पाकिस्तान का सूबा बलूचिस्तान अक्सर खबरों में बना रहता है. हाल-फिलहाल में इस सूबे में पाकिस्तानी सुरक्षाबलों पर घात लगाकार कई हमले भी हुए हैं. जदअसल बलूचिस्तान, भारत और पाकिस्तान की आजादी से पहले ही एक आजाद देश बन गया था लेकिन पाकिस्तान के जनक यानी मोहम्मद अली जिन्ना के धोखे ने उसे पाकिस्तान में मिला दिया और भारत हाथ मलता रह गया. बलूचिस्तान के पाकिस्तान में शामिल होने का घटनाचक्र में एक अहम तारीख है 27 मार्च, 1948. उस वक्त बलूचिस्तान कुछ रियासतों का एक ग्रुप था जिसके चीफ थे कलत रियासत के शासक मीर अहमदयार खान भारत की राजधानी दिल्ली से प्रसारित होने वाले ऑल इंडिया रेडियो के समाचारों का प्रसारण को सुनने के शौकीन. कई जगह ऐसा लिखा गया है कि 27 मार्च के दिन ऑल इंडिया रेडियो पर एक खबर प्रसारित हुई जिसके मुताबिक उस वक्त के भारत के स्टेट डिपार्टमेंट के सैक्रेटरी वीपी मेनन ने प्रैस कॉम्फ्रेंस में कहा था कहा था कि कलत के खान भारत के साथ अपनी रियासत का विलय करना चाहते हैं लेकिन भारत क इससे कोई लेना-देना नहीं है.
वीपी मेनन का ये बयान कलत के खान के लिए एक बड़े धक्के की तरह था क्योंकि इस बयान के बाद ये साफ हो गया कि भारत के साथ विलय की उनकी तमाम सीक्रेट कोशिशें अब बेकार हो चुकी हैं. हालांकि इस बयान के प्रसारित होने के अगले दिन भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की लेकिन तब तक पाकिस्तान को बहाना मिल चुका था. ऑल रेडियो पर बलूचिस्तान की खबर प्रसारित होने के अगले ही दिन पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने कलत रियासत पर कब्जा करने का आदेश जारी कर दिए. 29 अगस्त को पाकिस्तान आर्मी की सेवेंन्थ बलूच रेजीमेंट के लेफ्टिनेंट गुलजार की अगुआई में कई बख्तरबंद गाड़ियां कलत रियासत की सीमाओं को तोड़ते हुए अंदर घुस गईं. मेजर जनरल मोहम्मद अकबर खान कलत के खान को कराची लेकर गए कलत रियासत को पाकिस्तान में मिलाने के विलय पत्र पर दस्तखत करवाए गए. आज के बलूचिस्तान का लगभग ज्यादातर हिस्सा कलत रियासत के तहत ही आता था. इस रियासत का पाकिस्तान में विलय एक बहुत बड़ा धोखा और इंटरनेशनल गेम का हिस्सा माना जाता है.
कलत के साथ ब्रिटिश सरकार की संधि और नीति बाकी रियासतों से अलग थी
दरअसल कलत रियासत की पोजिशन ब्रिटिश भारत की बाकी रियासतों की पोजिशन से अलग थी. कलत के साथ ब्रिटिश सरकार की संधि और नीति बाकी रियासतों से अलग थी. अपने पश्चिम में ईरान और अफगानिस्तान से सटी कलत रियासत के साथ ब्रिटिश साम्राज्य ने 1876 में एक समझौता किया था जिसकी धारा तीन के तहत ब्रिटिश राज कलत की स्वतंत्रता का सम्मान करने को बाध्य था. 1945 में दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद ये तय हो गया था कि ब्रिटिशर्स भारत को छोड़कर जाने वाले है तब कलत के खान ने ब्रिटेन में अपनी रियासत की आजादी के लिए लंबा मुकद्मा लड़ा. इस मुकदमें में उनकी ओर से दलीलें रखने वाले वकील ते मोहम्मद अली जिन्ना. जिन्ना ने ये मुकद्मा जीत लिया और इत्तेफाक दखिए जिस कलत रियासत की आजादी के लिए जिन्ना ने अदालत में लड़ाई लड़ी थी उसे ही वक्त बाद ताकत के दम पर पाकिस्तान में मिला लिया. बलूचिस्तान की आवाम जिन्ना के इस धोखे कोे हमेशा याद रखती है.
