अफगानिस्तान में तालिबान का दबदबा, राष्ट्रपति पर बढ़ा इस्तीफा का दबाव

अमेरिका का प्रभाव हटने के साथ ही तालिबानी आतंकवादी पूरे अफगानिस्तान को अपने कब्जे में लेने का प्रयास कर रहे हैं. वे इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुके हैं. तालिबान ने अफगान के कई प्रांतों पर भी कब्जा कर लिया है.

author-image
Deepak Pandey
एडिट
New Update
afgan minister

राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी( Photo Credit : फाइल फोटो)

Advertisment

अमेरिका का प्रभाव हटने के साथ ही तालिबानी आतंकवादी पूरे अफगानिस्तान को अपने कब्जे में लेने का प्रयास कर रहे हैं. वे इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुके हैं. तालिबान ने अफगान के कई प्रांतों पर भी कब्जा कर लिया है. आतंकवादियों ने अफगानिस्तान के पश्चिमी प्रांत घोर की प्रांतीय राजधानी पर अपना अधिकार जमा लिया है. इस बीच सूत्रों के हवाले से एक बड़ी खबर सामने आ रही है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी पर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया है. बताया जा रहा है कि वे कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं. तालिबानी आतंकी काबूल से सिर्फ 50 किलोमीटर ही दूर हैं.

यह भी पढ़ें : देश की उन्नति में योगदान दे सकें, मेरा सपना हर दिव्यांग को मिले बराबर मौका : पद्मश्री दीपा मलिक

आपको बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान की प्रगति जिस गति से हो रही है, उसने कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है. यहां एक के बाद एक क्षेत्रीय राजधानियों पर तालिबान का नियंत्रण स्थापित होता जा रहा है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, फिलहाल स्थिति स्पष्ट रूप से विद्रोहियों के पक्ष में दिखाई दे रही है, जबकि अफगान सरकार सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है.

इस हफ्ते, एक लीक हुई अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट ने अनुमान लगाया कि काबुल पर कुछ हफ्तों के भीतर हमला हो सकता है और सरकार 90 दिनों के अंदर गिर सकती है. ब्रिटेन सहित अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों ने पिछले 20 वर्षों के प्रशिक्षण और अफगान सुरक्षा बलों को लैस करने का सबसे अच्छा हिस्सा बिताया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अनगिनत अमेरिकी और ब्रिटिश जनरलों ने एक अधिक शक्तिशाली और सक्षम अफगान सेना बनाने का दावा किया था, मगर आज का दिन काफी खाली दिखाई देता है. एक सिद्धांत के रूप में, अफगान सरकार को अभी भी स्थिति से निपटने के लिए एक बड़ी ताकत का साथ चाहिए. कागजों पर तो अफगान सुरक्षा बलों की संख्या 300,000 से अधिक है, जिसमें अफगान सेना, वायु सेना और पुलिस शामिल हैं, लेकिन वास्तव में देश ने अपने भर्ती लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हमेशा संघर्ष किया है.

यह भी पढ़ें : बॉम्बे हाईकोर्ट को उम्मीद, महाराष्ट्र के राज्यपाल 12 एमएलसी की सूची को जल्द ही मंजूरी देंगे

रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगान सेना और पुलिस का उच्च हताहतों, निर्वासन और भ्रष्टाचार का एक बेहद परेशान करने वाला इतिहास रहा है. कुछ बेईमान कमांडरों ने उन सैनिकों के वेतन का दावा किया है, जो बस अस्तित्व में नहीं थे. यानी जो सैनिक थे ही नहीं, उनके नाम पर भी वेतन हथियाने जैसे उदाहरण देखने को मिले हैं.

वहीं दूसरी ओर आए दिन होने वाले हमलों की वजह से सैनिकों के हताहत होने की घटनाएं भी देखने को मिलती रहती है. अमेरिकी कांग्रेस को अपनी नवीनतम रिपोर्ट में, अफगानिस्तान के लिए विशेष महानिरीक्षक (एसआईजीएआर) ने भ्रष्टाचार के संक्षारक प्रभावों के बारे में गंभीर चिंताएं जताई हैं और साथ ही बल की वास्तविक ताकत पर डेटा की संदिग्ध सटीकता को लेकर भी संदेह व्यक्त किया है.

रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टिट्यूट के जैक वाटलिंग का कहना है कि अफगान सेना को भी कभी इस बात का यकीन नहीं रहा कि उसके पास वास्तव में कितने सैनिक हैं. इसके अलावा, उनका कहना है कि उपकरण और मनोबल बनाए रखने जैसी समस्याएं भी हैं. सैनिकों को अक्सर उन क्षेत्रों में भेजा जाता है, जहां उनका कोई पारिवारिक संबंध नहीं होता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक कारण यह भी हो सकता है कि कुछ लोगों ने बिना किसी लड़ाई के अपने पदों को छोड़ने की इतनी जल्दी कर दी.

वहीं दूसरी ओर तालिबान की ताकत को मापना और भी कठिन है. वेस्ट प्वाइंट पर यूएस कॉम्बैटिंग टेररिज्म सेंटर का अनुमान है कि 60,000 लड़ाकों की मुख्य ताकत है. अन्य मिलिशिया समूहों और समर्थकों के साथ, यह संख्या 200,000 से अधिक हो सकती है. लेकिन माइक मार्टिन, एक पश्तो-भाषी पूर्व ब्रिटिश सेना अधिकारी, जिन्होंने अपनी पुस्तक एन इंटिमेट वॉर में हेलमंद में संघर्ष के इतिहास पर नजर रखी है, तालिबान को एक एकल अखंड समूह के रूप में परिभाषित करने के खतरों की चेतावनी दी है.

इसके बजाय वह कहते हैं कि तालिबान स्वतंत्र मताधिकार धारकों के गठबंधन के करीब है - और शायद अस्थायी रूप से - एक दूसरे से संबद्ध है. उन्होंने नोट किया कि अफगान सरकार भी स्थानीय गुटीय प्रेरणाओं से प्रेरित है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान का आकार बदलने वाला इतिहास बताता है कि कैसे परिवारों, कबीलों और यहां तक कि सरकारी अधिकारियों ने भी अपना पक्ष बदल लिया है.

फिर से, अफगान सरकार को धन और हथियारों दोनों के मामले में फायदा होना चाहिए. इसे सैनिकों के वेतन और उपकरणों के भुगतान के लिए अरबों डॉलर मिले हैं - ज्यादातर अमेरिका द्वारा. जुलाई 2021 की अपनी रिपोर्ट में, एसआईजीएआर ने कहा कि अफगानिस्तान की सुरक्षा पर 88 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए गए हैं.

यह भी पढ़ें : दिल्ली में बीते 24 घंटे में नहीं हुई एक भी मौत, सामने आए केवल 50 केस

हालांकि यह सवाल जरूर बना हुआ है कि कि क्या उस पैसे को अच्छी तरह से इस्तेमाल हो भी सका है या नहीं. अफगानिस्तान की वायु सेना को युद्ध के मैदान में एक महत्वपूर्ण बढ़त प्रदान करनी चाहिए. लेकिन इसने अपने 211 विमानों को बनाए रखने और चालक दल के लिए लगातार संघर्ष किया है (एक समस्या जो तालिबान द्वारा जानबूझकर पायलटों को निशाना बनाने के साथ और अधिक तीव्र होती जा रही है). इसके साथ ही यह जमीन पर कमांडरों की मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं दिख रही है.

इसलिए हाल ही में लश्कर गाह जैसे शहरों पर अमेरिकी वायु सेना की भागीदारी, जो तालिबान के हमले में आ गए हैं, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका कब तक वह सहायता प्रदान करने को तैयार है. तालिबान अक्सर नशीले पदार्थों के व्यापार से होने वाले राजस्व पर निर्भर रहा है, लेकिन उन्हें बाहर से भी समर्थन मिला है - विशेष रूप से पाकिस्तान से.

हाल ही में तालिबान ने अफगान सुरक्षा बलों से हथियार और उपकरण जब्त किए हैं - जिनमें से कुछ अमेरिका द्वारा प्रदान किए गए हैं - जिनमें हुमवीस, नाइट साइट्स, मशीन गन, मोर्टार और तोपखाने शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सोवियत आक्रमण के बाद अफगानिस्तान पहले से ही हथियारों से भरा हुआ था और तालिबान ने दिखाया है कि यहां तक कि वह सबसे अधिक परिष्कृत बल को भी हरा सकता है.

Source : News Nation Bureau

afghanistan America Afghanistan war Ashraf Ghani Taliban war
Advertisment
Advertisment
Advertisment