संसद में सरकार के दावे की पोल खुल गई है. सुगौली संधि से लेकर महाकाली संधि तक में नेपाल (Nepal) ने जमीन पर अपना दावा खुद छोड़ा है. नेपाल की संसद में विवादास्पद नक्शा संबंधित संविधान संशोधन पर चर्चा के दौरान नेपाल के दावे की पोल खुल गई है. इस बिल का समर्थन करने वाले दलों ने इसके पक्ष में मतदान तो करने का फैसला किया है, लेकिन साथ ही इस बिल में जो सरकार ने अपनी जमीन होने का दावा किया है उसको ही गलत बता दिया है.
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संशोधन बिल पर अपना पक्ष रखते हुए नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री उपेंद्र यादव ने शनिवार को कहा कि ब्रिटिश इंडिया के साथ 1916 की संधि ही नेपाल के लिए अपमानजनक है. उन्होंने कहा कि इस सन्धि के दफा 5 में स्पष्ट लिखा है कि काली नदी के पश्चिमी हिस्से पर नेपाल कभी दावा नहीं करेगा तो सरकार अब कैसे दावा कर रही है?.
दूसरा सवाल उठाते हुए उपेंद्र यादव ने कहा कि नेपाल सरकार ने सन् 1916 में भारत के साथ महाकाली संधि की थी. उस संधि के प्रस्तावना में ही यह लिखा हुआ है कि महाकाली नदी ही दोनों देश के बीच की सीमा होगी तो अब फिर से सुगौली संधि की बात कैसे उठ गई है.
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उन्होंने यह भी कहा कि उस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले और उस संधि का समर्थन करने वाले कांग्रेस और कम्युनिष्ट पार्टी के नेता इसी सदन में बैठे हैं. ये दोनों दल के नेता ने ही राष्ट्रघाती काम किया है और आज राष्ट्रवाद का पाठ हमें पढ़ा रही है. इन दलों को और महाकाली संधि का समर्थन करने वाले प्रधानमंत्री को देश के सामने माफी मांगनी चाहिए.