ब्रिटेन में आम चुनाव को लेकर मतगणना जारी है. इस बीच सुनक ने अपनी हार मान ली है. लेबर पार्टी प्रचंड बहुमत की ओर अग्रसर है. यह आंकड़ा 326 पार कर चुका है. 14 साल बाद लेबर पार्टी सत्ता में वापसी कर रही है और कीर स्टार्मर यूके के अगले पीएम होंगे. आइए जानें ब्रिटेन की नई सरकार के आगे क्या चुनौतियां होंगी. अभी भी ब्रिटेन के आर्थिक हालात में सुधार नहीं हुआ है. सुनक के बाद कीर को अब इन पांच हालातों का सामना करना होगा.
खराब आर्थिक विकास
यूके में बीते 15 वर्षों में आर्थिक विकास सबसे खराब स्थिति में है. आकड़ों के अनुसार, इंस्टीट्यूट ऑफ फिस्कल स्टडीज का कहना है कि गरीब से लेकर अमीर और जवान से लेकर बुजुर्ग तक सभी के लिए आर्थिक विकास दर काफी सुस्त हालत में है. यहां पर आर्थिक असमानता को कम करने की दर बढ़ती जा रही है. इसका मतलब यह है कि देश में जहां आर्थिक असमानता बरकरार है, वहीं, गरीबी कम करने की रफ्तार काफी कम है. बीते 16 सालों के 46 फीसदी के मुकाबले इस वक्त ब्रिटेन का ग्राम डोमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) केवल 4.3 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. इसे साल 1826 के बाद सबसे सुस्त दर होने के दावा किया गया है.
स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति
स्वास्थ्य सेवाओं के केस में यूके के हालात इस समय काफी खराब है. इस वक्त हर 10 में से चार लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर इंतजार करना पड़ रहा है. चुनाव में इस मुद्दे को जमकर उछाला गया. इससे लेबर पार्टी को लाभ भी मिला. ऐसा बताया जा रहा है कि 7.6 मिलियन लोग इस साल अप्रैल माह में चिकित्सा सेवाओं के इंतजार में शामिल थे. पिछले साल सितंबर में 7.8 लाख लोगों को चिकित्सा के लिए इंतजार करना पड़ा था.
यूके छोड़ने वालों की संख्या में इजाफा
यूके में लॉन्ग टर्म नेट माइग्रेशन की स्थिति ठीक नहीं है. यूके को छोड़ जाने वाले और यहां आने वालों के बीच अंतर काफी बढ़ गया है. 2023 के अंत तक यूके में लॉन्ग टर्म माइग्रेशन का आंकड़ा 6.85 लाख तक पहुंच चुका था. यहां पर आने वालों के मुकाबले जाने वालों की संख्या में ज्यादा इजाफा देखा गया. बीते एक दशक के आंकड़ों में ये तीन गुना है. लंबी अवधि के लिए यूके आने वालों में सबसे अधिक भारतीय हैं. इस सूची में ढाई लाख भारतीय हैं. इसके बाद 1.41 लाख नाइजीरियन, 90 हजार चीनी और 83 हजार पाकिस्तानी शामिल हैं.
महंगाई से जूझ रहा ब्रिटेन
भारत की तरह ही यूके भी महंगाई से जूझ रहा है और वहां लोगों के जीवन यापन की लागत पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ चुकी है. मुद्रास्फीति पिछले 41 सालों में सबसे टॉप पर है. अक्तूबर 2022 में यह 11.1 फीसदी तक दर्ज की गई. इसका कारण कोविड के दौरान सप्लाई से जुड़ी समस्याएं और यूक्रेन-रूस का युद्ध जिम्मेदार बताया जा रहा है. हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि मई 2024 में वार्षिक मुद्रास्फीति दर में दो फीसदी की कमी देखी गई है.
घरों के किराए और कीमतों में बढ़ोतरी
यूके में रहना भी काफी महंगा हो चुका है. घर खरीदने अब जनता के बस से बाहर है. यहां पर घरों की कीमत आय से मुकाबले 8.3 गुना अधिक है. 2010 में ये 6.8 गुना अधिक था. यूके में मकान मालिकों का आंकड़ा घट रहा है. 2010 के मुकाबले ये आंकड़ा 7.1 फीसदी तक नीचे चला गया. 35 से 44 आयु वर्ग के लोगों का आंकड़ा भी 6.5 फीसदी गिर चुका है. वहीं यहां पर किराए की दरें भी काफी अधिक बढ़ी हैं. जनवरी 2024 में यह 6.2 फीसदी तक पहुंच चुका था. 2016 के बाद ये सबसे ज्यादा है.
Source : News Nation Bureau