अमेरिका ने संकेत दिए हैं कि वह भारत का नाम को अपनी करेंसी मानिटरिंग लिस्ट से हटा सकता है. अमेरिका के अनुसार भारत ने कई ऐसे कदम उठाए हैं जिससे उसकी चिंता दूर हो गई है. अमेरिका अपनी इस लिस्ट में उन देशों को रखता है जिन पर उसे शक होता है कि वह देश अपनी फॉरेन करेंसी की विनियम दर तय करने में गड़बड़ी करते हैं. इस लिस्ट में अप्रैल में अमेरिका ने भारत के अलावा चीन, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया और स्विट्जरलैंड को डाला था.
अच्छा काम कर रहा भारत
वित्त मंत्रालय ने बुधवार को जारी अपनी हालिया रिपोर्ट में भारत को इस सूची में बनाए रखा है. हालांकि उसने कहा कि यदि भारत उसी तरह की गतिविधियां जारी रखता है, जो उसने पिछले छह महीने में की हैं तो अगली द्वि-वार्षिक रिपोर्ट में उसका नाम सूची से हटाया जा सकता है.
पॉलिसी में दिख रहा बदलाव
अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा, 'भारत की गतिविधियों में स्पष्ट रूप से बदलाव आया है. उसके केंद्रीय बैंक की जून 2018 तक विदेशी मुद्रा खरीद शुद्ध रूप से कम होकर 4 अरब डॉलर रह गई. यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.2 प्रतिशत के बराबर है. उसने कहा कि 2017 की तुलना में इसमें काफी बदलाव आया है. इस दौरान पहली तीन तिमाहियों (सितंबर तक) में उसकी विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद जीडीपी के दो प्रतिशत से अधिक थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि साल के पहले छह महीने के दौरान विदेशी निवेशकों ने भारतीय पूंजी बाजार से निकासी की. पहले छह महीने में रुपया डॉलर के मुकाबले करीब 7 प्रतिशत और वास्तविक आधार पर 4 प्रतिशत से अधिक गिर गया है.
अमेरिका को हो रहा है भारत से व्यापार घाटा
अमेरिका के साथ भारत का व्यापार अधिशेष (यानी अमेरिका का व्यापार घाटा) जून 2018 तक 23 अरब डॉलर है, लेकिन भारत के चालू खाते का घाटा जीडीपी का 1.9 प्रतिशत हो गया है. इसमें कहा गया है कि चालू खाते के घाटे के बढ़ने की वजह सोना और पेट्रोलियम पदार्थों का आयात है. वित्त मंत्रालय ने कहा, 'इसके परिणामस्वरूप भारत तीन में से सिर्फ एक मानदंड को पूरा कर पाया है. यदि अगली रिपोर्ट तक भारत का यह रुख बरकरार रहता है तो उसे निगरानी सूची से हटा दिया जाएगा.'
Source : PTI