दुनियाभर के युवाओं के लिए मार्गदर्शक के रूप में जाने जाने वाले स्वामी विवेकानंद की इस साल 157वीं जयंती मनाई जाएगी. उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था. वे युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत माने जाते हैं. यही वजह है कि उनकी जयंती के दिन युवा दिवस भी मनाया जाता है.
आज भले ही स्वामी विवेकानंद हमारे बीच में नहीं है लेकिन साल 1892 में शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में दिया गया उनका भाषण आज भी लोगों के जहन में जिंदा हैं. जब स्वामी ने अपने भाषण की शुरुआत की तो पहले पांच मिनट केवल तालियां ही बजती रहीं. दरअसल उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत टमाई डियर ब्रदर एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका.. से की.' इसे सुनते ही वहां बैठा हर शख्स खुशी से गद-गद हो गया. ये शुरुआत खास इसलिए थी क्योंकि इसके जरिए उन्होंने अमेरिका में हिंदू संस्कृति का परचम लहराया था. दरअसल वहां की सभ्यता के हिसाब से भाषण के दौरान लोगों को लेडीज एंड जेंटलमेन बोल कर संबोधित किया जाता है. ऐसे में जब स्वामी ने उन्हें ब्रदर्स एंड सिस्टर बोला तो ये उनके लिए बिल्कुल अलग था.
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महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था. उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत करते थे, जबकि उनकी माताजी भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला थीं. 1884 में पिता विश्वनाथ दत्त का निधन हो गया, जिसके बाद परिवार की सभी जिम्मेदारियां विवेकानंद के कंधों पर आ गईं. स्वामी विवेकानंद के अंदर कुछ विशिष्ट गुण थे, जो उन्हें महाने बनाते थे. विवेकानंद में अतिथियों का सम्मान करने की काफी अच्छी आदत थी. वे अपने अतिथियों की सेवा में खुद को भूल जाते थे. अतिथि भूखे न रहें इसलिए वे उन्हें भोजन कराते थे और खुद भूखे पेट सो जाते थे.
25 साल की उम्र में बनें सन्यासी
25 की उम्र में ही स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस से प्रेरणा ली और मोह-माया त्याग कर वे संन्यासी बन गए. 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में हुई धर्म संसद में उनके ओजपूर्ण और बेबाक भाषण ने पूरी दुनिया को अपना दीवाना बना दिया. खासतौर पर दुनियाभर के युवा उन्हें अपना गुरू मानने लगे. ये दिन भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण था, जो इतिहास में दर्ज हो गया.
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1 मई 1897 को स्वामी विवेकानंद ने कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. अगले ही साल उन्होंने 9 दिसंबर 1898 को बेलूर स्थित गंगा नदी के तट पर रामकृष्ण मठ की भी स्थापना की. विवेकानंद का निधन उनकी शुगर की बीमारी की वजह से हुआ, 39 साल की उम्र में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. 4 जुलाई 1902 को उन्होंने बेलूर में आखिरी सांसें लीं.
Source : News Nation Bureau