पाकिस्तान के तीन करीबी मित्र देश चीन, सऊदी अरब और तुर्की ने अमेरिकी सरकार के उस कदम पर को रोकने के लिए हाथ मिलाए हैं जिसमें इस्लामाबाद को वैश्विक आतंकी फंडिंग करने वाले देशों के वॉच लिस्ट में रखने की बात कही थी।
अमेरिका के पाकिस्तान पर आतंकी गतिविधियों के कारण दवाब बनाने पर चीन की यह एक और नई चाल है।
अब पाकिस्तान के लिए यह राहत की बात है जब अमेरिका चौतरफा तरीके से उस पर दवाब बना रहा है, उसे चीन, सऊदी अरब और तुर्की का साथ मिल रहा है। दरअसल अमेरिका पेरिस में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की मीटिंग के दौरान पाकिस्तान पर कार्रवाई की योजना बना रहा था।
अमेरिका का मानना है कि आतंकी फंडिंग पर कार्रवाई के लिए पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को नहीं लागू कर रहा है।
अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक, मीटिंग के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन और सऊदी अरब के बीच पहली बार इस तरह की 'दुर्लभ असहमति' देखी गई।
सऊदी अरब ने कहा है कि वह गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल के आधार पर काम कर रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका अभी भी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) को पाकिस्तान के खिलाफ यह निर्णय लेने दिलवाने की कोशिश में लगा हुआ है।
वहीं पाकिस्तान ने बुधवार को दावा किया कि उसने अमेरिका के द्वारा पाकिस्तान को वैश्विक आतंकी फंडिंग करने वाले देशों के वॉच लिस्ट में शामिल करने में विफल करा दिया और कहा कि पेरिस स्थित अंतर्राष्ट्रीय संस्था एफएटीएफ ने तीन महीने के लिए इसे टाल दिया है।
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की मीटिंग शुक्रवार तक चलने की संभावना है। ऐसे में अमेरिका सऊदी अरब और अन्य देशों पर अब भी पाकिस्तान के खिलाफ वोट करने के लिए दवाब बना रहा है।
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इससे पहले भी जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को अलकायदा प्रतिबंध समिति के तहत आतंकी घोषित करने पर भारत, अमेरिका और इंग्लैंड के प्रयासों में पाकिस्तान के सदाबहार दोस्त चीन अड़ंगा डालता आया है।
क्या है फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स?
यह पेरिस में स्थित एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो गैरकानूनी फंडिंग के खिलाफ मानकों को तय करता है। मनीलॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए 1989 में जी-7 देशों के प्रयासों से इसकी स्थापना हुई थी। इसके 37 सदस्य देश हैं।
माना जा रहा था कि एफएटीएफ की वॉचलिस्ट में आने के बाद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका पहुंच सकता है। जिससे विदेशी निवेशों का पाकिस्तान में पहुंचना भी मुश्किल हो जाता। इसके अलावा पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से कर्ज लेना भा मुश्किल हो सकता था।
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Source : News Nation Bureau