकत ही थी.
दो दिन पहले ही चीन ने यूएस का किया था विरोध
दो दिन पहले ही चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बीजिंग से अमेरिका के प्रेशर डिप्लोमेसी का विरोध किया और कहा कि नेपाल एक सार्वभौम देश है और उस पर दबाब देकर एमसीसी पास करवाना बिलकुल भी गलत है. इतना ही नहीं चीन का यह भी मानना है कि MCC के जरिए नेपाल के रास्ते चीन को घेरना ही अमरीका का असली मकसद है. चीन की सरकारी मीडिया में इस बाबत कई खबरें लिखी गई जिसमें अमेरिका पर तिब्बत में अस्थिरता फैलाने के लिए एमसीसी को जबरन नेपाल पर थोपे जाने का आरोप भी लगाया गया था. जब अमेरिकी का दबाब अपने चरम पर था और प्रधानमंत्री ने गठबंधन तोड़कर और माओवादी मंत्रियों को बर्खास्त कर भी एमसीसी को आगे बढ़ाने की बात कही तो चीन बौखला उठा. उसने नेपाल के अपने सहयोग में कटौती की धमकी भी दी. तब अमेरिकी दूतावास ने विज्ञप्ति जारी कर कहा कि नेपाल अपने तरफ से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है और कहा था कि किसी तीसरे देश को इसमें बोलने की आवश्यकता नहीं है. आखिरकार नेपाल सरकार और सत्तारूढ़ गठबंधन ने चीन को ठेंगा दिखा कर अमेरिकी परियोजना संबंधी विधेयक को संसद में पेश कर दिया.
MCC परियोजना पेश के दौरान कम्यूनिस्ट पार्टी कर रही थी विरोध
जिस समय संसद में MCC को पेश किया जा रहा था उसी समय संसद भवन के बाहर कम्यूनिस्ट दलों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों का उग्र प्रदर्शन जारी था. प्रदर्शनकारी पुलिस के बीच में झड़प चल रही थी. प्रदर्शनकारी पुलिस पर पथराव कर रहे थे और पुलिस प्रदर्शनकारियों पर हवाई फायर और अश्रु गैस छोड़ रही थी,
लेकिन तमाम अवरोधों और चीन के दबाब के बावजूद एमसीसी संसद में पेश कर दिया गया और प्रधानमंत्री देउवा ने भरोसा दिलाया है कि यह बहुमत से पारित भी होगा. हालांकि सत्तारूढ़ गठबंधन के कई नेता अभी भी कह रहे हैं कि इसे पारित नहीं होने दिया जाएगा और वो इसका विरोध करेंगे, लेकिन यही बात उन्होंने विधेयक के पेश होने से पहले भी कही थी कि यदि यह संसद में टेबल करने दिया जाता है तो वो सरकार छोड़ देंगे और गठबंधन तोड़ देंगे. आज जब यह टेबल हो गया तो ना तो वो सरकार से बाहर हो रहे हैं और ना ही गठबंधन से. इसलिए कम्यूनिष्ट नेताओं की धमकियों पर कोई विश्वास नहीं कर रहा है.
HIGHLIGHTS
- करीब तीन साल से यह परियोजना अधर में लटकी हुई थी
- चीन के लगातार दबाब के कारण अमेरिका को करना पड़ा कड़ा रुख अख्तियार
- चीन को मुंह की खानी पड़ी और अमेरिका की यह बड़ी कूटनीतिक जीत हुई है