नेपाल में प्रधान न्यायाधीश को हटाने को लेकर सर्वोच्च अदालत के बांकी न्यायाधीश और वकीलों के आन्दोलन के कारण देश की न्याय व्यवस्था बिलकुल ही ठप्प हो गया है. प्रधान न्यायाधीश चोलेन्द्र शमशेर राणा पर पद छोडने का दबाब देने के लिए अदालत के बांकी सभी न्यायाधीशों ने किसी भी सुनवाई से इनकार कर दिया है. इतना ही नहीं राणा के द्वारा इस्तीफा नहीं दिए जाने तक नेपाल बार एसोसिएशन ने भी किसी भी मुकदमे की सुनवाई से अपने आपको अलग रखा है. प्रधान न्यायाधीश और न्यायाधीशों तथा बार एसोसिएशन के बीच चल रही रस्साकसी के बीच आज से प्रधान न्यायाधीश को अदालत परिसर में ही प्रवेश करने पर रोक लगाने का फैसला बार एसोसिएशन ने किया है.
आज सुबह से ही सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने मेन गेट पर धरना देकर प्रधान न्यायाधीश के अदालत प्रवेश पर रोक लगाने का प्रयास किया. हालांकि कड़ी सुरक्षा के बीच प्रधान न्यायाधीश ने अदालत के किसी और दरवाजे से ही प्रवेश किया. सर्वोच्च अदालत के बाकी सभी न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश पर पद छोड़ने का दबाब बनाने के लिए पिछले 15 दिनों से किसी भी सुनवाई में हिस्सा नहीं ले रहे हैं. पहले कुछ दिनों तक तो बन्दी प्रत्यक्षीकरण के मुकदमे की सुनवाई भी की थी लेकिन न्यायाधीशों ने अब उस तरह की सुनवाई से भी इनकार कर दिया है.
इसी तरह नेपाल बार एसोसिएशन ने प्रधान न्यायाधीश के द्वारा पद नहीं छोड़ने तक किसी भी मुकदमे में बहस नहीं करने का फैसला किया है. वकीलों का यह आंदोलन अभी सिर्फ नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है लेकिन अगर प्रधान न्यायाधीश ने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया तो देश भर के अदालतों में बहस रोकने की चेतावनी दी है. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ आंदोलन कर रहे वकीलों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो मामला और अधिक तूल पकड़ता जा रहा है. बार एसोसिएसन ने प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ और अधिक सशक्त आंदोलन की चेतावनी दी है.
हालांकि अब तक प्रधान न्यायाधीश ने अपना पद छोड़ने से साफ इनकार कर दिया है. नेपाली मीडिया में आ रही खबरों की मानें तो प्रधान न्यायाधीश राणा ने कहा है कि सड़क पर आंदोलन करने से वो अपना पद नहीं छोड़ने वाले हैं. एक निजी टेलीविजन को इंटरव्यू देते हुए प्रधान न्यायाधीश राणा ने कहा था कि अगर उन्हें हटाना है तो उनके खिलाफ महाभियोग लाया जाय. राणा को अच्छी तरह मालूम है कि महाभियोग के मामले में राजनीतिक दल आपस में बंटे हैं. सत्तारूढ़ दल में ही इस विषय को लेकर मतभेद है. महाभियोग पारित करने के लिए दो तिहाई सांसदों की आवश्यकता है जो कि बिना विपक्षी दल के समर्थन से पूरा नहीं हो सकता है.
Source : Punit K Pushkar