कैसे होता है दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव

अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव हैं और इस बार का चुनाव काफी विवादित रहा है। दोनों उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन और डोनल्ड ट्रंप एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।

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sunita mishra
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कैसे होता है दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव

हिलेरी क्लिंटन और डोनल्ड ट्रंप का फाइल फोटो

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अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव हैं और इस बार का चुनाव काफी विवादित रहा है। दोनों उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन और डोनल्ड ट्रंप एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। अमेरिका के बाहर भी इन दोनों को लेकर अलग-अलग राय है। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया जटिल और लंबी होती है। आइये जानते हैं कि अमेरिका में चुनाव किस तरह से होते हैं और उसकी प्रक्रिया क्या है।

चुनाव की प्रक्रिया

अमेरिका के संविधान के अनुच्छेद-2 में राष्ट्रपति चुनाव की पूरी प्रक्रिया का जिक्र किया गया है। राष्ट्रपति का चुनाव हर चौथे साल में किया जाता है। चुनाव प्रक्रिया जनवरी में शुरू होकर नवंबर के शुरुआती हफ्ते में मतदान तक चलती है। नवंबर के पहले मंगलवार को चुनाव होता है। इस बार 8 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होगा। 20 जनवरी को इनॉगरेशन डे पर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति शपथ ग्रहण करते हैं और उनका चार साल का कार्यकाल शुरू हो जाता है।

जनता सीधे राष्ट्रपति नहीं चुनती, यहां इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था है। अगर किसी भी उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिलता है, तो फिर हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव राष्ट्रपति का चुनाव करता है और सीनेट उप राष्ट्रपति का चुनाव करती है।

राजनीतिक दल

अमेरिका में चुनावी व्यवस्था बहुदलीय है, लेकिन मुकाबला दो ही दलों डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के होता है। इन चुनावों में दोनों दलों के अलावा लिबरिटेरियन, ग्रीन और कांस्टीट्यूशन पार्टी चुनाव में हिस्सा लेते हैं। कई निर्दलीय उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमाते हैं।

उम्मीदवार की योग्यता

अमेरिकी राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार का अमेरिका में जन्म लिया नागरिक होना ज़रूरी है। उसकी न्यूनतम उम्र 35 वर्ष होनी चाहिये। इसके अलावा अमेरिका में वो पिछले 14 सालों से रह रहा हो। इन तीनों शर्तों को पूरा करने वाला हर नागरिक राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिये योग्य माना जाता है। इसके अलावा उसे अंग्रेज़ी का ज्ञान होना भी ज़रूरी है।

प्राइमरी और कॉकस से शुरुआत

औपचारिक रूप से अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया 'प्राइमरी' से शुरू होती है। इस प्रक्रिया को काफी अहम माना जाता है। यह प्रक्रिया चुनाव के साथ जनवरी में शुरू होकर जून तक चलती है। पार्टी अपने संभावित उम्मीदवारों की सूची जारी करती है, जो राष्ट्रपति चुनाव में उतरना चाहते हैं। इसके बाद शुरू होती है पार्टी प्रतिनिधि यानि पार्टी डेलिगेट चुनने की प्रक्रिया, जिसमें अमेरिका के 50 राज्यों के वोटर मतदान कर प्रतिनिधि चुनते हैं। अमेरिका के कुछ राज्यों में कॉकस के जरिये भी स्थानीय स्तर पर भी पार्टी प्रतिनिधि का चुनाव होता है। जिसमें किसी सार्वजनिक जगह पर बैठक कर उम्मीदवारों को नाम पर चर्चा की जाती है और हाथ उठाकर प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। प्राइमरी स्तर पर पार्टी प्रतिनिधि चुनने के लिए अमेरिकी संविधान में लिखित प्रावधान नहीं है। प्राइमरी और कॉकस की प्रक्रिया अमेरिका के हर राज्य के कानून के हिसाब से अलग-अलग होती है।

