पाकिस्तान सेना की मीडिया शाखा इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशन्स (आईएसपीआर) के महानिदेशक मेजर जनरल आसिफ गफूर ने कहा है कि इस्लामाबाद में हो रहे विपक्षी दल जमीयते उलेमाए इस्लाम-फजल के आजादी मार्च या धरने में सेना की किसी भी तरह की कोई भूमिका नहीं है. एक टीवी चैनल से बातचीत के दौरान गफूर ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि सेना सरकार के कहने पर शांति व्यवस्था के काम में लगती है. साल 2014 में भी (जब विपक्षी नेता के रूप में इमरान खान ने नवाज शरीफ सरकार के खिलाफ धरना दिया था) सेना सरकार के साथ मजबूती से खड़ी थी.
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उन्होंने कहा कि मार्च हो या धरना, यह एक राजनैतिक गतिविधि है जिसमें एक संस्थान के रूप में सेना की कोई भूमिका नहीं है. लोकतंत्र में इनसे निपटना सरकार और विपक्ष का काम है. पाकिस्तानी सेना इस तरह की गतिविधि में कभी भी किसी भी रूप में शामिल नहीं रही है. मेजर जनरल ने कहा कि पाकिस्तानी सेना वह संस्थान है जो देश की रक्षा व सुरक्षा को मजबूत करने में संलग्न है और उसके पास इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने के लिए समय नहीं है.
पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने यह साफ कर दिया कि वह जो भी बयान देते हैं, वह सेना की तरफ से दिया गया आधिकारिक बयान होता है. आजादी मार्च व धरने में तालिबान का झंडा देखे जाने पर गफूर ने कहा कि आंदोलन के नेतृत्वकर्ता मौलाना फजलुर रहमान वरिष्ठ राजनेता हैं और वह ऐसी बातों के नतीजों को अच्छी तरह समझते होंगे.
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उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना की कभी भी आम चुनाव में किसी तरह की भूमिका की कोई इच्छा नहीं रही है. जब सुरक्षा व्यवस्था के लिए सरकार उससे कहती है तो संविधान के तहत वह अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए बाध्य होती है. यह सरकार तय करती है कि सेना कहां तैनात होगी और कहां नहीं होगी. उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख ने भी एक प्रस्ताव दिया है कि चुनाव के दौरान सेना की भूमिका शून्य करने के लिए पुलिस को किस तरह से सक्षम बनाने की जरूरत है.
पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता विपक्षी दलों के आजादी मार्च या धरने में किसी भूमिका से भले इनकार कर रहे हों, लेकिन राजनैतिक विश्लेषक आमतौर से इस बात पर एकमत हैं कि अगर प्रधानमंत्री इमरान खान पूरे विश्वास से कह रहे हैं कि वह विपक्ष द्वारा उनके इस्तीफे की मांग को नहीं मानेंगे तो इस साहस के पीछे उन्हें मिल रहा पाकिस्तानी सेना का समर्थन है.
आजादी मार्च शुरू होने से पहले इस आशय की रिपोर्ट भी आई थीं कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने मौलाना फजलुर रहमान से बात की थी और उन्हें मार्च नहीं निकालने के लिए 'समझाया' था.