देसी रियासतों को दो केटेगरी में बांटा गया
कलत रियासत को लेकर जिन्ना ने एक के बाद एक कई धोखे दिए. दरअसल अंग्रेजों ने भारत की आजादी के वक्त देसी रियासतों को दो केटेगरी में बांटा था. 560 देसी रियासतें केटेगरी ए में आती थीं जो ब्रिटिश सरकार के पॉलिटिकल डिपार्टमेंट के तहत थीं. जबकि कलत, भूटान और सिक्किम जैसी रियासतें विदेश मंत्रालय के तहत केटेगरी बी में रखी गई थीं. 1876 के समझौते के तहत ब्रिटिश सरकार का कलत के आंतरिक मामलों में कोई दखल नहीं था. यही वजह थी कि कलत के नवाब कभी दिल्ली के चैंबर ऑफ प्रिंसेज मे शामिल नहीं हुए वो खुद को ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं मानते थे लिहाजा उनकी रियासत बाकी रियासतों की तरह भारत या पाकिस्तान में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं थी.
भारत-पाकिस्तान की आजादी से कुछ दिन पहले यानी 11 अगस्त 1947 को कलत की रियासत का पाकिस्तान के साथ समझौता हो गया जिसमें खुद जिन्ना ने उसकी आजादी का सम्मान करने पर सहमति दी. ब्रिटिश सरकार भी इस समझौते में शामिल थी, कलत रियासत यनी आज का बलूचिस्तान भारत-पाकिस्तान से पहले ही आजाद हो चुका था. कलत के खान ने डगलस येट्स फेल को अपना विदेश मंत्री नियुक्त कर दिया. और कराची में अपना उच्चायोग खोलकर अपना दूत भी नियुक्त कर दिया. अपने पश्चिम में ईरान और अफगानिस्तान से सटी कलत रियासत के साथ ब्रिटिश साम्राज्य ने 1876 में एक समझौता किया था जिसकी धारा तीन के तहत ब्रिटिश राज कलत की स्वतंत्रता का सम्मान करने को बाध्य था.
1945 में दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद ये तय हो गया था कि ब्रिटिशर्स भारत को छोड़कर जाने वाले है तब कलत के खान ने ब्रिटेन में अपनी रियासत की आजादी के लिए लंबा मुकदमा लड़ा. इस मुकदमें में उनकी ओर से दलीलें रखने वाले वकील ते मोहम्मद अली जिन्ना. जिन्ना ने ये मुकद्मा जीत लिया और इत्तेफाक दखिए जिस कलत रियासत की आजादी के लिए जिन्ना ने अदालत में लड़ाई लड़ी थी उसे ही वक्त बाद ताकत के दम पर पाकिस्तान में मिला लिया. बलूचिस्तान की आवाम जिन्ना के इस धोखे को हमेशा याद रखती है. कलत रियासत को लेकर जिन्ना ने एक के बाद एक कई धोखे दिए. दरअसल अंग्रेजों ने भारत की आजादी के वक्त देसी रियासतों को दो केटेगरी में बांटा था. 560 देसी रियासतें केटेगरी A में आती थीं जो ब्रिटिश सरकार के पॉलिटिकल डिपार्टमेंट के तहत थीं. जबकि कलत, भूटान और सिक्किम जैसी रियासतें विदेश मंत्रालय के तहत केटेगरी B में रखी गई थीं.
