नई दिल्ली: पाकिस्तान पिछले कुछ महीनों से कई वित्तीय चुनौतियों से जूझ रहा है और उसे धन की सख्त जरूरत है. इस बीच, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के पूर्व प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आर्थिक संकट के बीच पड़ोसी राज्य को 'बचाव' कर सकते हैं. दुलत को लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी इस साल के अंत में पाकिस्तान की ओर कुछ कदम बढ़ा सकते हैं. उन्होंने आगे कहा कि 'थोड़ा और सार्वजनिक जुड़ाव' के साथ बातचीत को खुला रखना अनिवार्य था. PTI को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "पाकिस्तान से बात करने के लिए हर समय सबसे अच्छा समय होता है. हमें अपने पड़ोसियों को व्यस्त रखने की जरूरत है.'
पाकिस्तान को मिलेगी राहत?
उन्होंने कहा, 'इस साल मेरा अनुमान है कि पीएम मोदी पाकिस्तान को राहत देंगे. अंदर की कोई जानकारी नहीं है, लेकिन यह मेरा अनुमान है.' बता दें कि भारत ने संकेत दिया है कि वह नकदी की तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान को वित्तीय सहायता नहीं दे सकता है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कही थी ये बात
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में कहा था कि पड़ोसी देश की मदद करने या न करने के बारे में निर्णय लेने से पहले भारत स्थानीय जनभावना को देखेगा. पिछले कुछ वर्षों से भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध गंभीर तनाव में रहे हैं.
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एस जयशंकर ने विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय राजधानी में एशिया आर्थिक संवाद में कहा, 'अगर मुझे अपने किसी बड़े फैसले को देखना है, तो मैं यह भी देखूंगा कि जनता की भावना क्या है. मेरे पास एक नब्ज होगी कि मेरे लोग इसके बारे में क्या महसूस करते हैं और मुझे लगता है कि आप इसका जवाब जानते हैं.'
विदेश मंत्री ने उठाया था आतंकवाद का मुद्दा
पाकिस्तान की आर्थिक दुर्दशा पर उसकी आलोचना करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि कोई भी देश मुश्किल स्थिति से बाहर नहीं निकलेगा और समृद्ध शक्ति नहीं बनेगा यदि इसका मूल उद्योग 'आतंकवाद' है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ संबंधों में आतंकवाद बुनियादी मुद्दा है और हमें इससे इनकार नहीं करना चाहिए.
शहबाज शरीफ ने कही ये बात
पिछले महीने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा था कि यह शर्म की बात है कि परमाणु शक्ति संपन्न देश को भीख मांगनी पड़ रही है और आर्थिक मदद लेनी पड़ रही है. उन्होंने यह भी कहा कि मित्र देशों से अधिक ऋण मांगना उनके लिए शर्मनाक था, इस बात पर जोर देते हुए कि यह नकदी की तंगी वाले देश के वित्तीय संकट का स्थायी समाधान नहीं है.