यूक्रेन मसले पर मोदी सरकार के समक्ष गंभीर कूटनीतिक चुनौती भी आन खड़ी हुई है. मोदी सरकार के सामने नए-पुराने दोस्त में चयन का अहम संकट है. गौरतलब है कि यूक्रेन को लेकर अमेरिका और रूस में तनाव गंभीर स्थिति में पहुंच चुका है. ऐसे में विगत दिनों चीन ने रूस के पक्ष में अपील कर भारत के लिए दोनों में चयन की कूटनीतिक चाल चल दी. ऐसी स्थिति में भारत ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन मसले पर हुई वोटिंग से दूरी बनाए रखना ही उचित समझा.
भारत ने नहीं डाला वोट
कूटनीतिक स्तर पर ऐसा जरूरी भी था. अगर भारत रूस के पक्ष में वोट देता, तो अमेरिका समेत कई अन्य पश्चिमी देश नाराज हो सकते थे. दूसरी तरफ अगर भारत यूक्रेन के समर्थन करता, तो इससे रूस के साथ रिश्तों पर गंभीर असर पड़ सकता था. ऐसे में भारत ने बीच का रास्ता चुनते हुए मतदान से दूरी बनाए रखी. यूक्रेन और रूस के बीच इस समय युद्ध जैसे हालात हैं. रूस ने अपनी सीमा पर 1 लाख सैनिकों को भारी हथियारों के साथ तैनात किया हुआ है. वहीं यूक्रेन भी अमेरिका और बाकी नाटो देशों के हथियारों को रूसी सीमा पर भेज रहा है.
सुरक्षा परिषद में बुलाई गई थी बैठक
गौरतलब है कि यूक्रेन पर चर्चा के लिए सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक आहूत की गई थी. बैठक से पहले सुरक्षा परिषद में स्थायी वीटो की ताकत रखने वाले रूस ने यह निर्धारित करने के लिए एक प्रक्रियात्मक वोट का आह्वान किया कि क्या खुली बैठक आगे बढ़नी चाहिए. जाहिर है विद्यमान वैश्विक समीकरणों के तहत रूस और चीन ने बैठक के खिलाफ मतदान किया, जबकि भारत, गैबॉन और केन्या ने भाग नहीं लिया. नॉर्वे, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, आयरलैंड, ब्राजील और मैक्सिको सहित परिषद के अन्य सभी 10 सदस्यों ने बैठक के चलने के पक्ष में मतदान किया. तकनीकी तौर पर यूएनएससी की बैठक को आगे बढ़ाने के लिए परिषद को केवल नौ वोटों की आवश्यकता थी.
HIGHLIGHTS
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन पर खुली बैठक पर वोटिंग
- भारत, गैबॉन और केन्या ने मतदान में नहीं लिया भाग
- रूस और चीन ने डाला खिलाफ में वोट, पक्ष में पड़े 10 वोट