भारत ने चीन (China) से गोलपोस्ट न बदलने और सीमा मामलों के प्रबंधन में भ्रम पैदा न करने तथा सीमा के सवाल को हल करने के वृहद मुद्दे के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बहाल करने को कहा है. पिछले साल मई में पूर्वी लद्दाख (Ladakh) में पैदा हुए गतिरोध के बाद भारत (India) लगातार कहता रहा है कि सीमावर्ती इलाकों में शांति दोनों देशों के संबंधों के संपूर्ण विकास के लिए आवश्यक है. चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिसरी ने चीन-भारत संबंधों पर चौथे उच्च स्तरीय ट्रैक-2 संवाद में कहा कि पड़ोसी होने के अलावा भारत और चीन बड़ी और उभरती अर्थव्यवस्थाएं हैं एवं मतभेद तथा समस्याएं होना असामान्य नहीं है. मिसरी ने कहा, ‘महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इनसे कैसे निपटा जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि हमारी सीमाओं पर शांति बनाए रखने के लिए नतीजे तार्किकता, परिपक्वता और सम्मान पर आधारित हो.’ मिसरी के अलावा भारत में चीन के राजदूत सुन वीदोन्ग ने भी बैठक में भाग लिया.
हिंसक संघर्ष के बाद हो चुकी है कई दौर की बातचीत
पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को हल करने के लिए दोनों पक्षों के शीर्ष सैन्य अधिकारियों और विदेश मंत्री एस जयशंकर तथा उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच कई दौर की बैठकों समेत पिछले साल से लेकर अब तक दोनों देशों द्वारा किए गए ‘बहुआयामी संवाद’ का जिक्र करते हुए मिसरी ने कहा, ‘इन बैठकों से जमीनी तौर पर अच्छी-खासी प्रगति हुई.’ उन्होंने कहा, ‘पिछले साल जुलाई में गलवान घाटी में सेना हटाने के बाद से दोनों पक्ष फरवरी 2021 में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिण किनारों तथा हाल में अगस्त 2021 में गोगरा से सेना हटा पाए.’ भारतीय राजदूत ने कहा, ‘पिछले डेढ़ साल में इस बहुआयामी संवाद के अनुभव से मुझे यकीन हुआ है कि जब द्विपक्षीय संबंधों में तनावपूर्ण मुद्दों को हल करने की बात आती है तो हम काफी सक्षम हैं. हमारे नेताओं ने पहले भी माना है कि हमें मुद्दों पर शांतिपूर्ण तरीकों, मतभेदों को विवादों में बदलने से रोकने और सबसे महत्वपूर्ण हमारे सीमावर्ती इलाकों में शांति बनाए रखने पर काम करना चाहिए.’
गोलपोस्ट बदलने से बचे बीजिंग
उन्होंने कहा, ‘सबसे पहले गोलपोस्ट बदलने से बचना चाहिए. लंबे समय से भारतीय और चीनी पक्षों ने सीमा का प्रश्न हल करने और सीमा मामलों के प्रबंधन के बीच अंतर का पालन किया है. हमारे नेताओं के बीच 1988 की समझ स्पष्ट रूप से सीमा के सवाल को अलग राह पर लेकिन समानांतर रखने को लेकर थी और शांति बनाए रखना इसकी पूर्व शर्त थी.’ मिसरी ने कहा कि विशेष प्रतिनिधि तंत्र, राजनीतिक मापदंडों पर समझौता और 2005 के मार्गदर्शक सिद्धांत तथा त्रिस्तरीय रूपरेखा सभी सीमा के सवाल पर काम करने के लिए बनाये गये, ‘जिसे हमने एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा माना जिस पर काम करने के लिए वक्त लगता है.’
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शांतिपूर्ण तरीके से हल हो सीमा विवाद
उन्होंने कहा, ‘सीमाओं पर तनावपूर्ण स्थिति की यह मूल वजह है. हम इसकी पैरवी करते हैं कि हमें सीमा मुद्दे को शांतिपूर्ण बातचीत से हल करना चाहिए और हम नहीं मानते कि सीमा विवाद का संबंध हमारे द्विपक्षीय संबंधों से होना चाहिए.’ भारतीय अधिकारी ने कहा कि इसलिए भारतीय पक्ष लगातार यह कह रहा है कि मौजूदा मुद्दा सीमावर्ती इलाकों में शांति बहाल करने को लेकर है और यह वृहद सीमा सवाल के बारे में नहीं है जिस पर पिछले साल जो हुआ, उसके बावजूद भारत का रुख बदला नहीं है.
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भारत चीन का बीच यह है विवाद
गौरतलब है कि भारत-चीन सीमा विवाद 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर है. चीन, अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताकर अपना दावा करता है जिसे भारत दृढ़ता से खारिज करता है. मिसरी ने यह भी कहा कि चीन को पारस्परिक चिंताओं और संवेदनशील मुद्दों पर एकतरफा राय नहीं रखनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘दूसरी बाधा चिंताओं और संवेदनशील मुद्दों पर एकतरफा राय रखने की है. विदेश मंत्री के तौर पर डॉ. एस जयशंकर ने कहा कि भारत-चीन संबंध आपसी सम्मान, परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर हितों के आधार पर आगे बढ़ने चाहिए.’ उन्होंने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय समुदाय में जहां हम बराबरी और एक-दूसरे के महत्वपूर्ण पड़ोसी होने के तौर पर संवाद करते हैं तो ऐसा नहीं हो सकता कि केवल एक पक्ष की चिंता प्रासंगिक हो जबकि दूसरे पक्ष को सुना ही न जाए.’ मिसरी ने कहा कि क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करना दोनों पक्षों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है. दूसरे पक्ष पर जिम्मेदारी थोपना काम नहीं आने वाला.
HIGHLIGHTS
- चीन-भारत संबंधों पर चौथा उच्च स्तरीय ट्रैक-2 संवाद
- भारत-चीन सीमा विवाद 3,488 किमी लंबी एलएसी पर
- सभी सीमा मुद्दों को शांतिपूर्ण बातचीत से हल किया जाए