अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA के बाद मोसाद दुनिया की दूसरी सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसी है. मोसाद पूरी दुनिया में अपने 'गुप्त-ऑपरेशनंस' और दुश्मन के इलाके में घुसकर खुफिया तरीके से ऑपरेशन को अंजाम देने की क्षमता के लिए जानी जाती है. जासूसी की कला, जाल कैसे बिछाना और दुश्मन के सैन्य अड्डे या आतंकवादी संगठनों के बारे में जानकारी हासिल करना, इस कला में शायद मोसाद के एजेंटों से बेहतर कोई नहीं है. इसीलिए मोसाद को दुनिया की सबसे ताकतवर एजेंसी माना जाने लगा. वहीं इसके पीछे मोसाद की कई ऐतिहासिक सफलताएं भी हैं.
क्या हमास के हमले के वक्त सो रही थी मोसाद
अब सवाल ये है कि इतनी ताकतवर मोसाद को अपने ही देश पर हुए हमले के बारे में कैसे पता नहीं चल सका. हमास के आतंकियों ने कैसे कर दिया इतना बड़ा हमला? क्या हमास के हमले के वक्त सो रही थी मोसाद? या हमास ने मोसाद को चकमा दे दिया है? या फिर हमास को ऐसे देशों की खुफिया एजेंसियों ने मदद की जो मोसाद को चकमा देने में माहिर हो.
मोसाद आधुनिक दृष्टि से ताकतवर है तो फिर असफल कैसे हुई?
आपको बता दें कि मोसाद इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस यानी मोबाइल फोन, लैंडलाइन, रेडियो सेट और रडार फ्रीक्वेंसी पर नजर रखने या सुनने पर ज्यादा निर्भर करती है. पेगासस जैसे जासूसी ऐप बनाकर वे लोगों के मोबाइल फोन में प्रवेश कर सकते हैं ताकि असामाजिक तत्वों की हर गतिविधि पर नजर रखी जा सके या वे दुश्मन के घर या कार्यालय को बर्बाद कर सकें, यानी वहां रखे सामान में सुनने की डिवाइस लगा सकें. कमांड और कंट्रोल सेंटर की दूर से निगरानी करें. सोशल मीडिया पर नजर रखना भी जासूसी का एक हिस्सा है और आतंकवादी और कट्टरपंथी ताकतों पर नजर रखना भी जासूसी का एक हिस्सा है.
क्या मोसाद के एजेंट जमीन पर नहीं थे एक्टिव?
ये सब आधुनिक चीजें हैं जो मोसाद करती है, लेकिन अगर मोसाद का दुश्मन मोबाइल फोन या इंटरनेट की दुनिया में नहीं रहता तो फिर मोसाद कैसे भांप पाएगा कि उसका दुश्मन क्या कर रहा है? क्योंकि आतंकियों को भी यह एहसास हो गया है कि इंटरनेट और फोन पर उनके काम करने का मतलब है कि पकड़े जाने का खतरा है. अब जब मोसाद पूरी तरह से आधुनिक हो गया है, तो यह माना जा सकता है कि हमास के शीर्ष कमांडर और आतंकवादी एक-दूसरे से बात करने और जानकारी या निर्देश देने के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग नहीं करते होंगे.
वे सभी काफी समय से सोशल मीडिया पर एक्टिव नहीं होंगे. यही वजह हो सकती है कि मोसाद या इजरायल की घरेलू खुफिया एजेंसी शिन-बेट को हमास की लंबे समय से चल रही हमले की साजिश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. इतना तो साफ है कि इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन के साथ-साथ एजेटों को जमीन पर रहना होगा. तो सवाल है कि क्या मोसाद और घरेलू एजेंसी शिन-बेट के एजेंट ज़मीन पर एक्टिव नहीं थे?
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हमास के आतंकियों ने कहां ली ट्रेनिंग?
