पाकिस्तान के भूतपूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने बुकर पुरस्कार विजेता ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में हुए हमले को पूरी तरह से 'अनुचित' बताया है. ब्रिटिश अखबार 'द गार्डियन' को दिए साक्षात्कार में इमरान खान (Imran Khan) ने हमले को 'दुखद और भयानक' करार देते हुए कहा कि मुंबई में जन्मे सलमान रुश्दी (Salman Rushdie) के विवादास्पद उपन्यास 'द सैटेनिक वर्सेज' (The Satanic Verses) के खिलाफ इस्लामिक देशों का गुस्सा समझ में आता है, लेकिन फिर भी रुश्दी पर हमला पूरी तरह से अनुचित है. गौरतलब है कि 2012 में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) पार्टी के सर्वेसर्वा इमरान ने नई दिल्ली में एक मीडिया कॉन्क्लेव में भाग लेने से सिर्फ इसलिए इंकार कर दिया था कि उसमें सलमान रुश्दी भी भाग लेने वाले थे. उस वक्त इमरान खान ने कहा था कि वह किसी भी ऐसे कार्यक्रम में शिरकत करने के बारे में सोच भी नहीं सकते, जिसमें वैश्विक स्तर पर मुसलमानों (Muslims) की भावनाएं आहत करने वाले सलमान रुश्दी भी शामिल हों.
रुश्दी के खिलाफ गुस्सा समझ में आता है, लेकिन हमला सही नहीं
अब इमरान खान ने 'द गार्डियन' को दिए साक्षात्कार में कहा है, 'एक मुस्लिम परिवार से आने के कारण सलमान रुश्दी धार्मिक भावनाओं को अच्छे से समझ सकते हैं. वह हमारे दिल में बसे मोहम्मद साहब के लिए प्यार, सम्मान और श्रद्धा को जानते-समझते हैं. ऐसे में उनके प्रति गुस्सा समझता हूं, लेकिन जो कुछ भी हुआ उसे कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता.' गौरतलब है कि ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में 24 साल के न्यू जर्सी के रहने वाले हादी मटर ने हमला कर दिया था. चाकू से किए गए कई वार से सलमान रुश्दी के पेट, सीधी आंख और छाती पर गंभीर घाव आए थे. 1988 में 'द सैटेनिक वर्सेज' के प्रकाशन के बाद ही ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी ने फतवा जारी कर दिया था.
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13 साल छिप कर रहे थे फतवे के डर से रुश्दी
इस फतवे को अमल में लाने वाले को उस वक्त 28 लाख डॉलर का ईनाम देने की घोषणा की गई थी. इस फतवे से बचने के लिए सलमान रुश्दी को 'जोसेफ एंटोन' के छद्म नाम से 13 साल काटने पड़े. बाद में इसी नाम से उन्होंने एक अन्य किताब भी लिखी. दहशत का आलम यह था कि फतवा जारी होने के शुरुआती छह महीनों में रुश्दी ने कम से कम 56 बार घर बदला. सिर्फ सलमान रुश्दी ही नहीं, बल्कि उपन्यास के प्रकाशन से जुड़े सभी लोगों के खिलाफ फतवा जारी हुआ था. 'द सैटेनिक वर्सेज़' का जापानी भाषा में अनुवाद करने वाले जापानी लेखक और विद्वान हितोशी इगारशि जुलाई 1991 में सुकूबा यूनिवर्सिटी के कैंपस में मृत पाए गए. किसी ने उन्हें चाकू से गोद दिया था. हितोशी की हत्या से एक हफ्ते पहले मिलान में 'द सैटेनिक वर्सेज़' का इतालवी में अनुवाद करने वाले इत्तोर कैप्रियोलो पर भी उनके अपार्टमेंट में हमला हुआ था. हालांकि वह इसलिए बच गए क्योंकि हमलावर उन्हें मरा समझ कर फरार हो गया था.
HIGHLIGHTS
- 'द गार्डियन' को दिए साक्षात्कार में पीटीआई चीफ इमरान खान ने हमले को 'दुखद और भयानक' करार दिया
- 2012 में नियाजी खान ने रुश्दी के कारण नई दिल्ली की एक मीडिया कॉन्क्लेव में भाग लेने से किया था इंकार
- 1988 में 'द सैटेनिक वर्सेज' के प्रकाशन के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने किया था फतवा जारी