पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को आर्थिक दुश्वारियों के चलते एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की चौखट पर गुहार लगानी पड़ रही है. यह अलग बात है कि ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि आईएमएफ की पहले की ही तरह शर्तों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता रास्ते में बड़ा रोड़ा साबित होगा. इस बीच इंटरबैंक बाजार में स्थानीय मुद्रा 2.1 रुपये की गिरावट के साथ केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के बावजूद इंट्राडे ट्रेडिंग के दौरान ग्रीनबैक के मुकाबले 199 रुपये के एक और ऐतिहासिक निचले स्तर पर गिर गया. इस बीच इमरान सरकार पर आर्थिक बदहाली का आरोप लगाते हुए नए प्रधानमंत्री शहबाज खान ने आर्थिक सुधारों के लिए कड़े कदम उठाने के संकेत दिए हैं.
आईएमएफ की शर्तों को पूरा करना आसान नहीं
पाकिस्तानी रुपया बुधवार को दो रुपये की गिरावट के बाद अमेरिकी डॉलर के मुकाबले खुले बाजार में 200 के महत्वपूर्ण स्तर को छू गया. इस बीच इंटरबैंक बाजार में स्थानीय मुद्रा 2.1 रुपये की गिरावट के साथ केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के बावजूद इंट्राडे ट्रेडिंग के दौरान ग्रीनबैक के मुकाबले 199 रुपये के एक और ऐतिहासिक निचले स्तर पर गिर गया. निवेशक चिंतित हैं क्योंकि बाजार में अटकलें हैं कि आईएमएफ पूर्वापेक्षा शर्तों को लागू करने के लिए सरकार की अनिच्छा के बाद ऋण कार्यक्रम को फिर से शुरू करने के लिए सहमत नहीं हो सकता है.
पाकिस्तानी रुपया पड़ेगा और कमजोर
बाजार को प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके गठबंधन सहयोगियों के बीच हुई बैठकों के नतीजे का भी इंतजार है. विश्लेषकों का मानना है कि अगर सरकार देश में आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता लाने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं करती है, तो आने वाले दिनों में रुपया धीरे-धीरे अंतरबैंक बाजार में 200 की ओर बढ़ेगा. जियो न्यूज के अनुसार मंगलवार को 195.74 रुपये के करीब की तुलना में ग्रीनबैक के मुकाबले दोपहर 2:46 बजे रुपया 199 रुपये के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर कारोबार कर रहा था. स्थानीय मुद्रा ने अपनी मंदी को बनाए रखा है क्योंकि पाकिस्तान ने दोहा में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ रुके हुए बहु-अरब डॉलर के ऋण कार्यक्रम के पुनरुद्धार के लिए बातचीत शुरू की है.
इमरान की वित्तीय नीतियों ने और बिगाड़े हालात
इस बीच पाकिस्तान में गंभीर आर्थिक स्थिति को देखते हुए शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार ने संकट से निपटने का फैसला किया है. भले ही उसे देश को बिगड़ते संकट से बाहर निकालने के प्रयास में अलोकप्रिय और कड़े फैसले ही क्यों न लेने पड़े. इस्लामाबाद स्थित प्रधानमंत्री आवास में अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ हुई शरीफ की एक महत्वपूर्ण बैठक के दौरान यह निर्णय लिया गया है. प्राप्त जानकारी के अनुसार शरीफ ने गठबंधन सहयोगियों के प्रमुखों को मौजूदा आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी दी. इसके साथ ही उन्होंने इस आर्थिक संकट को पिछली इमरान खान सरकार और उनकी विफल वित्तीय नीतियों के कारण पैदा हुआ संकट करार दिया.
राजनीतिक चुनौतियां भी कम नहीं
बैठक के दौरान विभिन्न विकल्पों पर चर्चा की गई, जिसमें सदनों को भंग करना और एक कार्यवाहक सरकार लाना शामिल है, जो देश में जल्द चुनाव कराए. इस दौरान इस बात पर भी जोर दिया गया कि पिछली सरकार की विफल वित्तीय नीतियों की जिम्मेदारी और औचित्य वर्तमान गठबंधन सरकार को विरासत में नहीं मिलनी चाहिए, क्योंकि इससे राजनीतिक दलों की राजनीतिक स्थिति को नुकसान होगा. हालांकि, इस बात पर प्रकाश डाला गया कि इस कदम से देश के गंभीर आर्थिक संकट से कोई राहत नहीं मिलेगी और यह पाकिस्तान को दिवालिया होने की ओर धकेल देगा, जिससे श्रीलंका जैसी स्थिति पैदा हो सकती है. यह भी चर्चा हुई कि अगर सरकार सदनों को भंग नहीं करना चाहती है, तो देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए अन्य साहसिक और कड़े फैसले लेने होंगे, क्योंकि अर्थव्यवस्था इस समय पूरी तरह चरमराने के कगार पर है.
HIGHLIGHTS
- पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले निम्नतम स्तर पर
- सरकार आर्थिक मदद के लिए आईएमएफ की चौखट पर
- शहबाज ने इमरान की गलत वित्तीय नीतियों पर फोड़ा ठीकरा