कन्वेंशन में चुना जाता है राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार

प्राइमरी में चुने गए प्रतिनिधि पार्टी सम्मेलन यानि कन्वेंशन में हिस्सा लेते हैं। इस दौरान चुने गए यही प्रतिनिधि राष्ट्रपति का उम्मीदवार चुनते हैं। यहीं पर नामांकन की प्रक्रिया भी होती है। इस सम्मेलन में ही राष्ट्रपति पद के लिये चुना गया उम्मीदवार अपनी पार्टी की तरफ से उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनता है।

चुनाव प्रचार और मुद्दे

राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुने जाने के बाद तीसरे चरण की शुरुआत होती है, जिसमें प्रचार शामिल है। इसमें पार्टियों के उम्मीदवार अपना विज़न जनता के सामने रखते हैं और जनता से जुड़े मुद्दों पर बहस करते हैं। प्रचार से मतदाताओं का समर्थन जुटाने की कोशिश की जाती है। प्रचार के दौरान ही उम्मीदवारों के बीच टेलीविजन पर बहस भी होती है, जिसे अमेरिकी जनता काफी महत्वपूर्ण मानती है और इस बहस का चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

इलेक्टर और इलेक्टोरल कॉलेज

अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता की वोटिंग से नहीं होता है। इनका चुनाव इलेक्टोरल कॉलेज का प्रक्रिया से इलेक्टर्स करते हैं। इन्हें राष्ट्रपति के उम्मीदवारों का समर्थन मिला होता है, जिन्हें जनता चुनती है। इन्हें चुने जाने के साथ ही जनता की भागीदारी खत्म हो जाती है। अब ये चुने हुए इलेक्टर्स ही इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं। इलेक्टोरल कॉलेज में 538 सदस्य होते हैं, वोटिंग के जरिये राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल वोट जरूरी होते हैं।

इलेक्टर की संख्या

हर राज्य में इलेक्टर्स की संख्य इस बात पर तय होती है कि उस राज्य से कांग्रेस (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और सिनेट) के सदस्यों का कोटा कितना है। हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में सदस्य की संख्या 435 होती है, वहीं सीनेट में 100 सदस्य होते हैं। दोनों सदनों को मिलाकर ये संख्या 535 हो जाती है। अब उदाहरण के तौर पर कैलिफोर्निया में 55 सदस्य हैं तो इतने ही इलेक्टर्स भी वहां से चुने जाते हैं। इलेक्टोरल कॉलेज में 538 की संख्या को पूरा करने के लिये अमेरिका के 51वें राज्य कोलंबिया से तीन सदस्यों की संख्या भी जोड़ी जाती है।

सारा वोट विजेता का

अमेरिका के नेब्रास्का और माइने राज्य को छोड़कर बाकी सभी 48 राज्यों में 'सारा वोट विजेता का' नियम लागू होता है। इसमें जिस पार्टी के ज्यादा इलेक्टर्स जीतते हैं, सारे इलेक्टोरल वोट उनके खाते में चले जाते हैं। नेब्रास्का और माइने में 'कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट मेथड' इस्तेमाल होता है। इस मेथड के अनुसार प्रत्येक कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट के अंदर एक इलेक्टर पापुलर वोट के जरिये, और बाकी के दो इलेक्टर्स पूरे राज्य के पापुलर वोट के जरिये चुने जाते हैं।

इनॉगरेशन डे

जिस तरह अमेरिका में चुनाव के लिए दिन और महीना तय होता है, उसी तरह नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की तारीख भी तय होती है। नया राष्ट्रपति हमेशा 20 जनवरी को शपथ ग्रहण करता है।
उप राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण राष्ट्रपति से पहले कराया जाता है। ये प्रक्रिया वाशिंगटन डीसी के कैपिटल बिल्डिंग में होती है। इस तरह से अमेरिका के नए राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।

Source : प्रदीप त्रिपाठी

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