प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता का मुद्दा उठाया और वैश्विक मंच पर बोलते हुए उन्होंने पूछा कि इसके लिए भारत को कब तक इंतजार करना होगा. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हुंकार भरते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इस सर्वोच्च वैश्विक संस्था की प्रतिक्रियाओं, व्यवस्थाओं और स्वरूप में सुधार को 'समय की मांग' बताया और साथ ही सवाल दागा कि 130 करोड़ की आबादी वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को इसके निर्णय प्रक्रिया ढांचे से आखिर कब तक अलग रखा जाएगा और उसे कब तक इंतजार करना पड़ेगा?
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संयुक्त राष्ट्र में भारत के योगदान को याद दिलाया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र में आम सभा को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के योगदान को याद दिलाया. उन्होंने कहा कि इस वैश्विक मंच के माध्यम से भारत ने हमेशा विश्व कल्याण को प्राथमिकता दी है और अब वह अपने योगदान के मद्देनजर, इसमें अपनी व्यापक भूमिका देख रहा है. मोदी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में संतुलन और उसका सशक्तीकरण विश्व कल्याण के लिए अनिवार्य है. भारत विश्व से सीखते हुए, विश्व को अपने अनुभव बांटते हुए आगे बढ़ना चाहता है.
प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसे वक्त में संयुक्त राष्ट्र में सुधार और सुरक्षा परिषद के बहुप्रतीक्षित विस्तार की पुरजोर मांग उठाई है जब भारत अगले वर्ष जनवरी से 15-सदस्यीय सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के तौर पर भी अपना दायित्व निभाने जा रहा है. इस ऐतिहासिक अवसर पर देश के 130 करोड़ लोगों की भावनाएं प्रकट हुए मोदी ने कहा कि विश्व कल्याण की भावना के साथ संयुक्त राष्ट्र का जिस स्वरुप में गठन हुआ, वह तत्कालीन समय के हिसाब से ही था जबकि आज दुनिया एक अलग दौर में है.
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उन्होंने कहा, '21वीं सदी में हमारे वर्तमान की, हमारे भविष्य की आवश्यकताएं और चुनौतियां कुछ और हैं. इसलिए पूरे विश्व समुदाय के सामने एक बहुत बड़ा सवाल है कि जिस संस्था का गठन तब की परिस्थितियों में हुआ था, उसका स्वरूप क्या आज भी प्रासंगिक है ?' प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सभी बदल जाएं और 'हम ना बदलें' तो बदलाव लाने की ताकत भी कमजोर हो जाती है. उन्होंने कहा कि पिछले 75 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जाए तो अनेक उपलब्धियां दिखाई देती हैं, लेकिन इसके साथ ही अनेक ऐसे उदाहरण हैं जो संयुक्त राष्ट्र के सामने गंभीर आत्ममंथन की आवश्यकता खड़ी करते हैं. मोदी ने फिर दोहराया कि संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रियाओं में बदलाव, व्यवस्थाओं में बदलाव, स्वरूप में बदलाव, आज समय की मांग है.
प्रधानमंत्री ने कहा, 'भारत के लोग, संयुक्त राष्ट्र के सुधारों को लेकर जो प्रक्रिया चल रही है, उसके पूरा होने का लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं. भारत के लोग चिंतित हैं कि क्या ये प्रक्रिया कभी अपने निर्णायक मोड़ तक पहुंच पाएगी? आखिर कब तक भारत को संयुक्त राष्ट्र के, निर्णय प्रक्रिया के ढांचे से अलग रखा जाएगा?' मोदी ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. एक ऐसा देश, जहां विश्व की 18 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या रहती है, जहां सैकड़ों भाषाएं हैं, अनेक पंथ हैं, अनेक विचारधारा हैं.' उन्होंने कहा, 'जिस देश ने वर्षों तक वैश्विक अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने और वर्षों की गुलामी, दोनों को जिया है, जिस देश में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर पड़ता है, उस देश को आखिर कब तक इंतजार करना पड़ेगा?'
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आतंकवाद के मुद्दे पर UN की ओर से उठाए कदमों पर सवाल
आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की ओर से उठाए गए कदमों पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने सवाल खड़े किए और कहा कि बेशक तीसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ, लेकिन आंतकवाद की आग ने पूरी दुनिया को झुलसाया और आतंकी हमलों ने पूरी दुनिया को थर्रा कर रख दिया. यहां तक कि खून की नदियां बहती रहीं. मालूम हो कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग को लेकर भारत लंबे समय से आवाज उठा रहा है. सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष में हैं. मगर बार-बार हमारा ही पड़ोसी मुल्क चीन इसमें अड़ंगा लगा देता है.
HIGHLIGHTS
- मोदी ने UN में भारत की स्थायी सीट का मुद्दा उठाया
- संयुक्त राष्ट्र में भारत के योगदान को दिलाया याद
- UN में 5 स्थायी सदस्यों में से 4 भारत के साथ
- UN में भारत की स्थायी सीट पर चीन डालता है अड़ंगा