क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपित फिदेल कास्त्रो ने अमेरिका को निशाने पर लेने वाले मिसाइल की तैनाती कर वैश्विक संतुलन को हिला कर रख दिया था। दुनिया इस संकट को 1962 के मिसाइल संकट से जानती है, जब दुनिया परमाणु युद्ध के कगार पर जा पहुंची थी। अमेरिका के आगे कभी नहीं झुकने वाले क्यूबा के क्रांतिकारी कम्युनिस्ट नेता फिदेल कास्त्रो का 90 साल की उम्र में शनिवार को निधन हो गया।
कास्त्रो के सोवियत रूस के साथ जुड़ाव के कारण 1962 में विश्व परमाणु युद्ध के कगार पर पहुंच गया था। क्यूबा ने तत्कालीन सोवियत रूस को अपनी सीमा में परमाणु मिसाइल तैनात करने की इजाजत दी थी। फिदेल ने इस योजना के बारे में अमेरिका की खुफिया एजेंसी तक को भनक नहीं लगने दी।
रूस ने अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य से मात्र 144 किलोमीटर दूर परमाणु हथियार ले जाने वाली मिसाइल स्थापित करने की योजना बनाई थी। प्रतिद्वंद्वी महाशक्तियों के बीच तनावपूर्ण गतिरोध के बाद क्यूबाई जमीन से मिसाइल दूर रखने पर मॉस्को के सहमति जताने पर दुनिया परमाणु युद्ध के संकट से बच गई।
यूरोप में साम्यवाद का पतन हो चुका था और क्यूबा सोवियत संघ के सहारे टिका रहा। लेकिन फिदेल के नेतृत्व में क्यूबा न केवल टिका रहा बल्कि तमाम आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करते हुए लैटिन अमेरिकी देशों के लिए मिसाल बन कर उभरा। लंबे समय तक शासन करने के बाद क्यूबा ने 2006 में राजनीति से संन्यास लेते हुए शासन की बागडोर अपने छोटे भाई राउल कास्त्रों को सौंप दी।
13 अगस्त 1926 को जन्मे फिदेल के पिता एक समृद्ध स्पेनी प्रवासी जमींदार थे और उनकी मां क्यूबा निवासी थी। बचपन से ही कास्त्रो चीजों को बहुत जल्दी सीख जाते थे। वह बेसबॉल खेल के प्रशंसक थे। उनका अमेरिका की बड़ी लीगों में खेलने का सुनहरा सपना था लेकिन खेल में भविष्य बनाने का सपना देखने वाले फिदेल ने बाद में राजनीति को अपना हमसफर बनाया।
उन्होंने फुलगेंसियो बतिस्ता की अमेरिका समर्थित सरकार के विरोध में गुरिल्ला संगठन बनाया। बतिस्ता ने 1952 के तख्तापलट के बाद सत्ता पर कब्जा किया था। बतिस्ता के विरोध के कारण युवा फिदेल को दो साल जेल में रहना पड़ा और इसके बाद वह निर्वासन में चले गए जहां, उन्होंने विद्रोह के बीज बोए।
फिदेल ने अपने समर्थकों के साथ ग्रानमा पोत से दक्षिण पूर्वी क्यूबा में कदम रखते ही 2 दिसंबर 1956 को क्रांति की शुरुआत की। फिदेल ने सभी चुनौतियों से पार पाते हुए 25 महीनों बाद बतिस्ता को सत्ता से बेदखल किया और प्रधानमंत्री बने। एक समय निर्विवाद रूप से सत्ता में रहे फिदेल का झुकाव सोवियत संघ की ओर था।
अमेरिकी प्रतिबंध को धत्ता बताते रहे कास्त्रो
अमेरिका के 11 राष्ट्रपति सत्ता में आकर चले गए लेकिन फिदेल सत्ता में बने रहे। इस दौरान अमेरिका के हर राष्ट्रपति ने 1959 की क्रांति के बाद से उनके शासन पर दशकों तक दबाव बनाने की कोशिश की। इस क्रांति ने 1989 के स्पेनी-अमेरिकी युद्ध के बाद से क्यूबा पर वॉशिंगटन के प्रभुत्व के लंबे दौर का अंत कर दिया।
कास्त्रो विश्व के मंच पर ऐसे समय में कम्युनिस्ट नेता बन कर उभरे जब दुनिया शीतयुद्ध के चरम पर थी। उन्होंने 1975 में अंगोला में सोवियत के बलों की मदद के लिए 15,000 जवान भेजे और 1977 में ईथियोपिया में जवान भेजे। कास्त्रो ने अमेरिका की इच्छा के विपरीत काम किया और अमेरिका को कई बार नाराज, शर्मिंदा और सचेत किया।
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अमेरिका ने क्यूबा में विद्रोह की आस में आर्थिक प्रतिबंध लगाए लेकिन इसके बावजूद फिदेल के सत्ता में बने रहने से उसे हताशा ही हाथ लगी। क्यूबाई राष्ट्रपति ने स्वयं कई बार इस क्यूबा में आर्थिक परेशानियों के लिए प्रतिबंध को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने अपने देश के एक करोड़ 10 लाख लोगों को बार-बार यह याद दिलाया कि अमेरिका ने क्यूबा पर पहले भी हमला किया है और वह किसी भी समय ऐसा दोबारा कर सकता है।
1989 में सोवियत संघ से मदद नहीं मिल पाने के कारण अर्थव्यवस्था चरमरा जाने के बाद फिदेल ने क्यूबा में अधिक अंतरराष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा दिया और कुछ आर्थिक सुधार किए।
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HIGHLIGHTS
- फिदेल कास्त्रो ने अमेरिका को निशाने पर लेने वाले मिसाइल की तैनाती कर वैश्विक संतुलन को हिला कर रख दिया था
- फिदेल ने मिसाइल तैनाती की योजना के बारे में अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए तक को भनक नहीं लगने दी
Source : News Nation Bureau