भारत और रूस के बीच ऑयल डील को लेकर एक ऐसी खबर आई है जो आपको चौंका देगी. खबर है कि रूस से रिकॉर्ड मात्रा में कच्चा तेल खरीद रही भारत की कंपनियों ने अब इस तेल का भुगतान चीन की मुद्रा युआन में करना शुरू कर दिया है. भारत और चीन के बीच पिछले तीन सालों से ताल्लुक ठीक नहीं चल रहे हैं और भारत सरकार रूस के साथ ऑयल डील में चीनी मुद्रा का इस्तेमाल करने से परहेज कर रही थी लेकिन अब समाचार एजेंसी रॉयटर की खबर के मुताबिक भारत की एक सरकारी और दो प्राइवेट कंपनियों ने रूसी तेल की खरीद का भुगतान युआन में करना शुरू कर दिया है.
अभी तक ये स्पष्ट नहीं हो सका है कि चीनी मुद्रा के इस्तेमाल को लेकर भारत सरकार की नीति में कोई बदलाव हुआ है या नहीं लेकिन इतना तय है कि भारत रूस से मिलने वाले सस्ते कच्चे तेल का फायदा गंवाना नहीं चाहता लेकिन इस फैसले से चीन की मुद्रा को फायदा पहुंचना तय है. खासतौर से ऐसे वक्त जब चीन दुनियाभर में व्यापार की मुद्रा के तौर पर अमेरिकी डॉलर को अपनी मुद्रा युआन से रिप्लेस करने की मुहिम चला रहा है.
कई तरह की आर्थिक पाबंदिया लगाई थीं
अगर भारत ने रूसी तेल के भुगतान के लिए चीनी मुद्रा का रास्ता चुना है तो इसकी वजह रूस का दबाव ही है. क्योंकि रूस नहीं चाहता था. भारत उसके तेल का भुगतान अपनी मुद्रा रुपए में करें. दरअसल यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद अमेरिका ने रूस पर कई तरह की आर्थिक पाबंदिया लगाई थीं. जंग शुरू होने से पहले यूरोपीय देश रूस के कच्चे तेल और गैस के बड़ा ग्राहक थे. लेकिन पाबंदियां लगने के बाद रूस, ने भारत और चीन को अपने तेल सस्ती दरों पर बेचना शुरू कर दिया लेकिन समस्या उसके पेमेंट को लेकर थी. अमेरिकी पाबंदियों के चलते भारत रूस के डॉलर में पेमेंट नहीं कर सकता था.
ये भी पढ़ें: Chandrayaan-3 की बदल गई लॉचिंग डेट, जानें ISRO ने कौन सी तारीख तय की
लिहाजा दोनों देशों ने रुपया-रूबल समझौता किया. लेकिन वक्त के साथ साथ भारत का रूस से तेल का आयात बढ़ता चला गया और अब रूस भारत को तेल सप्लाई करने वाला सबसे बड़ा मुल्क है. लेकिन इसके साथ ही भारत और रूस के बीच व्यापारिक संतुलन बिगड़ता चला गया. साल 2022-23 में भारत ने रूस से 49.35 बिलियन डॉलर का आयात किया जबकि भारत का निर्यात बस 3.14 बिलियन डॉलर का ही रहा.
भारत जैसी समस्या चीन के साथ नहीं
रूस के पास भारत को बेचे गए तेल से मिले रुपए का भंडार इकट्ठा हो गया जो उसके ज्यादा काम का नहीं था. रूस पिछले 15 महीनों से जंग लड़ रहा है लिहाजा उसका रक्षा खर्च भी काफी बढ़ा हुआ है. उसे अपने तेल की कीमत के तौर पर ऐसी करेंसी की दरकार थी, जिसका वो इस्तेमाल कर सकें. भारत और रूस के बीच भुगतान को लेकर कई बार बातचीत भी हुई लेकिन कोई मुकम्मल समाधान नहीं निकल सका. भारत जैसी समस्या चीन के साथ नहीं थी. चीन ने भी रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहा है लेकिन लगभग उतनी ही रकम का सामना उसे बेच भी रहा है. साल 2023 के पहले चार महीनों में चीन से रूस 33.7 बिलियन डॉलर का सामंना खरीदा और उसे 39.5 बिलियन डॉलर का सामान बेचा.
ऑयल डील में भी भुगतान चीनी मुद्रा युआन में ही हो रहा
यही नहीं हाल ही में पाकिस्तान के साथ हुई रूस की ऑयल डील में भी भुगतान चीनी मुद्रा युआन में ही हो रहा है. वहीं जी7 देशों ने कच्चे तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल फिक्स कर दी है. यानी अब इससे ज्यादा कीमत पर ये तेल डॉलर के भुगतान के जरिए नहीं खरीदा जा सकता और अगर कोई कंपनी ऐसा करती है तो उस पर इन ताकतवर देशों की पाबंदियां लागू हो जाएंगी.
भारत अब तक रूस से जो तेल खरीदता था वो 60 डॉलर प्रति बैरल से कम कीमत वाला था लेकिन अब रूस ने इसकी सप्लाई कम कर दी है और भारत को महंगा वाला तेल खरीदना होगा. इसकी सप्लाई के लिए रूस ने साफ कर दिया है कि वो पेमेंट का मसला सुलझाना चाहता है. मई के महीने में भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद में रिकॉर्ड बनायचा था लेकिन जून में भारत का आयात गिर गया है. क्योंकि रूस ने उत्पादन कम किया है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत ने जून में रूस से 6.5 फीसदी कम तेल खरीदा है.