आज का बलूचिस्तान भारत-पाकिस्तान से पहले ही आजाद था
1876 के समझौते के तहत ब्रिटिश सरकार का कलत के आंतरिक मामलों में कोई दखल नहीं था. यही वजह थी कि कलत के नवाब कभी दिल्ली के चैंबर ऑफ प्रिंसेज मे शामिल नहीं हुए वो खुद को ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं मानते थे लिहाजा उनकी रियासत बाकी रियासतों की तरह भारत या पाकिस्तान में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं थी. भारत-पाकिस्तान की आजादी से कुछ दिन पहले यानी 11 अगस्त 1947 को कलत की रियासत का पाकिस्तान के साथ समझौता हो गया जिसमें खुद जिन्ना ने उसकी आजादी का सम्मान करने पर सहमति दी. ब्रिटिश सरकार भी इस समझौते में शामिल थी, कलत रियासत यनी आज का बलूचिस्तान भारत-पाकिस्तान से पहले ही आजाद हो चुका था. कलत के खान ने डगलस येट्स फेल को अपना विदेश मंत्री नियुक्त कर दिया. और कराची में अपना उच्चायोग खोलकर अपना दूत भी नियुक्त कर दिया. कलत एक तरह से आजाद जरूर हो गया था लेकिन उसके खान को आशंका थी कि जिन्ना अपना वादा तोड़कर उनका रियासत पर कब्जा करने की कोशिश जरूर करेंगे. इस सोच के मद्देनजर उन्होंने भारत के साथ अपनी रियासत के विलय की कोशिश भी की और अपने कई दूत भी भेजे लेकिन उसका कोई फायदा उन्हें नहीं हो सका.
कहा ये भी जाता है कि कलत रियासत पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तान को ब्रिटिश सरकार ने ही प्रेरित किया था. दरअसल दूसरे विश्वयुद्ध के बाद वर्ल्ड ऑर्डर बदल चुका था. अब ब्रिटेन-अमेरिका का दुश्मन जर्मनी नहीं बल्कि कम्युनिस्ट देश सोवियत संघ था.
ब्रिटेन को आशंका थी कि मध्य एशिया में अफगानिस्तान के रास्ते सोवियत रूस कलत को भी अपने प्रभाव में ले सकता है और ऐसा होने पर ईरान के तेल की सप्लाई लाइन पर सोवित संघ का प्रभाव हो जाएगा.कलत जैसी कमजोर रियासत अपना बचाव नहीं कर सकती थी लिहाजा उसे पाकिस्तान में शामिल करवाया गया. कलत यानी बलूचिस्तान की भौगोलिक स्थिति ही उसकी आजादी की दुश्मन बन गई. और इसी बौगौलिक स्थिति के चलते अब पाकिस्तान के दोस्त चीन को बलूचिस्तान में दिलचस्पी पैदा हो चुकी है. बलूचिस्तान पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 43 फीसदी हिस्सा है जबकि उसकी आबादी पाकिस्तान की कुल आबादी का महज छह फीसदी ही है.
बलूचिस्तान की जमीनी सीमा ईरान और अफगानिस्तान से लगती है. अफगानिस्तान के जरिए सेंट्रल एशिया के देशों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है जबकि अरब सागर में मौजूद ग्वाादर बंदरगाह के जरिए मिडिल ईस्ट के देशों समेत अफ्रीकी देशों तक पहुंचना काफी आसान है. ग्वादर बंदगाह को पाकिस्तान के कराची बंदरगाह से भी ज्यादा सुरक्षित माना जाता है.
चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रेग्राम यानी BRI के तहत अपने प्रांत जिनजियांग से ग्वादर बंदरगाह तक चाइना-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर यानी CPEC बना रहा है. चीन को कोशिश है कि इस कॉरिडोर के जरिए वो ग्वादर बंदरगाह का उपयोग करके सड़क मार्ग अपने प्रॉडक्ट्स को बाकी देशों में तो भेजे ही साथ ही मिडिल ईस्ट के देशों से अपने एनर्जी इंपोर्ट के लिए भी सुरक्षित रास्ता तैयार कर ले.
