तालिबान पर भारतीय रणनीति में बड़ा बदलाव, अमेरिकी से समझौते में भारत भी होगा शामिल

पहली बार तालिबान और अमेरिका के बीच होने जा रहे शांति समझौते (Peace Deal) में भारत की भी उपस्थिति रहेगी. दोहा (Doha) में 29 फरवरी को होने वाले समझौते में भारतीय राजदूत (Indian Ambassador) भी शामिल होंगे.

author-image
Nihar Saxena
एडिट
New Update
US Taliban Peace Deal

दोहा में 29 फरवरी को होगा तालिबान-अमेरिका शांति समझौता.( Photo Credit : न्यूज स्टेट)

Advertisment

अमेरिका (US) और तालिबान (Taliban) से दो साल पहले शुरू हुई शांति वार्ता (Peace Talks) को लेकर भारतीय रणनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. इस बदलाव के तहत पहली बार तालिबान और अमेरिका के बीच होने जा रहे शांति समझौते (Peace Deal) में भारत (India) की भी उपस्थिति रहेगी. दोहा (Doha) में 29 फरवरी को होने वाले समझौते में भारतीय राजदूत (Indian Ambassador) भी शामिल होंगे. भारत ने कतर (Qatar) में तैनात भारतीय राजदूत पी कुमारन को दोहा भेजने का निर्णय किया है. यह पहली बार होगा जब कोई भारतीय अधिकारी ऐसे समारोह में शामिल होगा जिसमें तालिबान प्रतिनिधि भी मौजूद होंगे. इसके पहले तक भारत अच्छे-बुरे तालिबान (Good-Bad Taliban) के भेद को सिरे से नकारता आया है.

यह भी पढ़ेंः कौन कर रहा है शाहीन बाग प्रदर्शन की फंडिंग? दिल्‍ली हाई कोर्ट ने केंद्र-दिल्‍ली सरकार को जारी किया नोटिस

अब तक भारत ने नहीं दी है तालिबान को मान्यता
गौरतलब है कि भारत ने 1996 से 2001 के दौरान पाकिस्तान के संरक्षण में फल-फूले तालिबान की सरकार को कभी भी कूटनीतिक और आधिकारिक मान्यता नहीं दी थी. भारत का हमेशा मानना रहा कि तालिबान को मुख्यधारा में लाने का परिणाम क्षेत्र में पाकिस्तान को खुली छूट देने जैसे होगा. हालांकि 2018 में भारत मास्को फॉर्मेट पर तालिबान संग बातचीत में शामिल हुआ था. उस वक्त भारत का प्रतिनिधित्व पाकिस्तान में पूर्व राजदूत रहे टीसीए राघवन और अफगानिस्तान के पूर्व राजदूत अमर सिन्हा ने किया था. अमर सिन्हा विदेश मंत्रालय में उस वक्त सचिव पद पर भी तैनात थे. यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए के 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम में शिरकत करने आए अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा भी था भारत-अमेरिका के बीच हुई विभिन्न मसलों पर बातचीत का एक अहम मुद्दा तालिबान शांति समझौता भी था.

यह भी पढ़ेंः एसएन श्रीवास्‍तव होंगे दिल्‍ली पुलिस के नए कमिश्‍नर, अमूल्‍य पटनायक की जगह लेंगे

उच्च स्तर पर विचार-विमर्श के बाद निर्णय
सूत्रों का कहना है कि भारत को कतर से निमंत्रण मिला है और उच्च स्तर पर विचार-विमर्श के बाद सरकार ने कतर में भारतीय राजदूत पी कुमारन को भेजने का फैसला किया है. इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारत पर इसके तमाम रणनीतिक, सुरक्षा और राजनीतिक प्रभाव होंगे. विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान की नई हकीकत को स्वीकारते हुए भारत अब तालिबान के साथ कूटनीतिक स्तर पर संपर्क साध सकता है. शांति वार्ता समझौते पर हस्ताक्षर होने के दौरान भारतीय प्रतिनिधि का होना इस बात का संकेत है कि भारत अपने कूटनीतिक चैनल तालिबान के लिए खोल सकता है. भारत अफगानिस्तान में तमाम विकास कार्यों पर काम कर रहा है. इसके अलावा अफगानिस्तान में रणनीतिक तौर पर भी भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है.

