भारत और इंडोनेशिया के बीच अंडमान-निकोबार द्वीप से सुमात्रा द्वीप तक विशेष कार्य बल गठित कर व्यापार, पर्यटन और सैन्य गितविधियों को बढ़ाने पर सहमति बनी है।
भारत के एक्ट ईस्ट नीति के तहत इसके दक्षिणपूर्व एशिया के साथ बढ़ते संबंधों को दर्शाते हुए दोनों पक्षों ने 'इंडोनेशिया और भारत के बीच व्यापक सामरिक साझेदारी की स्थापना' को लेकर एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि मोदी और विदोदो ने द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और पारस्परिक हित के वैश्विक मुद्दों पर विस्तार से बात किया और रणनीतिक दिशा प्रदान किए, जो दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों को बढ़ाएंगे।
बयान में कहा गया, 'दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने के लिए दोनों पक्षों के नेता वार्षिक शिखर सम्मेलन के अलावा अन्य बहुपक्षीय कार्यक्रमों का आयोजन कराने के लिए सहमत हो गए हैं।'
बयान के मुताबिक, दोनों नेताओं ने रणनीतिक साझेदारों और समुद्री पड़ोसियों के रूप में पहले से ही मजबूत रक्षा सहयोग को और मजबूत करने पर काम करने की फिर से पुष्टि की।
दोनों देशों के अधिकारिक बयान में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि सबांग बंदरगाह पर भारत-इंडोनेशिया के बीच व्यापार और आम संपर्क बढ़ने से आपस में मजबूत रिश्ते क़ायम होंगे, ख़ासकर समुद्री लिंक में।
मोदी ने इंडोनेशियाई राष्ट्रपति जोको विदोदो के साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद संयुक्त रूप से मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, 'हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आज के बदलते परिदृश्य में हम (भारत और इंडोनेशिया) भूरणनीतिक स्थान पर स्थित हैं।'
उन्होंने कहा, 'भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत, हमारे पास सागर सुरक्षा और क्षेत्र में सबके लिए विकास है, जो राष्ट्रपति विदोदो के वैश्विक समुद्री आधार के साथ मेल खाता है।'
समुद्री सहयोग पर बयान के मुताबिक, दोनों पक्षों ने स्वीकार किया कि 1,380 से अधिक द्वीपों व 7,500 किलोमीटर की तटरेखा और 20 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र के साथ भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में केंद्रीय स्थान पर है, जबकि इंडोनेशिया दुनिया के सबसे बड़े द्वीपसमूह के रूप में 108,000 किलोमीटर की तटरेखा व 17,504 द्वीपों और सुविधाओं व विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र समेत 6,400,000 वर्ग किलोमीटर के कुल समुद्री क्षेत्र के साथ हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ता है।
बता दें कि भारत-इंडोनेशिया समुद्री लिहाज़ से पड़ोसी देश हैं इस लिहाज़ से दोनों देशों के बीच इस करार के विशेष मायने हैं।
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इंडोनेशिया द्वारा भारत को सामरिक रूप से महत्वपूर्ण सबांग बंदरगाह के आर्थिक और सैन्य इस्तेमाल की मंजूरी देने के बाद से चीन काफी परेशान है।
इंडोनेशिया का सबांग बंदरगाह अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सामरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह द्वीप सुमात्रा के उत्तरी छोर पर है जो मलक्का स्ट्रैट के काफी करीब है। सबांग द्वीप के इस बंदरगाह की गहराई तकरीबन 40 मीटर है।
गहराई ज़्यादा होने की वजह से पनडुब्बी समेत कई तरह के सैन्य जहाज़ों को यहां आसानी से उतारा जा सकता है।
सबांग भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह के बीच की दूरी लगभग 710 किलोमीटर है। ऐसे में भारत के दृष्टिकोण से देखा जाए तो हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में जिस तरह से चीन की दिलचस्पी और प्रभुत्व बढ़ रहा है उसपर अंकुश लगाना ज़रूरी है और इस करार के बाद भारत के लिए यह आसान होगा।
व्यापार के नज़रिए से भी देखें तो एशियाई मुल्कों के लिए इंडोनेशिया का मलक्का स्ट्रैट काफी अहम है। चीन अपनी समुद्री व्यापार के लिए मलक्का स्ट्रैट का ख़ूब इस्तेमाल करता है।
मलक्का स्ट्रैट वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज़ से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से तेल गुज़रता है। साथ ही भारत का 40 फीसद समुद्री व्यापार इसी इलाके में पड़ता है।
Source : News Nation Bureau