श्रीलंका के पूर्व रक्षा मंत्री गोटाबया राजपक्षे को राष्ट्रपति के लिए चुन लिया गया है. श्रीलंका में शनिवार को आठवें राष्ट्रपति चुनाव के लिए 80 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था. देश अभी भी लगभग तीन दशक लंबे गृहयुद्ध और सात महीने पहले ईस्टर के दिन यहां हुए आतंकी हमले के घावों से उबर रहा है.
वहीं श्रीलंका की सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार सजीत प्रेमदास ने देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव में अपनी हार स्वीकार कर ली और अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी एवं पूर्व रक्षा सचिव गोटबाया राजपक्षे को बधाई दी.
प्रेमदास ने कहा, 'लोगों के निर्णय का सम्मान करना और श्रीलंका के सातवें राष्ट्रपति के तौर पर चुने जाने के लिए गोटबाया राजपक्षे को बधाई देना मेरे लिए सौभाग्य की बात है.' प्रेमदास के बयान से पूर्व राजपक्षे के प्रवक्ता ने चुनाव परिणाम की आधिकारिक घोषणा से पहले दावा किया कि 70 वर्षीय सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल ने शनिवार को हुए चुनाव में जीत दर्ज की.
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पूर्व रक्षा मंत्री गोटाबया राजपक्षे एक सेवानिवृत्त सैनिक हैं, जिन्होंने उस दौरान श्रीलंका के रक्षा विभाग की कमान संभाली थी, जब उनके बड़े भाई महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति (2005-2015) थे. इसके अलावा जब श्रीलंका ने 2009 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के साथ अपना युद्ध समाप्त किया तब भी वह रक्षा विभाग के प्रमुख रहे.
हालांकि, महिंदा राजपक्षे की वर्ष 2015 की हार के बाद इस परिवार का राजनीतिक भविष्य लुप्त होता दिखाई दे रहा था, लेकिन इस साल 21 अप्रैल को ईस्टर के रोज हुए हमलों के बाद से गोटाभाया की स्थति काफी मजबूत हुई है. इन हमलों में 269 लोग मारे गए थे.
चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने खुद को सिंहली बौद्ध बहुमत के राष्ट्रवादी और चैंपियन के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि अप्रैल के हमलों के मद्देनजर मजबूत राष्ट्रीय सुरक्षा का वादा भी किया. दूसरी ओर लिट्टे द्वारा मई 1993 में मारे गए 1989 में राष्ट्रपति बने रणसिंघे प्रेमदासा के पुत्र साजित प्रेमदासा ने मुस्लिम और तमिल अल्पसंख्यकों के लिए लड़ने का संकल्प लिया है.
बता दें कि सत्तारूढ़ न्यू डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीएफ) गठबंधन के साजित प्रेमदासा (52) और श्रीलंका पोडुजना पेरमुना (एसएलपीपी) के गोटाभाया राजपक्षे (70) के बीच मुख्य मुकाबला है. इसके अलावा 35 उम्मीदवार ने भी अपना भाग्य इस मतदान में अजमाया था. 1982 के बाद ऐसा पहली बार है, जब राष्ट्रपति चुनाव में सबसे अधिक दावेदार मैदान में हैं. 2015 में केवल 18 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था.