मोसाद की फेल्यूर का एक बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि हमास के आतंकवादियों को ईरान या किसी अन्य शक्तिशाली देश से मदद मिली रही हो क्योंकि जिस तरह से हमास के आतंकियों ने जमीन, समुद्र और आसमान से एक साथ हमला किया, उससे साफ है कि उन्हें लंबी ट्रेनिंग दी गई थी. हमास के आतंकियों ने भी पैराग्लाइडिंग के जरिए इजराइल में घुसपैठ की थी. आपको बता दें कि पैराग्लाइडिंग रातोरात नहीं सीखी जा सकती है, उसके लिए बहुत समय लगता है. और यह भी तय है कि आप किसी बंद कमरे या हॉल में पैराग्लाइडिंग नहीं सीख सकते हैं.
उसके लिए खुला मैदान और खुला आसमान चाहिए. ये भी साफ है कि ऐसी जगह गाजा पट्टी में मौजूद नहीं हो सकती. अगर ऐसा होता तो इजराइल ने इसे जरूर पकड़ लिया होता. ऐसे में हमास के आतंकियों ने ऐसी ट्रेनिंग ईरान, लेबनान या किसी अन्य मित्र देश में सीखी होगी.
क्या पाकिस्तान ने हमास के आतंकियों की दी ट्रेनिंग
यहां ये भी बताना जरूरी है कि हाल ही में भारत में एक वीडियो वायरल हुआ था. यह वीडियो जम्मू-कश्मीर में कोकेरनाग आतंकी हमले के दौरान सामने आया था. वीडियो में एक बड़े ड्रोन को एक आदमी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते देखा जा सकता है. उस वक्त कहा जा रहा था कि पाकिस्तान से संचालित होने वाला आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा अपने आतंकियों को भारत में घुसपैठ करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दे रहा है.
ऐसे में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान ने ही हमास के आतंकियों को ट्रेनिंग दिया. क्योंकि ज्यादातर इस्लामिक देशों की तरह पाकिस्तान भी न सिर्फ फिलिस्तीन का समर्थन करता है बल्कि इजराइल को भी अपना दुश्मन मानता है.
क्या एजेंट छुट्टियों में भूल गए थे अपने काम?
मोसाद की विफलता का एक कारण यह भी माना जाता है कि उसके एजेंट योम किप्पुर का जश्न मनाने में व्यस्त थे, इसलिए उन्हें हमास के हमले की जानकारी नहीं मिली. लेकिन योम किप्पुर उत्सव हमले से एक दिन पहले 6 अक्टूबर को था. भले ही एजेंट एक-दो दिन पहले छुट्टियां मना रहे हों, लेकिन ये हमला एक-दो दिन के लिए प्लान किया गया हमला नहीं है. हमास इस हमले का काफी समय से इंतजार और तैयारी कर रहा होगा.
पहली बार फेल नहीं हुआ मोसाद
अब सवाल ये भी है कि इजराइल में हो रहे आंतरिक तोड़फोड़ के कारण हमास ने मौका खोज लिया? इसके पीछे ये भी कारण हो सकता है कि कुछ सालों पहले इजराइल ने कई फिलिस्तीनीं नागरिकों को रोजगार दिया था. इजराइल ये समझ चुका था कि अब हमास युद्ध विराम जैसी स्थिति में चला गया है. इसलिए वो लगातार फिलिस्तीनियों की मदद कर रहा था, उन्हें आजीविका प्रदान करने के लिए काम दे रहा था. इस दौरान आम फिलिस्तीनियों के भेष में हमास के आतंकी भी उन रोजगारों के हिस्सा थे. हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि मोसाद विफल रही है.
ठीक 50 साल पहले यानी 1973 में जब इजराइल के लोग योम किप्पुर के दिन जश्न मनाने में व्यस्त थे तो अरब देशों ने मिलकर हमला कर दिया था और उस वक्त भी इजराइल की खुफिया एजेंसी फेल साबित हुई थी. हमास आतंकियों ने सुनियोजित तरीके से हमला किया था, जैसे 7 अक्टूबर को हमास आतंकियों ने हमला किया.
Source : News Nation Bureau