यह भी पढ़ेंः शेयर बाजार में हाहाकार, सेंसेक्स 1,100 प्वाइंट से ज्यादा लुढ़का, करीब 4 लाख करोड़ रुपये डूबे

29 फरवरी को होना है शांति समझौता
यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 21 फरवरी को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा था कि अमेरिका और तालिबान 29 फरवरी को शांति समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे जिससे दशकों से गृहयुद्ध झेल रहे अफगानिस्तान में जारी हिंसा का अंत होगा. गौरतलब है कि तालिबान शांति समझौते के तहत एक समयसीमा के भीतर अफगानिस्तान में तैनात 14,000 अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाया जाएगा. बदले में, तालिबान आतंकवाद खत्म करने का वादा करेगा और अमेरिका को आश्वस्त करेगा कि उनकी जमीन से 9/11 जैसा हमला नहीं दोहराया जाएगा.

यह भी पढ़ेंः Delhi Violence Live Updates: दिल्ली हिंसा में अब तक 39 लोगों की मौत, राजधानी को मिला नया कमिश्नर

पाकिस्तान की भूमिका खारिज करता आया है भारत
भारत अफगानिस्तान में अन्य सक्रिय ताकतों रूस, ईरान, सऊदी अरब और चीन के साथ नियमित तौर पर बातचीत में शामिल रहा है. पिछले दो सालों से भारत, अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते को लेकर हो रही बैठकों पर करीबी से नजर बनाए हुए हैं. हालांकि, भारत ने हमेशा से अफगान सरकार के नेतृत्व में और अफगान नियंत्रित शांति प्रक्रिया का समर्थन किया है और इसमें पाकिस्तान की भूमिका को खारिज किया है. पाकिस्तान लंबे वक्त से तालिबान को संरक्षण प्रदान करता रहा है और उसका तालिबान पर अच्छा-खासा प्रभाव भी है. तालिबान पर अपने इसी प्रभाव का इस्तेमाल वह कश्मीर व अन्य मुद्दों पर अमेरिका को ब्लैकमेलिंग करने में भी करता रहा है.

यह भी पढ़ेंः दिल्ली हिंसा को लेकर मोहन भागवत बोले- देश की जिम्मेदारी हमारी

हालांकि अमेरिका में तालिबान पर दो राय
यह अलग बात है कि क्षेत्र में शांति बहाली के लिए अमेरिकी-तालिबान शांति प्रक्रिया में अफगानिस्तान की सरकार को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया, जिससे एक समय भारत अलग-थलग महसूस कर रहा था. यही नहीं, अफगानिस्तान की अब्दुल गनी सरकार शांति समझौते का यह कहकर विरोध करती रही है कि इसमें अमेरिकी सेना के लौटने के बाद क्षेत्र में अस्थिरता रोकने के पर्याप्त कदम शामिल नहीं किए गए हैं. और तो और, ट्रंप प्रशासन में भी तालिबान की विश्वसनीयता को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं. विश्लेषकों का डर है कि अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से लौटने के बाद वहां अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट अपने पैर कहीं मजबूती से जमा सकते हैं.

HIGHLIGHTS

  • दोहा में 29 फरवरी को होने वाले समझौते में भारतीय राजदूत भी शामिल होंगे.
  • कतर में तैनात भारतीय राजदूत पी कुमारन को दोहा भेजने का निर्णय.
  • हालांकि ट्रंप प्रशासन में भी तालिबान की विश्वसनीयता को लेकर संदेह.
INDIA pakistan afghanistan taliban America doha ISIS Peace Deal AlQaada
Advertisment
Advertisment
Advertisment