पाकिस्तान सरकार (Pakistan Government) ने सैन्य प्रमुख के कार्यकाल विस्तार के मामले में जब से एक बड़ी पीठ का गठन करने का अनुरोध किया है, तभी से कानूनी हलकों में बहस छिड़ गई है और हर कोई इस संबंध में अदालत की सुनवाई का बेसब्री से इंतजार कर रहा है. डॉन न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सैन्य प्रमुख कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल विस्तार के बारे में उसके 28 नवंबर के फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया है.
हर किसी के मन में यही सवाल है कि क्या प्रधान न्यायाधीश गुलजार अहमद पांच न्यायाधीशों वाली पीठ का गठन करेंगे या इससे भी बड़ी पीठ गठित होगी?. इसके अलावा सवाल यह भी है कि क्या वह पीठ का नेतृत्व खुद करेंगे या सरकार के अनुरोध को ही अस्वीकार कर दिया जाएगा. इसके साथ ही सवाल है कि क्या मामले को उसी पीठ के पास भेज दिया जाएगा, जिसने पहले फैसला सुनाया था.
लोगों द्वारा लगाए जा रहे कयासों के बीच सभी का मानना है कि संवैधानिक तरीके से देश के सर्वोत्तम हित में कथित संस्थागत ध्रुवीकरण को खत्म करने का समय आ गया है. संघीय सरकार ने गुरुवार को 28 नवंबर के फैसले की समीक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी. उस समय तीन न्यायाधीशों वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ में पूर्व प्रधान न्यायाधीश आसिफ सईद खोसा, न्यायमूर्ति मजहर आलम खान और सईद मंसूर अली शाह शामिल थे.
अगर संसद ने कानून नहीं बनाया और उनकी सेवा अवधि निर्धारित नहीं की गई तो सरकार द्वारा सैन्य प्रमुख बाजवा को दिया गया विस्तार छह महीने के बाद खत्म हो जाएगा. एक वरिष्ठ वकील ने कहा, "पीठ का गठन प्रधान न्यायाधीश के विवेक पर आधारित है, मगर चूंकि मामला सार्वजनिक महत्व का है, इसलिए फैसला खुली सुनवाई के बाद होना चाहिए."
सुप्रीम कोर्ट के नियमों के तहत सामान्य व्यवहार यह है कि पुनर्विचार याचिका उस पीठ के सामने रखी जाती है, जिसने पहले सुनवाई की थी. नियम यह भी सुझाव देते हैं कि जब तक अदालत कुछ विशेष परिस्थितियों में एक अलग वकील की अनुमति नहीं देती, तब तक मामले में उसी वकील द्वारा दलील पेश की जाए, जो पहले याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करता था.
सुप्रीम कोर्ट 5 जनवरी तक शीतकालीन अवकाश पर है. हालांकि, विभिन्न पीठों द्वारा सामान्य मामलों की सुनवाई की जा रही है. यह संभावना है कि अगर सरकार की याचिका के लिए अगले सप्ताह तक तारीख तय नहीं की जाती है, तो मामले को छुट्टियों के बाद ही एक पीठ के समक्ष रखा जा सकता है. मगर एक बात तय है कि जब तक 28 नवंबर के फैसले को रद्द नहीं किया जाता, तब तक सरकार सैन्य प्रमुख के सेवा कार्यकाल का निर्धारण करने के लिए संसदीय कार्यवाही शुरू करके इसमें निहित निर्देशों को लागू करने के लिए बाध्य है.
Source : IANS