श्रीलंका गृहयुद्ध की कगार पर पहुंच चुका है. यहां पर आर्थिक संकट से हालात दिन पर दिन बदतर होते जा रहे हैं. लोग अपनी मूलभूत जरूरतों को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं. देश का विदेशी मुद्र भंडार खत्म हो चुका है. इस कारण जरूरी चीजों का आयात नहीं हो पा रहा है. देश में अनाज, चीनी, मिल्क पाउडर, सब्जियों से लेकर दवाओं तक की कमी है. खाद्य पद्धार्थों के लिए मारामारी देखने को मिल रही है. इसलिए पेट्रोल पंपों पर सेना तैनात करनी पड़ रही है.
देश में 13-13 घंटे की बिजली कटौती है. सार्वजनिक परिवहन ठप हो चुका है, क्योंकि बसों को चलाने के लिए डीजल तक नहीं है. मंगलवार को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंका में आपातकाल के ऐलान के बाद पहली बार संसद का सत्र बुलाया गया. मगर इस सत्र में विपक्ष के साथ सरकार के कई गठबंधन सहयोगियों ने भी हिस्सा नहीं लिया.
महिंदा राजपक्षे के नेतृत्व में सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) गठबंधन ने 2020 के आम चुनावों में 150 सीटों पर विजय हासिल की थी. इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति सिरीसेना की अगुवाई में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के असंतुष्ट सांसद पाला बदलते हुए सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना गठबंधन में शामिल हो गए थे.
राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे किसी भी परिस्थिति इस्तीफा नहीं देना चाहते है. सरकार ने आपातकाल लगाने के राजपक्षे के निर्णय का भी बचाव किया. इसे बाद में हटा लिया गया. मुख्य सरकारी सचेतक मंत्री जॉनसन फर्नांडो का कहना है कि सरकार इस समस्या का सामना करेगी और राष्ट्रपति के इस्तीफे का कोई कारण नहीं है क्योंकि उन्हें इस पद के लिए चुना गया था.
श्रीलंका की संसद में कुछ 225 सदस्य हैं. ऐसे में किसी गठबंधन में या दल को बहुमत के लिए 113 सदस्यों का समर्थन चाहिए. श्रीलंकाई मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सत्तारूढ़ गठबंधन के कम से कम 41 सदस्यों ने समर्थन वापस लेने की ऐलान किया है. ऐसे में महिंदा राजपक्षे सरकार के पास 109 सदस्यों का समर्थन हासिल है. यह बहुमत से चार कम है.
HIGHLIGHTS
- देश में 13-13 घंटे की बिजली कटौती है
- सार्वजनिक परिवहन ठप हो चुका है
- पेट्रोल पंपों पर सेना तैनात करनी पड़ रही है