दरअसल चीन अपने एनर्जी जरूरतों का ज्यादातर हिस्सा मिडिल ईस्ट के देशों से हिंद महासागर के जरिए आयात करता है लेकिन उस आशंका है कि अगर कभी भविष्य में भारत के साथ उसकी जंग होती है तो इंडियन नेवी हिंद महासागर में बड़ी आसानी से उसकी नाकेबंदी कर सकती है. लेकिन ग्वादर पोर्ट के जरिए उसे एक सुरक्षित रास्ता मिल सकता है. चीन अपने इस प्रोेजेक्ट में करोड़ों डॉलर्स की रकम खर्च कर रहा है लेकिन बलूचिस्तान के बागी उसके प्रोजेक्ट्स को अक्सर निशाना बनाते रहते हैं. ये वही लड़ाके हैं जो बलूचिस्तान का आजादी के लिए कई सालों से जंग लड़ रहे हैं. दरअसल पाकिस्तान ने अपनी ताकत के बल पर कलत रियासत पर कब्जा तो कर लिया लेकिन कलत की आवाम को पाकिस्तान की गुलामी मंजूर नहीं हुई. बलूचिस्तान के लोगों के बीच ये राय आम है कि पाकिस्तान की पंजाब डोमिनेटिंग आर्मी बलूचिस्तान के नेचुरल रिसोर्सेज का दोहन कर रही है.
बलूचिस्तान की बदकिस्मती का एक नया चैप्टर शुरू होगा..
बलूच ट्राइब खुद को पाकिस्तान से अलग मानती है और इसके कई ग्रुप्स लगातार हथियारबंद बगावत करते आ रहे हैं. इस बगावत को कुचलने के लिए पाकिस्तान आर्मी भी कई कठोर अभियान चला चुकी है. साल 2006 में तो जनरल परवेज मुशर्रफ के शासनकाल के दौरान पाकिस्तान आर्मी ने दिग्गज बलूच लीडर नवाब अकबर खान बुग्ती की हत्या कर दी थी. अकबर खान कोई आम अलगाववादी लीडर नहीं थे. वो बलूचिस्तान के गवर्नर रह चुके थे और बलूच ट्राइब के सबसे बड़े बुग्ती कबीले के लीडर थे. अकबर खान बुग्ती की मौत बलूचिस्तान की आजादी की जंग में एक नया चैप्टर जोड़ दिया. अलग-अलग ऑपरेशंस चला रहे कई बलोच हथियारबंद ग्रुप्स फिर एक साथ आ गए. अब तो इन ग्रुप्स ने पाकिस्तान तहरीके तालिबान के साथ मिला लिया है और पाकिस्तान आर्मी के लिए बलूचिस्तान को कंट्रोल कर पाना मुश्कि0ल हो रहा है. वहीं दूसरी ओर चीन भी पाकिस्तान पर बलूचिस्तान में हमलों पर लगाम कसने के लिए दबाव बना रहा है. कहा तो ये भी जा रहा है कि बात अगर पाकिस्तान से ना संभली तो अपने प्रोजेक्ट्स की सिक्योरिटी के लिए चीन बलूचिस्तान में अपनी सेना तक भेज सकता है. अगर अगर ऐसा होता है तो ये बलूचिस्तान की बदकिस्मती का एक नया चैप्टर होगा.
पाकिस्तान अक्सर भारत पर बलूचिस्तान में अशांति फैलाने का आरोप लगाता रहा है. हालांकि भारत में इस मसले पर अक्सर चुप्पी साधना ही बेहतर समझा है लेकिन साल 2016 में भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के लाल किले से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में बलुचिस्तान का जिक्र जरूर किया थे. मोदी के इस भाषण से पाकिस्तान में हलचल मच गई थी और बलूच लोगों को उम्मीद की एक किरण नजर आई थी. इसके बाद भारत के ऑल इंडिया रेडियो लने बलूच भाषा में कार्यक्रम भी शुरू कर दिए. ये वही ऑलइंडिया रेडियो है जिसका जिक्र हमने इस एपिसोड की शुरुआत में किया था जिसके एक प्रसारण ने साल 1948 में बलूचिस्तान की किस्मत लिख दी थी.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau