साल 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण करके पूरी दुनिया को चौंका दिया था. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के इस बड़े फैसले से अमेरिका जैसी दुनिया की इकलौती महाशक्ति नाराज थी और अमेरिका समेत उसके तमाम सहयोगी देशों में भारत की आलोचना करते हुए पाबंदियां लगा दी थीं. उस वक्त भारत के दोस्त रूस के अलावा फ्रांस ही इकलौता ऐसा बड़ा देश था जिसे भारत के न्यूक्लियर टेस्ट से कोई परेशानी नहीं थी. तब के पीएम वाजपेयी के नेशनल सिक्योरिट एडवायजर ब्रजेश मिश्रा जब न्यूक्लियर टेस्ट के बाद समर्थन के लिए विदेश दौरों पर निकले तो उनका सबसे पहला पड़ाव फ्रांस ही था. कहा जाता है कि तब के फ्रांस के राष्ट्रपति जैक शिराक ने बृजेश मिश्रा से कहा था न्यूक्लियर टेस्ट करने में इतनी देर क्यों कर दी. एक ऐसे वक्त जब आधी दुनिया भारत के खिलाफ थी तब भारत के लिए फ्रांस के इस दोस्ताना रवैये ने दोनों देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी की शुरुआत की जिसके 25 बरस पूरे होने के मौके पर भारत के पीएम नरेंद्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर हैं. फ्रांस ने मोदी के अपनी बैस्टिल डे सेलीब्रेशन का गेस्ट ऑफ ऑनर बनाया है. बैस्टिल डे का फ्रांस में वही महत्व है जो भारत में गणतंत्र दिवस का. इस मौके पर भारत और फ्रांस के बीच कई बड़ी डिफेंस डील्स होने की भी बात है.
दरअसल फ्रांस भारत के लिए पिछले कुछ सालों में रूस का बाद दूसरा सबसे बड़ा डिफेंस सप्लायर्स बन कर सामने आया है. और मुश्किल वक्त में उसने अपना वादा निभाया भी है. 1998 में दोनों देशों के बीच रणनीति पार्टनरशिप शुरू होने के एक साल बाद ही भारत को फ्रांस की दोस्ती को परखने का मौका मिला था. 1999 में पाकिस्तान ने भारत की पीठ में छुरा घोंपते हुए कारगिल की की पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था. इस कब्जे को छुड़ाने के लिए इंडियन आर्मी ने ऑपरेशन विजय शुरू किया और उसकी मदद के लिए इंडियन एयरफोर्स ने ऑपरेशन सफेद सागर चलाया. उसका मकदस कारगिल की पहाड़ियों पर बंकर बनाकर छुपे पाकिस्तानी घुसपैठियों को बाहर निकालकर खदेड़ना था. एयरफोर्स के इस अभियान में मिराज-2000 बॉम्बर भी शामिल थे. जिन्हें भारत ने फ्रांस से ही खरीदा था. इस ऑपरेशन के लिए भारत को मिराज-2000 में इस्तेमाल होने वाले स्पेशल अम्युनिशन की दरकार थी और फ्रांस ने उस मुश्किल वक्त में भारत की हर जरूरत को बिना हिचक के पूरा किया. भारत के साथ फ्रांस का ऐसा दोस्ताना रवैया देखकर इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं है कि फ्रांस जल्द ही रूस की जगह भारत का भरोसेमंद डिफेंस सप्लायर बन जाएगा.
