Advertisment

बगावत ने दुनिया का सामने ला दी पुतिन की कमजोरी

पिछले 23 साल में ये पहली बार है रूस में  पुतिन के खिलाफ हथियारबंद बगावत हुई है और स्ट्रांगमैन की इमेज वाले पुतिन को इस बगावत को बातचीत के जरिए सुलझाने के लिुए अपने दोस्ती और बेलारूस के प्रेजीडेंट लुकाशेंको की मदद लेनी पड़ी.

author-image
Prashant Jha
New Update
russia pres

व्लादिमीर पुतिन रूस के राष्ट्रपति( Photo Credit : फाइल फोटो)

Advertisment

बीते 24 जून को रूस में जो हुआ उसने कई घंटों तक पूरी दुनिया की सांसे रोक दी. पूरब से लेकर पश्चिम तक हर देश रूस में पुतिन के खिलाफ हुई हथियारबंद बगावत के नतीजे का इंतजार कर रहा था. आखिरकार देर रात वैगनर आर्मी के चीफ येवगेनी प्रिगोझिन ने इस बगावत के अंत का ऐलान कर दिया और उनके लड़ाके मॉस्को के रास्ते से वापस लौटने लगे. ये बगावत तो खत्म हो गई, लेकिन एक बड़ा सवाल छोड़ गई. सवाल ये कि क्या अब रूस पर पुतिन की पकड़ ढीली हो चुकी है? ये सवाल इसिलए उठ रहा है क्योंकि पिछले 23 साल में ये पहली बार है रूस में  पुतिन के खिलाफ हथियारबंद बगावत हुई है और स्ट्रांगमैन की इमेज वाले पुतिन को इस बगावत को बातचीत के जरिए सुलझाने के लिुए अपने दोस्ती और बेलारूस के प्रेजीडेंट लुकाशेंको की मदद लेनी पड़ी.  तो क्या अब वाकई रूस में पुतिन का तिलिस्म टूटने लगा है. वो तिलिस्म जिसने पिछले 23 सालों तक रूस में उनके सिंहासन को मजबूत बनाए रखा.पुतिन ने अपने करियर का आगाज सोवियत संघ की मशहूर खुफिया एजेंसी केजीबी  के जासूस के तौर पर किया था. साल 1992 में सोवियत संघ के टटूने से साल भर पहले ही वो केजीबी को छोड़कर सेंट पीटर्सबर्ग के मेयर के साथ काम करने लगे. 1998 में पुतिन रूस के प्रेजीडेंट बोरिस येल्तसिन का विश्वास हासिल करके रूस की  खुफिया एजेंसी FSB के चीफ बन गए.


साल भर बाद येल्तसिन ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया कुछ महीने बाद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे येल्तसिन ने इस्तीफा दिया तो पुतिन उनके उत्तराधिकारी बने और साल 2000 में चुनाव जीतकर पुतिन जब रूस  के राष्ट्रपति बने तो उस वक्त उनके मुल्क का स्थिति बेहद खराब थी. कभी दुनिया की महशक्ति रहा रूस उस वक्त अपने परमाुणु हथियारों के मेंटेनेंस तक के लिए विदेश से कर्ज ले रहा था. दुनिया के मंच पर रूस की आवाज कहीं सुनाई नहीं देती थी, लेकिन साल 2002 में एक ऐसी घटना हुई जिसने पुतिन की इमेज एक कठोर फैसले लेने वाले मजबूत लीडर की बना दी.  मॉस्को के एक थिएटर में चेचन आतंकवादियों ने 800 लोगों को होस्टेज बना लिया. इन आतंकवादियों से सौदा करने की बजाय पुतिन ने उन पर कमांडो एक्शन का आदेश दिया. इस ऑपरेशन में सभी आतंकवादियों के साथ 129 बंधक भी मारे गए. इस फैसले के बाद रूस में पुतिन की अप्रूवल रेटिंग 83 फीसदी तक बढ़ गई.

