सुप्रीम कोर्ट द्वारा नेपाल के भंग किए गए संसद के निचले सदन की बहाली और शेर बहादुर देउबा के पांचवे कार्यकाल के लिए विश्वास मत जीतकर प्रधानमंत्री बनने से आखिरकार नेपालियों को राहत की सांस लेने में मदद मिली है. इससे पहले प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे केपी शर्मा ओली लगातार विवादों में चल रहे थे. न केवल ओली, बल्कि उनके अधीन नेपाल भी सभी गलत कारणों से अंतराष्ट्रीय सुर्खियां बटोर रहा था और हिमालयी राष्ट्र अनिश्चितताओं और राजनीतिक अस्थिरता में डूब गया था. हालांकि यह निश्चित नहीं है कि नेपाल और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों में क्या निहित है, मगर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बयानों ने उम्मीद जगाई है कि पिछले कुछ समय से बिगड़ते दोनों पड़ोसी देशों के संबंध जल्द ही सुधरेंगे.
अगले आम चुनावों में लगभग डेढ़ साल का समय है और देउबा ही देश का नेतृत्व करने के लिए सबसे पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरे हैं. वह पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी नेपाली लोगों को कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई के तहत टीका लग जाए. चूंकि महामारी की तीसरी लहर का बड़ा खतरा मंडरा रहा है, इसलिए वह चाहते हैं कि नेपाल की पूरी आबादी का टीकाकरण हो जाए.
अगस्त 2017 में अपनी भारत यात्रा के दौरान देउबा ने आठ समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. एमओयू ने बड़े पैमाने पर नेपाल के पुनर्निर्माण में मदद की, जो 2015 में भूकंप से बुरी तरह प्रभावित हुआ था. विश्वास मत जीतने के बाद देउबा को बधाई देने वालों में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे पहले नेता थे और यह एक स्पष्ट संकेत है कि अद्वितीय और दोनों देशों के लोगों के बीच सदियों पुराने बेहतरीन संबंध और विशेष मित्रता अब और अधिक ऊंचाइयों पर जाएगी. मोदी ने कोविड-19 टीकों की आपूर्ति का भी आश्वासन दिया है. उम्मीद की जा रही है कि भारत की ओर से रुकी पड़ी टीकों की दस लाख खुराक की आपूर्ति जल्द ही फिर से शुरू हो जाएगी.
देउबा के राजनयिक और राजनीतिक बयान, जिसमें उन्होंने 2017 में प्रधानमंत्री के रूप में भारत का दौरा किया था, ने भारत और चीन दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने के संबंध में उनकी परिपक्वता को साबित किया. हालांकि, इस बार चीन के पास अन्य सभी कारण हैं कि वह नेपाल की ओर से उस प्रेम की अपेक्षा न करे, जो उसे ओली के समय मिलता था. द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक ऊंचाई पर ले जाने के अपने सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद भारत को खराब रोशनी में चित्रित करने के लिए, ओली ने अपने उत्तरी पड़ोसी को खुश करने के लिए ओवरटाइम काम करने की कोशिश की.
ओली की अहंकारी बयानबाजी ने लंबे समय में इस छोटे और शांत देश को और अधिक नुकसान पहुंचाया होगा. देउबा के पास अब इस नुकसान से पार पाना भी एक चुनौतीपूर्ण काम है. 2017 में हस्ताक्षरित आठ समझौता ज्ञापनों में से कम से कम चार ने 50,000 घरों के पुनर्निर्माण का समर्थन करने के लिए भारत के आवास अनुदान घटक के उपयोग सहित नेपाल को काफी हद तक मदद की थी. इसी तरह नेपाल में शिक्षा क्षेत्र, सांस्कृतिक विरासत क्षेत्र और स्वास्थ्य क्षेत्र में पुनर्निर्माण पैकेजों के कार्यान्वयन पर समझौता ज्ञापन इस बात का प्रमाण थे कि कैसे देउबा एक व्यावहारिक नेता हैं, जो आसानी से मुद्दों की कल्पना कर सकते हैं और उन्हें प्राथमिकता दे सकते हैं.
भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने नवंबर 2020 में अपनी दो दिवसीय नेपाल यात्रा के दौरान दोहराया कि दोनों देश सबसे करीबी दोस्त हैं और संबंधों को बेहतर करने के लिए वे मिलकर काम करेंगे. देउबा ने प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद यही बात दोहराई. हालांकि देउबा के नाम हर बार प्रधानमंत्री बनने पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं करने का रिकॉर्ड है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने इस बार विश्वास मत हासिल किया है, उससे संकेत मिलता है कि जब तक देश में आम चुनाव नहीं होंगे, तब तक उन्हें सहज समर्थन मिलता रहेगा.
हालांकि, अपनी राजनीतिक अस्थिरता के लिए जाने जाने वाले नेपाल के लिए भविष्य में क्या है, इसके बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन बड़े पैमाने पर नेपाली लोगों को उम्मीद है कि देउबा के नेतृत्व में एक नेपाल के लिए एक नई सुबह (नया सवेरा) होगी. नेपाली जनता को यह भी उम्मीद है कि रुकी हुई विकास प्रक्रिया अब नेपाली कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के नेतृत्व में तेजी से आगे बढ़ेगी.
HIGHLIGHTS
- शेर बहादुर देउबा ने पांचवे कार्यकाल के लिए विश्वासमत जीता
- केपी शर्मा ओली से कहीं ज्यादा हैं नेपाली लोगों की उम्मीदें