पाकिस्तान सरकार समर्थित और पोषित कई इस्लामी संगठन अमेरिका में भारतीय मूल के राजनीतिज्ञों तथा भारत के प्रति नरम रुख रखने वाले राजनीतिज्ञों के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान में जुटे हुए हैं. दुष्प्रचार में जुटे इन संगठनों का मकसद उस हद तक जाने का होता कि अमेरिका में ये राजनीतिज्ञ निर्वाचित न हो पायें और सत्ता में न आ सकें. ऐसा नहीं है कि इस काम में पीटर फ्रेडरिक या ओएफएमआई ही जुटे हैं बल्कि आईएएमसी, साधना और सिख इंफॉरमेशन सेंटर भी ऐसे ही अन्य संगठन हैं, जो इस दुष्प्रचार को अपने अंत तक ले जाने में जुटे हैं. गौरतलब है कि ओएफएमआई इस दुष्प्रचार अभियान का मुखौटा था और वह तुलसी गबार्ड के खिलाफ उनके ही प्रांत हवाई में सोशल मीडिया प्रचार अभियान चला रहा था और पीटर भारतीयों को निशाना बना रहा था.
भारतीय मूल के अमेरिका नेता निशाने पर
दक्षिण एशिया के मुद्दों पर खुद को विशेषज्ञ कहने वाले और पाक सरकार तथा इस्लामी संगठनों के लिये दुष्प्रचार अभियान चलाने वाले पीटर फ्रेडरिक ने अपने संगठन ऑर्गेनाइजेशन फोर द माइनॉरिटी ऑफ इंडिया (ओएफएमआई) के जरिये भारतीय मूल के अमेरिकी राजनीतिज्ञों पर सार्वजनिक रूप से निराधार आरोप लगाए हैं. इन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी की भारतीय मूल की नेता तुलसी गबार्ड को निशाना बनाते हुए उनके खिलाफ अमेरिका में जगह-जगह दुष्प्रचार किया. इस दुष्प्रचार अभियान का मकसद तुलसी गबार्ड के चुनावी अभियान को पटरी से उतारना था.
तुलसी गबार्ड भी बनीं निशाना
ओएफएमआई ने साल 2018 में तीन अभियान चलाये, जिसके बाद 2019 में दुष्प्रचार अभियान की कमान पीटर ने संभाली और आरोप लगाया कि गबार्ड भारत सरकार से मिली हुई हैं. उसने मार्च 2019 में गबार्ड के खिलाफ दो फेसबुक अभियान चलाए. उन्होंने गबार्ड पर हिंदू राष्ट्रवादियों से पैसे लेने का आरोप लगाया. यह आरोप भारतीय राजनीतिज्ञों से उनकी मुलाकात की तस्वीर के आधार पर लगाया गया था. ऐसे ही तस्वीरों के आधार पर भारतीय मूल के अन्य राजनीतिज्ञों पर भी आरोप लगाया गया था.
भारत आने वालों पर भी दुष्प्रचार की तलवार
गौरतलब है कि भारत आने के बाद अमेरिकी राजनीतिज्ञों का यहां के राजनीतिज्ञों से मिलना आम बात है. मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी कई बार भारत आ चुके हैं. पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी कई अवसरों पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले हैं. डोनाल्ड ट्रंप भी भारत आ चुके हैं और उन्होंने भारत की तारीफ भी की है. तुलसी गबार्ड, जब 2020 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के लिये प्रचार अभियान में जुटी थीं, तो भजन सिंह भिंडर, पीटर, जेडा बर्नार्ड और ओएफएमआई से संबद्ध लोगों ने उनके खिलाफ दुष्प्रचार करना शुरू किया. तुलसी गबार्ड ने 19 मार्च 2220 को अपनी दावेदारी वापस ले ली.
संघ और बीजेपी से जोड़ने की मुहिम
इन्हीं लोगों ने इससे पहले 30 मार्च 2019 को लॉस एंजिल्स के टाउनहॉल में गबार्ड के चुनावी अभियान के दौरान भी उन पर निशाना साधा था. इन्होंने साथ मिलकर गबार्ड को संघ और भाजपा से जोड़ना चाहा. पीटर ने तो अपने ट्वीट अकांउट पर और ओएफएमआई के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर इससे संबंधित सामग्री पोस्ट की थी. रिपोर्ट के अनुसार आईएएमएसी और पीटर ने तुलसी गबार्ड के अलावा अमेरिकी राजनयिक अतुल केशप को भी निशाना बनाया है. अतुल को अमेरिका-भारत व्यापार परिषद का प्रमुख नियुक्त किया गया था और पीटर ने उनके खिलाफ 2021 में मोर्चा खोला था.
डेमोक्रेट भी बने पाक समर्थित मोर्चों का निशाना
पीटर की अगुवाई वाले समूह ने अतुल के खिलाफ प्रदर्शन किया, जिसे आईएएमसी ने अपना समर्थन दिया. भारत के हित को नुकसान पहुंचाने के उदाहरण गबार्ड और अतुल केशप के मामले तक सीमित नहीं हैं. इस नेटवर्क ने प्रेस्टन कुलकर्णी, अमित जानी, पद्मा कुप्पा और राजा कृष्णमूर्ति को निशाना बनाया. ये सभी डेमोक्रेट सदस्य हैं. प्रेस्टन कुलकर्णी को बाइडेन सरकार ने आठ फरवरी 2021 को अमेरिकॉर्प में विदेशी मामलों का नया प्रमुख नियुक्त किया था. पीटर फ्रेडरिक ने कुलकर्णी के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाया और आरोप लगाया कि उन्होंने अपने चुनावी अभियान में संघ से संबद्ध संगठनों से फंड लिया. आईएएमसी ने भी इसी आधार पर कुलकर्णी को एक पत्र भी लिखा.
कुप्पा-कृष्णमूर्ति पर साधा गया निशाना
पीटर ने जुलाई 2019 से जानी और शाह के खिलाफ भी अभियान शुरू किया. उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी पर राजनीतिक दबाव डाला. वे 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के पहले इनके खिलाफ लगातार दुष्प्रचार करते रहे. इसका नतीजा यह हुआ कि बाइडेन सरकार ने इन दोनों को कोई पद नहीं दिया. कुप्पा और कूष्णमूर्ति पर भी 2019 और 2020 में निशाना साधा गया. उन पर भी संघ और भाजपा से संबंध होने का आरोप लगाया गया.
HIGHLIGHTS
- भारत के खिलाफ अमेरिका में पाक समर्थिक मोर्चों का नया अभियान
- तुलसी गबार्ड के खिलाफ आरोपों ने उन्हें किया नाम वापसी पर मजबूर
- संघ और बीजेपी से नाम जोड़कर उन्हें करार दे देते हैं कट्टरपंथी