पाकिस्तान में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल (जेयूआई-एफ) प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने कहा है कि मदरसों को नुकसान पहुंचाने के मकसद से सरकार व मदरसों के बोर्डो के बीच होने वाला कोई भी समझौता उनकी पार्टी और इससे जुड़े मदरसों के लिए स्वीकार्य नहीं होगा. डॉन न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को यहां एक दिवसीय तहफुज-ए-मदारिस सम्मेलन में उलेमा और छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार पर मदरसों के पाठ्यक्रम को बदलने का दबाव है. उन्होंने साथ ही चेतावनी दी कि ऐसा समझौता स्वीकार नहीं किया जाएगा.
फजलुर ने कहा कि सरकार को सुधारों के नाम पर या शिक्षा संस्थानों को मुख्यधारा में लाने के नाम पर मदरसों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठानों ने तथाकथित सुधार एजेंडे को मदरसों के लिए डिजाइन किया है. जेयूआई-एफ प्रमुख ने कहा कि उनकी पार्टी ने कभी भी 'चयनित' सरकार के आदेश को स्वीकार नहीं किया है, जिसके पास अपने फैसले लागू करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी सरकार और मदरसों के बोर्डो के बीच बातचीत को करीब से देख रही है.
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उन्होंने कहा कि सरकार पर मदरसों के पाठ्यक्रम को बदलने का दबाव है और उस संबंध में मदरसों के बोर्डो के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की संभावना है. फजलुर ने कहा, "हम ऐसे किसी भी समझौते को स्वीकार नहीं करेंगे, जो धार्मिक शिक्षा को नुकसान पहुंचाता है." उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार इस दिशा में कदम उठाती है तो उलेमा पेड़ों की छाया के नीचे पढ़ाना शुरू कर देंगे. उन्होंने कहा कि 98 फीसदी मदरसे जेयूआई-एफ से जुड़े हुए हैं और वे किसी भी एकतरफा और मनमाने सौदे का विरोध करेंगे. उन्होंने कहा कि मदरसा बोर्ड के प्रमुख ने प्रस्तावित सौदे पर संदेह व्यक्त किया था.
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उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान में पूर्व सोवियत संघ के खिलाफ जिहाद का पूरी तरह से समर्थन किया और अब वे चरमपंथ और आतंकवाद के लिए धर्म को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उन्होंने इस बात से इनकार किया कि चरमपंथियों ने उग्रवाद और आतंकवाद में कोई भूमिका निभाई है. फजलुर ने कहा कि पाकिस्तान पिपुल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएल-एन) की पिछली सरकारें भी मदरसों के पाठ्यक्रम को बदलने के लिए विदेशी एजेंडे का पालन कर रही थीं. उन्होंने कहा कि सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के शिक्षा संस्थानों के बारे में सोचना चाहिए.