साल 2018 से 2022 के बीच भारत ने रूस के बाद सबसे ज्यादा हथियार फ्रांस के खरीदे हैं
अमेरिका, रूस की जगह भारत का सबसे बड़ा डिफेंस सप्लायर बनना चाहता है लेकिन भारत को रूस जैसी दमदार दोस्ती निभाने का कुव्वत तो बस फ्रांस में ही दिखाई देती है. दरअसल भारत पिछले कुछ वक्त से एक भरोसेंद पार्टनर की तलाश है क्योंकि रूस पर जिस तरह से पश्चिमी देशों ने पाबंदियां लगाई हैं उसके मद्देनजर अब रूस से हथियार खरीदना भारत के लिए मुश्किल होता जा रहा है. भारत के पास मौजूद 85 फीसदी बड़े हथियार रूस से ही खरीदे गए हैं. हथियारों की इस बिक्री के अलावा रूस संयुक्त राष्ट्र जैसे इंटरनेशनल मंच पर भी भारत का हमेशा साथ देता आया है. रूस की तरह फ्रांस भी यूएन की सिक्योरिटी काउंसिल के उन पांच देशों में शामिल है जिनके पास वीटो पावर है. इसके अलावा फ्रांस यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के बाहर निकल जाने के बाद उसका इकलौता न्यूक्लियर पावर वाला देश है. यानी फ्रांस के साथ भारत की दोस्ती धीरे-धीरे वही रूप लेती जा रही है जो भारत और रूस की दोस्ती का है. भारत की फौजों के पास रूस के अलावा फ्रांस से खरीदे गए बड़े हथियार भी हैं. राफेल फाइटर जेट्स, मिराज-2000 बॉम्बर्स,चेतक और चीता हेलीकॉप्टर्स, स्कॉर्पियन पंडुब्बी, हैमर मिसाइल और मिलान एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल. ऐसे फ्रांसीसी हथियार हैं जिन्हें भारत की फौजें बड़ी कामयाबी के साथ इस्तेमाल कर रही हैं.
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फ्रांस अब धीरे-धीरे भारत का सबसे भरोसेमंद सहयोगी बनता जा रहा है
रूस पिछले एक साल से भी ज्यादा वक्त से यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है.ये जंग जल्द ही खत्म होती नहीं दिख रही है और ऐसे में इस बात की पूरी आशंका है कि रूस भारत को हथियारों की सप्लाई का अपने कमिटमेंट पूरा ना कर सके और ये हो भी रहा है. ऐसे में पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मन देशों से घिरे भारत के लिए एक भरोसेंद मजबूत देश का साथ मिलना जरूरी है और फ्रांस इस कसौटी पर खरा उतरता दिख रहा है. य़ही वजह है कि भारत एक के बाद डिफेंस डील फ्रांस के साथ कर रहा है. वहीं दूसरी ओर फ्रांस को भी भारत की जरूरत शिद्दत के साथ महसूस सहो रही है. फ्रांस कहने के तो भले ही अमेरिका के गुट का हिस्सा है, लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर हाल ही में उसे एक बड़ा झटका दिया है.
दरअसल, फ्रांस ऑस्ट्रेलिया को 12 पारंपरिक पंडुब्बी बेचने की डील करने वाला था लेकिन अमेरिकी और ब्रिटेन ने ऑस्ट्रेलिया के साथ एक सीक्रेट बातचीत करके परमाणु पंडुब्बी की डील कर ली और फ्रांस की डील कैंसिल हो गई. इंग्लिश बोलने वाले इन तीन देशों अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के इस फैसले को फ्रांस ने अपमान के तौर लिया. और अब फ्रांस को उम्मीद है कि भारत के रूप में उसे अपने हथियारों का एक नया ग्राहक मिल जाएगा और बात सिर्फ हथियारों तक ही सीमित नहीं है. भारत और फ्रांस के बीच आपसी सहयोग न्यूक्लियर एनर्जी और अतरिक्ष कार्यक्रम में भी नजर आ रहा. फ्रांस के साथ इंजन डील में तो 100 फीसदी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात कही जा रही है. जबकि हाल ही में अमेरिका से साथ भारत की जेट इंजन की जो डील हुई है उसमें 80 फीसदी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात है. यानी फ्रांस अब धीरे-धीरे भारत का सबसे भरोसेमंद सहयोगी बनता जा रहा है.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau