चीन को तगड़ा झटका, अरबों डॉलर का सीपीईसी प्रोजेक्ट बना गले की हड्डी

चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) में पहले ही अरबों डॉलर लगा चुके ड्रैगन की चिंताएं प्रोजक्ट की सुरक्षा और बढ़ती लागत ने बढ़ा दी हैं.

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Nihar Saxena
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Gwadar CPEC

सीबीईसी की लागत के साथ-साथ सुरक्षा की चिंता बढ़ी.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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अपनी विस्तारवादी आक्रामक नीति के चलते भारत (India) को उसके पड़ोसी देशों द्वारा घेरने की चीनी चाल उलटे ड्रैगन (China) के ही गले ही हड्डी बन गई है. पाकिस्तान में ग्वादर (Gwadar Port) के रास्ते भारत को घेरने का ख्वाब पाल रहे चीन को जबरदस्त झटका लगा है. वजह यह है कि चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) में पहले ही अरबों डॉलर लगा चुके ड्रैगन की चिंताएं प्रोजक्ट की सुरक्षा और बढ़ती लागत ने बढ़ा दी हैं. कोरोना वायरस (Corona Virus) के कारण परियोजना का काम एक तरफ जहां बहुत धीमी गति से बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ बलूचिस्तान में उग्रवादियों के हमले भी तेज हो गए हैं.

स्पेशल फोर्स भी हमले रोकने में नाकाम
60 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लागत वाले इस परियोजना की सुरक्षा को लेकर पाकिस्तान ने एक स्पेशल फोर्स का गठन किया है, जिसमें 13700 स्पेशल कमांडो शामिल हैं. इसके बावजूद इस परियोजना में काम कर रहे चीनी नागरिकों पर हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. गौरतलब है कि जून में कराची के स्टॉक एक्सचेंज पर हुए हमले की जिम्मेदारी बलूच लिबरेशन आर्मी की माजिद ब्रिग्रेड ने ली थी.

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2018 में बलूच संगठन के किए कई हमले
बलूच लिबरेशन आर्मी के उग्रवादियों ने अगस्त 2018 में ग्वादर से बस के जरिए डालबाडिन जा रहे चीनी इंजीनियरों के एक समूह पर हमला किया था जिसमें 3 लोग मारे गए थे जबकि पांच अन्य जख्मी हो गए थे. इसके अलावा नवंबर 2018 में कराची के चीनी वाणिज्यिक दूतावास पर भी इस ग्रुप ने हमला किया था.

सीपीईसी का इसलिए विरोध, किए कई हमले
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने हमेशा से चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का विरोध किया है. कई बार इस संगठन के ऊपर पाकिस्तान में काम कर रहे चीनी नागरिकों को निशाना बनाए जाने का आरोप भी लगे हैं. 2018 में इस संगठन पर कराची में चीन के वाणिज्यिक दूतावास पर हमले के आरोप भी लगे थे. आरोप हैं कि पाकिस्तान ने बलूच नेताओं से बिना राय मशविरा किए बगैर सीपीईसी से जुड़ा फैसला ले लिया.

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बलूचिस्तान रणनीतिक रूप से पाक के लिए अहम
पाकिस्तान में बलूचिस्तान की रणनीतिक स्थिति है. पाक से सबसे बड़े प्रांत में शुमार बलूचिस्तान की सीमाएं अफगानिस्तान और ईरान से मिलती है. वहीं कराची भी इन लोगों की जद में है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का बड़ा हिस्सा इस प्रांत से होकर गुजरता है. ग्वादर बंदरगाह पर भी बलूचों का भी नियंत्रण था जिसे पाकिस्तान ने अब चीन को सौंप दिया है.

ग्वादर का रणनीतिक इस्तेमाल करने की तैयारी
अरब सागर के किनारे पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चीन ग्वादर पोर्ट का निर्माण चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना के तहत कर रहा है और इसे बीजिंग की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट, वन रोड (ओबीओआर) तथा मेरिटाइम सिल्क रोड प्रॉजेक्ट्स के बीच एक कड़ी माना जा रहा है. ग्वादर पोर्ट के जरिए चीन के सामान आसानी से अरब सागर तक पहुंच जाएंगे, लेकिन तनाव बढ़ने की स्थिति में बीजिंग इसका इस्तेमाल भारत और अमेरिका के खिलाफ सैन्य और रणनीतिक उद्देश्यों के लिए भी कर सकता है.

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चीन ने ग्वादर में किया 80 करोड़ डॉलर का निवेश
चीन BRI के तहत पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को 80 करोड़ डॉलर की आनुमानित लागत से विकास कर रहा है. चीन के अधिकारी भले ही बार-बार यह कहते रहे हैं कि ग्वादर बंदरगाह और CPEC का उद्देश्य पूरी तरह से आर्थिक और व्यावसायिक हैं, लेकिन इसके पीछे चीन की असल मंशा सैन्य प्रभुत्व बढ़ाना है. सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ग्वादर का इस्तेमाल अपने नौसेना बेस के तौर पर कर सकता है.

HIGHLIGHTS

  • कोरोना संक्रमण ने धीमा किया परियोजना का काम.
  • लागत के साथ-साथ सुरक्षा की चिंता भी ड्रैगन की.
  • बलूचिस्तान में उग्रवादियों के हमले भी तेज हुए.
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