हाल ही में पाकिस्तान के बलूचिस्तान में एक वकील अब्दुल रज्जाक शार की हत्या हुई है. ये हत्या इतनी अहम है कि इसके बाद पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान को फांसी पर चढ़ाए जाने की चर्चा चल पड़ी है. ठीक वैसे ही जैसे 44 साल पहले पाकिस्तान के एक और पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़ाया गया था. दरअसल भारत को पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान इन दिनों कई तरह की परेशानियों से घिरा हुआ है. इस देश की आर्थिक स्थिति इतनी नाजुक है कि इसके दिवालिया होने की आशंका जताई जा रही है. और जिस पॉलिटिकल और मिलिट्री लीडरशिप के कंधों पर देश को इस मुसीबत से निकालने की जिम्मेदारी है वो इमरान खान के मसले पर कुछ ज्यादा ही मशगूल है.
राजनैतिक तौर पर पाकिस्तान इस वक्त जैसे दौर से गुजर रहा है वैसा पाकिस्तान में बहुत कम देखने को मिलता है. इमरान खान के तौर पर पाकिस्तान में एक ऐसा लीडर खड़ा हो गया है जिसकी पॉपुलेरिटी से पाकिस्तान आर्मी को भी खतरा पैदा हो गया है. पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जहां ज्य़ादातर या तो पाकिस्तान आर्मी का सीधा शासन रहा है या फिर डेमोक्रेसी के नाम पर उसकी बनाई गई कठपुतली सरकार ने राज किया किया. पाकिस्तान के लीडर्स अक्सर पाकिस्तान आर्मी को चुनौती देने की हिम्मत नहीं दिखा पाते.
लेकिन अब, इमरान खान ने पाकिस्तान आर्मी को ठीक वैसी ही चुनौती दी है जैसी 1970 के दशक में जुल्फिकार अली भुट्टो ने दी थी. पाकिस्तान के मौजूदा विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के नाना जुल्फिकार को तब के पाकिस्तानी तानाशाह जनरल जिय़ा उल हक ने फांसी पर चढ़ा दिया था. और इस बात की आशंका जताई जा रही कि कहीं पाकिस्तान आर्मी, इमरान खान को भी फांसी पर ना चढ़ा दे क्योंकि इमरान खान और जुल्फिकार अली भुट्टो की आर्मी के साथ अदावत में कई बातें हैं जो एक जैसी हैं.
बलूचिस्तान में हुई वकील की हत्या में इमरान खान को सीधे नामजद किया गया है. अब तक इमरान खान परह भ्रष्टाचार समेत ढेरों मुकदमे लगे चुके हैं लेकिन हत्या का ये सीधा मामला पहली बार दर्ज हुआ है. इसे ठीक उसी तरह देखा जा रहा है जिस तरह साल 1974 में लाहौर में अहमद खान कसूरी की हत्या में जुल्फिकार अली भुट्टो को नामजद किया गया था. इसी गुनाह की सजा के तौर पर जुल्फिकार अली भुट्टो को चार अप्रैल 1979 को फांसी पर चढ़ा दिया गया था.
इमरान खान और भुट्टो के मामले में मामले में कई समानताएं हैं. आर्मी चीफ जनरल जिया उल हक ने साल 1977 में भुट्टो की चुनी हुई सरकार का तख्ता पलट करके उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया था..तो वहीं पाकिस्तान आर्मी ने साल 2022 में डेमोक्रेटिक तख्तापलट करके इमरान खान को हटाकर शाहबाज शरीफ को पाकिस्तान के पीएम के पद पर बिठा दिया. 9 मई को जब इमरान खान की गिरफ्तारी हुई तब देश में कोहराम मच गयाऔर पहली बार कई शहरों में पाकिस्तान आर्मी के ठिकानों पर हमले किए गए.
पाकिस्तान आर्मी के लिए ये बड़ी चौंकाने वाली बात थी क्योंकि आर्मी तो खुद को इस मुल्क की बेताज बादशाह समझती है.
साथ ही ये एक इशारा था कि इमरान खान अब पूरे मुल्क में कितने पॉपुलर हो चुके हैं..इस साल के आखिर में पाकिस्तान में चुनाव होने वाले हैं और अगर इमरान खान की पार्टी उसमें जीत जाती है और आर्मी से खुलेआम मुखालफत करने वाले किसी लीडर को पाकिस्तान में सत्ता हासिल हो जाए. तो ये पाकिस्तान के इतिहास की सबसे बड़ी घटना हो जाएगी. कमोबेश यही हालात उस वक्त भी थे जब जनरल जिया उल हक ने तख्ता पलट करके पाकिस्तान की सत्ता तो हथिया ली थी लेकिन भुट्टों उस वक्त पाकिस्तान के सबसे पॉपुलर लीडर थे और उनकी पॉपुलेरिटी से जनरल जिया की सत्ता को सीधा खतरा पैदा हो गया था.
इमरान खान और भुट्टो के मामले की समानता यहीं खत्म नहीं होती..जिस तरह जनरल जिया, जुल्फिकार अली भुट्टो को अपना निजी दुश्मन मानते थे ठीक वैसे ही समीकरण इमरान खान और पाकिस्तान के मौजूदा आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर के बीच भी हैं. कहा जाता है कि पाकिस्तान की खुफियाी एजेंसी आईएसआई के चीफ के तौर पर जनरल मुनीर ने इमरान खानकी बेगम बुशरा बीबी से सजुड़े किसी मामले की तफ्तीश की थी जिससे नाराज होकर इमरान ने उन्हें उनके ओहदे से हटवा दिया था. 9 मई को गिरफ्तार होने बाद इमरान खान को अदालत से राहत मिली और वो जेल से बाहर आए तो वहीं भुट्टो को भी पहली बार गिरफ्तार करने के बाद अदालत के दखल पर आजाद कर दिया गया था लेकिन कुछ वक्त बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया.
जनरल जिया को डर था कि अगर चुनाव में भुट्टो की पार्टी जीत गई तो भुट्टो उनसे बदला जरूर लेंगे. भुट्टो के खिलाफ दर्ज उसी लाहौर मर्डर केस को तेज रफ्तार से आगे बढ़ाकर भुट्टो को फांसी की सजा सुना दी गई. भुट्टों विदेश और खासतौर से इस्लामिक देशों में काफी पॉपुलर थे. उन्हें फांसी ना देने की भी अपील्स की गई लेकिन जिया उल हक के निजाम को तो भुट्टों को जल्द से जल्द फांसी पर लटकाना था. लिहाजा सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर भु्टों को रावलपिंडी की सेंट्र लजेल में सूली पर चढ़ाने की तैयारी शुरू की गई.
भुट्टों की फांसी का वक्त सुबह चार बजे था था लेकिन उन्हें रात दो बजे ही फांसी पर चढ़ा दिया गया..उनकी पत्नी नुसरत भुट्टो औ बेटी बेनजीर को आखिरी बार उनसे मिलने तक नहीं दिया गया. और तो और पाकिस्तान की आवाम को भी भुट्टो की मौत की खबर 9 घंटे बाद मिली. भु्ट्टो की दी गई फांसी इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान के फौजी हुक्मरांन खुद को चुनौती देने वाले को बख्शते नहीं है चाहे कोई भी हो..यही वजह है कि भुट्टो की ही तरह आर्मी को चुनौती देने वाले इमरान खान की की तकदीर को लेकर ऐसे कयास लगाए जा हैं.
रिपोर्ट- सुमित दुबे
Source : News Nation Bureau