श्रीलंका में बदले राजनीतिक घटनाक्रम में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने शुक्रवार रात को प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी. इससे पहले सिरिसेना की पार्टी ने सत्तारूढ़ गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया था. 18 अक्टूबर को श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भारत दौरे पर आए थे. उसके बाद हुई भारी उठापटक को इसी भारत दौरे से जोड़कर देखा जा रहा है. हालांकि महिंदा राजपक्षे को चीन समर्थित नेता माना जाता है. राजपक्षे पूर्व में आरोप लगाते रहे हैं कि उन्हें सत्ता से हटाने के लिए रॉ ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया था. कुछ विश्लेषक सिरिसेना और राजपक्षे के बीच हुई तालमेल को चीन के इशारे पर हुआ मान रहे हैं.
पैदा हो सकता है संवैधानिक संकट
विश्लेषकों के अनुसार, राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाने से देश में संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है. वहां के जानकारों का कहना है कि संविधान में 19वां संशोधन बहुमत के बिना विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से हटाने की अनुमति नहीं देगा. राजपक्षे और सिरिसेना के पास कुल 95 सीटें हैं और बहुमत से पीछे हैं. विक्रमसिंघे की पार्टी के पास अपनी खुद की 106 सीटें हैं और बहुमत से केवल सात कम हैं.
हंबनटोटा बंदरगाह पर श्रीलंका ने दिया था चीन को झटका
सिरिसेना के राष्ट्रपति बनने के बाद से श्रीलंका और चीन के संबंध वैसे नहीं रहे, जैसे राजपक्षे के समय हुआ करते थे. राजपक्षे के नेतृत्व में श्रीलंका ने चीन को करारा झटका देते हुए चीन द्वारा विकसित किए जाने वाले हंबनटोटा बंदरगाह के करार में बदलाव किया था. माना जा रहा था कि वहां जनता ने अपनी ही सरकार पर हंबनटोटा बंदरगाह को चीन के हाथों बेचने का आरोप लगाया था. सरकार के विरोध में जनता ने जमकर विरोध प्रदर्शन भी किया था. बता दें कि चीन ने भारत को घेरने के लिए श्रीलंका के दक्षिण में स्थित हंबनटोटा बंदरगाह को विकसित करने और वहां चीनी निवेश बनाने का करार किया था. इसमें अहम बात यह थी कि चीन इस बंदरगाह को सैन्य गतिविधियों के लिए भी इस्तेमाल करना चाहता था. इसके तहत श्रीलंका सरकार ने चीन की सरकारी कंपनी चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग को 80 फीसदी हिस्सेदारी देने की बात कही थी. इस बंदरगाह को विकसित करने में चीनी कंपनी 1.5 अरब डॉलर का निवेश करने जा रही थी.
मालदीव में दखल दे चुका है चीन
राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के नेतृत्व में मालदीव ने बीते महीनों में भारत के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी, जब वहां आपातकाल लगाया गया था और भारत व लोकतंत्र समर्थित नेताओं को जेल भेज दिया गया था. तब भारत ने राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कदम की आलोचना की थी और चीन ने उसका समर्थन किया था. अब्दुल्ला यामीन ने चीन की शह पर भारत को झटका देते हुए अपने सैन्य हेलीकॉप्टर वापस बुलाने को कहा था. दूसरी ओर, चीन ने आपातकाल का समर्थन कर यामीन सरकार को पूरा समर्थन दिया था. वहां के विपक्षी नेता और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत से सैन्य दखल की गुहार लगाई थी. लेकिन पिछले महीने हुए चुनाव में वहां भारत समर्थित मोहम्मद सालिह की जीत हुई थी, हालांकि यामीन सत्ता नहीं छोड़ रहे थे. अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मोहम्मद सालिह 11 नवंबर को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। सोलिह के राष्ट्रपति बनने से दक्षिण एशिया के इस छोटे द्वीप पर फिर से भारत का प्रभाव स्थापित हो जायेगा.
Source : News Nation Bureau