पिछले साल फरवरी में जब पुतिन ने अपनी फौज को यूक्रेन पर हमला करने का आदेश दिया था तब कहा जा रहा था कि ये जंग यूक्रेन में जेलेंस्की को सत्ता से हटाने के लिए शुरू की गई है और इस टारगेट को 3-4 दिन में में हासिल कर लिया जाएगा. रूसी फौज को तो जंग लड़ते हुए साल भर से भी ज्यादा वक्त हो गया और जेलंस्की अपनी सत्ता पर कायम हैं लेकिन रूस में अब पुतिन का सिंहासन डोलने लगा है. रूस में पुतिन के 23 साल के शासन में पहली बार उनके खिलाफ बगावत हो गई है..खास बात ये है कि ये बगावत उनके के बेहद करीबी माने जाने वाले येवेगनी प्रिगोझिन ने की है. वही प्रिगोझिन जो पुतिन की प्राइवेट आर्मी कहे जाने वाले खूंखार ग्रुप वैगनर का चीफ है और जिसने हाल ही में यूक्रेन के शहर बखमुत पर कब्जा करके उसे रूस की सेना के हवाले किया था. प्रिगोझिन के लड़ाकों ने रूस के दक्षिणी शहर रोस्टोव के मिलिट्री हेडक्वार्टर पर कब्जा कर लिया और उनका टारगेट रूस की राजधानी मॉस्को है.. पुतिन को तो अमेरिका जैसी महाशक्ति भी रूस की गद्दी से नहीं हटा सकी तो क्या वाकई में ये वैगनर आर्मी इतनी ताकतवर है कि रूस में पुतिन का तख्तापलट कर सके.
1999 रूस के प्रेजीडेंट बोरिस येल्तसिन के इस्तीफे के बाद प्रेजीडेंट बने पुतिन ने रूस के संविधान में कुछ ऐसे बदलाव किए हैं जिनके जरिए अब वो साल 2036 तक रूस के प्रेजीडेंट रह सकते हैं. दरअसल, रूस के संविधान के मुताबिक कोई भी शख्स चार चार साल के दो कार्यकाल के बाीद लगातार तीसरी बार प्रेजीडेंट नहीं बन सकता था लिहाजा पुतिन ने साल 2008 में अपने वफादार दिमिट्री मेदवेदेव को प्रेजीडेंट बनाया और खुद प्रधानमंत्री बनके सत्ता की चाभी अपने हाथ में रखी. साल 2012 वो दोबारा रूस के प्रेजीडेंट बने और फिर 2020 में उन्होंने संविधान में बदलाव करके अपना गद्दी 2036 तक के लिए सुरक्षित कर ली. उनकी इस गद्दी को अब उनके वफादार रहे प्रिगोझिन ने बहुत बड़ी चुनौती दे दी है. इससे पहले रूस में पुतिन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन होते रहे हैं लेकिन ये पहली बार है जब रूस में पुतिन के खिलाफ हथियारबंद बगावत हुई है.
बगावत करने वाली वैगनर आर्मी को खुद पुतिन ने ही खड़ा किया था और इसकी कमान प्रिगोझिन को सौंप दी थी. इस प्राइवेट आर्मी में ऐसे लड़ाके शामिल हैं जिनका इतिहास आपराधिक रहा है. पश्चिमी देशों का आरोप है कि इस प्राइवेट आर्मी ने के जरिए पुतिन ने दुनिया के कई कोनों में बड़े ऑपरेशंस को अंजाम दिया है. वैगनर आर्मी साल 2014 से पहले अफ्रीका और मिडिल ईस्ट के देशों में सीक्रेट तरीके से काम करती थी.इसके लड़ाके यूरोप से लेकर लीबिया, सीरिया, मोजाम्बिक, माली, सूडान और अफ्रीका के कई देशों में एक्टिव रहे हैं. अक्टूबर 2015 से लेकर 2018 तक वैगनर आर्मी ने सीरिया में बशर-अल-असद कीसरकार के साथ मिलकर जंग में हिस्सा लिया था.
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अपनों ने पीठ में घोपा चाकू
यही नहीं पुतिन को इन भाड़े के सैनिकों पर इतना भरोसा था कि टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद वैगनर आर्मी के 400 से ज्यादा भाड़े के सैनिकों को यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की हत्या के लिए कीव भी भेजा गया था लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी. अफ्रीका में ऑपरेशंस के दौरान इस प्राइवेट आर्मी ने कई देशों तख्तापलट कराने में अहम भूमिका निभाई यही वजह है कि इसके चीफ प्रिगोझिन को ये भरोसा हो गया है कि वो अपने आका यानी पुतिन का भी तख्तापलट कर सकते हैं.हालांकि प्रिगोझिन ने अपनी लड़ाई पुतिन नहीं बल्कि रूस के रक्षा मंत्री सरेगेई शोइगू और सेना के बड़े अफसरों के खिलाफ बताई लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि उनका टारगेट तो क्रेमलिन पर कब्जा करके सत्ता बदलना ही है. हालांकि, रूस में सत्ता बदलना इतना आसान नहीं रहा है. मॉर्डन हिस्ट्री में रूस में बस दो बार ही सत्ता में बदलाव हुआ है लेकिन इस बदलाव के साथ एक इत्तेफाक भी जुड़ा है.
पुतिन की पॉवर को बड़ा झटका
दरअसल, साल 1917 में जब रूस में वाल्शेविक क्रांति हुई थी तब यूरोप में पहला विश्वयुद्ध चल रहा था और रूस भी उसका हिस्सा था. रूस की सेना उस जंग में बुरी तरह से हार रही थी. रूस के शासक जार के खिलाफ देश में माहौल बन रहा था जिसका फायदा उठाकर व्लादिमीर लेनिन ने रूस में क्रांति का बिगुल फूंक कर जार का तख्ता पलट कर दिया.रूस में दूसरी बार सत्ता 1992 में बदली और लेनिन की क्रांति के बाद सत्ता में आया कम्युनिस्ट रिजीम खत्म हो गया. सोवियत संघ टूट गया और रूस में बोरिस येल्तसिन के हाथ में सत्ता आ गई. इस बदलाव से चंद साल पहले ही रूस ने अफगानिस्तान की जंग में हार का मुंह देखा था और उसके हजारों सैनिकों की जाने गईं थी. इस वक्त भी रूस यूक्रेन जंग में उलझा हुआ है और हजारों सैनिकों की जानें गंवाने के बावजूद उसे जीत हासिल नहीं हो सकी है. तो क्या युद्ध में हार और रूस में सत्ता परिवर्तन का ये इत्तेफाक इस बार भी सामने आएगा? कम से कम रूस के विरोधी पश्चिमी देश तो यही उम्मीद कर रहे होंगे. वैसे अगर पुतिन के खिलाफ ये बगावत कामयाब ना भी हो पाए तब भी रूस में पुतिन की पावर को एक बड़ा झटका तो जरूर लगेगा.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau