चीन में कारखानों की गतिविधियों में सात महीने बाद नवंबर में पहली बार सुधार देखा गया. शनिवार को जारी आंकड़ों में इसकी जानकारी मिली. चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के आंकड़ों के अनुसार, खरीद प्रबंध सूचकांक (पीएमआई) नवंबर महीने में अक्टूबर के 49.3 से बढ़कर 50.2 पर पहुंच गया. सूचकांक के 50 से ऊपर होने का अर्थ गतिविधियों में विस्तार होता है जबकि सूचकांक का 50 से नीचे रहने संकुचन का द्योतक होता है.
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आंकड़ों के अनुसार, चीन के वस्तुओं की विदेश में मांग नरम बनी हुई है. हालांकि नये निर्यात ऑर्डरों का सूचकांक बढ़कर सात महीने के उच्चतम स्तर 48.8 पर पहुंच गया. उल्लेखनीय है कि अमेरिका के साथ जारी व्यापार युद्ध के कारण चीन को आर्थिक मोर्चे पर लगातार दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
पाकिस्तान में छात्रों का देशव्यापी प्रदर्शन, 'आजादी' के नारों की गूंज
इस्लामाबाद: छात्र संघों की बहाली, बेहतर व सुलभ शिक्षा उपलब्ध कराने व परिसरों में किसी भी तरह के लैंगिक तथा धार्मिक भेदभाव के खिलाफ पाकिस्तान के छात्र-छात्राओं ने शुक्रवार को देशव्यापी प्रदर्शन किया. उनके इस आंदोलन में समाज के अन्य तबकों के लोग भी शामिल हुए. सभी प्रांतों में शुक्रवार को जगह-जगह निकाले गए 'छात्र एकजुटता मार्च' में अभिव्यक्ति व दमन से आजादी की मांग करते हुए 'हमें क्या चाहिए..आजादी' के नारे लगाए गए.
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प्रदर्शन का आह्वान देश भर के छात्र संगठनों के प्रतिनिधियों को मिलाकर बनाई गई स्टूडेंट एक्शन कमेटी (एसएसी) ने किया था. इसे राजनैतिक दलों के साथ-साथ, किसान, मजदूर व अल्पसंख्यक समुदायों के संगठनों का समर्थन हासिल था. विद्यार्थियों की सर्वाधिक प्रमुख मांग छात्र संघ की बहाली है. इसके साथ वे शिक्षा के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं, छात्राओं के साथ होने वाले भेदभाव का खात्मा चाह रहे हैं तथा परिसरों से सुरक्षा बलों को बाहर निकालने और हॉस्टल व परिवहन की सुविधा की मांग कर रहे हैं.
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कराची में निकाले गए मार्च में विद्यार्थियों के साथ-साथ उनके माता-पिता, वकील व सिविल सोसाइटी के सदस्य भी शामिल हुए. मार्च में 'हमें क्या चाहिए..आजादी' के नारे गूंज रहे थे. जिन इलाकों से होकर यह मार्च गुजरा, वहां के दुकानदारों ने कुछ देर के लिए दुकानें बंद कर छात्रों के प्रति अपना समर्थन जताया. कराची के मार्च में शामिल वकील व सामाजिक कार्यकर्ता जिबरान नासिर ने कहा, 'मैं अपने देश के भविष्य का समर्थन करने आया हूं. हमें यह समझना होगा कि अगर हम अतीत के स्मारकों पर ही रोशनी डालते रहेंगे तो फिर भविष्य को हम प्रकाशमान नहीं कर सकेंगे.'