पुतिन के नेतृत्व में रूस आर्थिक तौर पर हुआ मजबूत

रूस की आवाम को लगने लगा कि पुतिन ही वो लीडर है जो उनके मुल्क के खोए हुए गौरव को वापस लौटा सकते हैं. आठ साल के अपने पहले दो कार्यकालों के दौरान पुतिन ने पश्चिमी दे्शों के साथ अच्छे ताल्लुक बनाकर इवनेस्टमेंट हासिल किया और गैस और कच्चे तेल पर आधारित रूस की इकॉनोमी पटरी पर दौड़ने लगी. साल 2000 से 2008 तक रूस के जीडीपी में 70 फीसदी और इनवेस्टमेंट में 125 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई. रूस के संविधान के मुताबिक पुतिन चार-चार साल के दो कार्यकाल के बाद लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति नहीं बन सके थे. लिहाजा उन्होंने 2008 में अपने वफादार डिमिट्री मेदवेदेव को अपनी कुर्सी सौंप कर खुद प्रधानमंत्री बन गए. 2012 में पुतिन फिर से रूस के राषट्रपति बने और संविधान में बदलाव करके इस बार उनका कार्यकाल छह साल का कर दिया गया.

यह भी पढ़ें: क्या रूस में पुतिन की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है?

पुतिन पर लगे कई आरोप

अमेरिका समेत कई देशों का आरोप है कि पुतिन ने वो चुनाव धांधली करके जीता था. खुद रूस में भी पुतिन की अथॉरिटी के खिलाफ कई लोगों ने आवाज उठाई लेकिन पुतिन ने अपने विरोधियों की आवाज को बड़ी बेरहमी के साथ कुचल दिया. यही वो वक्त था पुतिन ने दुनिया मंच पर अपना यानी रूस की ताकत का मुजाहिरा शुरू कर दिया. यूक्रेन में जब पुतिन से सहयोगी विक्टर योंकोविच चुनाव हार गए तो साल 2014 में रूस ने फौज भेज कर क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. एक साल बाद 2015 में पुतिन ने गृह युद्ध से झूझ रहे सीरिया के तानाशाह बशर अल असद की मदद के लिए अपनी फौज भेज दी. सोवियत संघ के पतने के बाद ये पहला मौका था जब रूस ने किसी इंटरनेशनल मसले पर फौजी दखल दिया था. ये घटनाएं इस बात का सबूत है कि पुतिन को ये अहसास हो गया था कि अब  रूस में उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है लिहाजा उन्होंने इंटरनेशनल मंच अपना रुतबा दिखाना शुरू कर दिया. हालांकि रूस में एलेक्सी नेवेलनी ने लोकतांत्रिक रूप से पुतिन की सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ जमकर आवाज उठाई और उन्हें रूस की जनता के एक हिस्से का भी साथ मिला. लेकिन साल 2020 में एक फ्लाइट के दौरान उनपर जहरबुझा हमला कर दिया गया जिसके आरोप पुतिन पर लगे. इस हमले के चलते नेवेलनी  लंबे वक्त तक अस्पताल में रहे और 2021 में जब वो रूस वापस लौटे तो उन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. वो अब भी जेल में बंद है.

नेवलेनी को जेल में डाल कर पुतिन को लगा था कि उनके अंजाम को देखकर अब रूस में कोई उनके खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत नहीं करेगा. लेकिन साल भर से ज्यादा खिंच चुके यूक्रेन युद्ध में बड़ी संख्या में हुई रूसी सैनिकों की मौत और अमेरिकी पबंदियों के चलते गिरती रूसी इकॉनोमी ने उन्हें बैकफुट पर धकेल दिया है और अब  उन्हीं के वफादार प्रिगोझिन की हथियारबंद बगावत ने ये साबित कर दिया है कि पुतिन अब उतने मजबूत नहीं रहे है जितने कभी हुआ करते थे. क्योंकि मजबूत पुतिन कभी गद्दारों के साथ समझौता नहीं करते थे बल्कि उन्हें सजा देते थे. प्रिगोझिन के साथ हुआ समझौता पुतिन की कमजोरी  और रूस की सत्ता पर उनकी ढीली पड़ती पकड़ की निशानी है.

सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट

Vladimir Putin Russian President Vladimir Putin President Vladimir Putin russia ukraine conflict russia ukraine news russia ukraine tension russia ukraine war russia ukraine border wagner army in russia russia ukraine news in hindi
Advertisment
Advertisment
Advertisment