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इस साल बच्चा पैदा हुआ तो 2050 तक झेलेगा भूख, सूखा और बीमारियां

आने वाले कुछ दशक भी वैश्विक आबादी के लिए आसान नहीं होंगे. कुपोषण, पानी की किल्लत और संक्रामक बीमारियां मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरेंगी.

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Nihar Saxena
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इस साल जन्मे बच्चों को करना होगा 2050 तक जटिल चुनौतियों का सामना.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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कोरोना कहर (Corona Epidemic) झेल रही वैश्विक आबादी पर भूख, सूखे और बीमारियों का कहर आने वाले दशकों में और भयंकर होगा. 2021 में पैदा होने वाले बच्चों को कम से कम अगले 3 दशकों तक इन खतरों को झेलना पड़ेगा. जलवायु परिवर्तन को लेकर संयुक्त राष्ट्र के अंतरसरकारी पैनल (IPCC) का हालिया विश्लेषण तो कुछ यही चेतावनी देता है. आईपीसीसी के मुताबिक 2020 में कोरोना महामारी की दस्तक ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया. इस क्रम में संकट वाली खबर यह है कि आने वाले कुछ दशक भी वैश्विक आबादी के लिए आसान नहीं होंगे. कुपोषण, पानी की किल्लत और संक्रामक बीमारियां मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरेंगी. संभवतः इसी के मद्देनजर विकसित देशों ने इनसे निपटने के उपायों पर समय रहते काम करना शुरू कर दिया है. 

महंगाई भी तोड़ कर रख देगी कमर
आईपीसीसी ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में कहा है कि शाकाहार को बढ़ावा देने जैसी नीतियां सेहत के मोर्चे पर आने वाले खतरों से निपटने में कारगर तो होंगी, लेकिन इन्हें पूरी तरह से नहीं टाला जा सकेगा. फसलों की बर्बादी, प्रमुख खाद्यान्नों की गुणवत्ता में आने वाले कमी और बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाना लगभग नामुमकिन रहेगा. ग्लोबल वॉर्मिंग और कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाने की दिशा में मामूली प्रगति होने पर 2021 में जन्मे बच्चों को स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का तब तक सामना करना पड़ेगा, जब तक वे 30 साल के नहीं हो जाते.

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव

  • 4 हजार पन्नों की रिपोर्ट में आईपीसीसी का धरती पर जलवायु परिवर्तन के असर का खाका
  • 8 करोड़ अधिक वैश्विक आबादी के सामने भूख का खतरा 2050 में भयंकर होगा
  • 80 फीसदी से अधिक भूखमरी के प्रति संवेदनशील आबादी अफ्रीकी और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में

भारत में खेती पर संकट

  • रिपोर्ट में भारत में धान के उत्पादन वाले लगभग 40 फीसदी क्षेत्रों के खेती के लिए मुफीद न रह जाने की आशंका
  • उप-सहारा क्षेत्र में पानी के चक्र में बाधा उत्पन्न होने से उपज के लिए उस पर निर्भर फसलों की पैदावार में गिरावट
     
    खतरे में खाद्य सुरक्षा
  • 4 फीसदी कमी आई वैश्विक स्तर पर मक्के की पैदावार में 1981 के बाद से जलवायु परिवर्तन के चलते
  • 15 फीसदी घटा ज्वार का उत्पादन पश्चिमी अफ्रीका में, 20 फीसदी की गिरावट देखी गई बाजरे की उपज में
     
    पौष्टिक गुणों में गिरावट
  • 14 फीसदी तक प्रोटीन की उपलब्धता घटने की आशंका है धान, गेहूं, आलू और जौ में
  • 15 करोड़ अधिक लोगों के शरीर में प्रोटीन की कमी पैदा होने का खतरा मंडरा रहा इस कारण
     
    महंगाई की मार और बढ़ेगी
  • अनाज उत्पादन में कमी और जैविक फसलों की बढ़ती मांग से 2050 तक खाद्य महंगाई तीन गुना
  • 18.3 करोड़ अतिरिक्त गरीब परिवार से जुड़े लोगों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल होगा
  • 1 करोड़ अधिक बच्चों को आर्थिक-सामाजिक विकास के बावजूद कुपोषणबौनेपन का सामना करना पड़ेगा

पानी की समस्या और गहराएगी

  • 2050 तक 03 से 14 करोड़ आबादी पर आंतरिक विस्थापन का खतरा मंडरा रहा अफ्रीका, दक्षिण-पूर्वी एशिया और लातिन अमेरिका में पानी की किल्लत, कृषि संकट व समुद्री जलस्तर में वृद्धि के चलते
  • 50 फीसदी से अधिक वैश्विक आबादी पहले से ही जल संकट से जूझ रही, जलवायु परिवर्तन के चलते भूमिगत जल के स्तर में लगभग तीन-चौथाई कमी से ढाई अरब और लोग पानी के लिए तरसते दिखेंगे
  • बर्फीली चट्टानों का तेजी से पिघलना भी चिंता का सबब, दो अरब लोगों के लिए स्वच्छ जल का अहम स्रोत हैं ये चट्टानें, पानी की कमी से वैश्विक जीडीपी में 2050 तक 0.5 फीसदी की गिरावट आने की आशंका
     
    कहर बरपाएंगी बीमारियां
  • लगातार गर्म होती धरती से जानलेवा रोगों का प्रसार करने वाले मच्छर सहित अन्य जीवों की आबादी में होगा इजाफा
  • आधी से ज्यादा वैश्विक आबादी डेंगू, पीत ज्वर और जीका जैसी संक्रामक बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएगी
  • डायरिया से बच्चों की मौत के मामले भी बढ़ेंगे, वायु प्रदूषण में इजाफे से फेफड़ा और हृदय संबंधी रोगों का संकट गहराएगा

HIGHLIGHTS

  • आने वाले कुछ दशक भी वैश्विक आबादी के लिए आसान नहीं
  • कुपोषण, पानी की किल्लत और संक्रामक बीमारियां बड़ी चुनौती
  • खाद्यान्नों की गुणवत्ता में कमी और महंगाई पर लगाम नामुमकिन
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