अफगानिस्तान में तालिबान का राज स्थापित हो चुका है. अफगानिस्तान में हुए इस सत्ता परिवर्तन को भारत अपने लिए चुनौती मानकर चल रहा था, लेकिन राजधानी दिल्ली में 10 नवंबर को हुए सम्मेलन में चीजें कुछ बदलती नजर आईं. भारत ने इस सम्मेलन में रूस और ईरान 8 देशों को आमंत्रित किया था. इस दौरान सभी देशों ने इस बात पर सुर में सुर मिलाया कि अफगानिस्तान का इस्तेमाल भारत व अन्य देशों में आतंकवाद फैलाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. यहां गौर करने वाली बात यह रही कि अफगानिस्तान के मुद्दे पर इस्लामिक देश ईरान भारत का सहयोगी बनता दिखाई पड़ा. इसकी एक वजह यह भी मानी जा रही है कि भारत की तरह ईरान के भी पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं. इसलिए ईरान नहीं चाहेगा कि अफगानिस्तान में किसी भी तरह पाकिस्तान की भूमिका मजबूत हो.
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इसके साथ अफगानिस्तान में पनप रहे इस्लामिक स्टेट के संभावित खतरे से निपटना भी एक चुनौती बनी हुई है. भारत की तरह ही यह तालिबान ईरान के लिए भी चिंता का कारण बना हुआ है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि इस्लामिक स्टेट सुन्नी कट्टरपंथी विचारधारा को मानने वाला है और शिया मुल्क ईरान को अपना शत्रु समझता है. यहां समझने वाली बात यह है कि पाकिस्तान और ईरान सतही तौर पर भले ही इस्लामिक देश नजर आते हैं, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है. दोनों मुल्कों के बीच एक खाई है, जिसको भरना असंभव के करीब है.
Source : News Nation Bureau