पाकिस्तान के इमरान सरकार (Imran Khan Government) के लिए गुरुवार का दिन कयामत का दिन होगा. इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने की बड़ी तैयारी हो चुकी है. कट्टरपंथी सुन्नी नेता फजलुर रहमान (Fazlur Rehman) अपनी पार्टी और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल (JUI-F) के लाखों समर्थक इस्लामाबाद कूच कर चुके हैं. इस कूच को आजादी मार्च (Azadi March) नाम दिया गया है और इसे विपक्ष का भी समर्थन हासिल है. फजलुर रहमान (Fazlur Rehman) किसी भी कीमत पर 15 महीने पुरानी इमरान सरकार का इस्तीफा चाहते हैं. आइए जानें कौन है फजलुर रहमान
बता दें मौलाना फजलुर रहमान पाकिस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी और सुन्नी कट्टरपंथी दल जमिअत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के चीफ हैं. उनके पिता खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के सीएम रह चुके हैं. वहां की सियासत में उनके परिवार का खासा प्रभाव रहा है. मौलाना पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में नेता विपक्ष भी रह चुके हैं.
- वे संसद में विदेश नीति पर स्टैंडिंग कमेटी के चीफ, कश्मीर कमेटी के मुखिया रह चुके हैं.
- वे तालिबान समर्थक माने जाते हैं लेकिन पिछले कुछ साल से उदारवादी होने का दावा करते हैं.
- इसके अलावा 2018 के चुनाव के बाद इमरान को सत्ता में आने से रोकने के लिए साझा पहल कर सुर्खियों में आए थे.
- पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की ओर से उम्मीदवार भी थे. सत्ता में नहीं रहते हुए भी नवाज शरीफ की सरकार ने मौलाना को केंद्रीय मंत्री का दर्जा दे रखा था.
- मौलाना फजलुर रहमान की जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल धर्म के आधार पर पाक की सबसे बड़ी पार्टी में से एक रही है.
- मौलाना ने पाकिस्तान की सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि ‘नकली सरकारें एक राष्ट्र का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती हैं.
- मौलाना फजलुर रहमान के बारे में कहा जाता है कि पाकिस्तान में सरकार किसी की भी बने, उसमें इनकी भूमिका जरूर होती है.
- उनके अफगान तालिबान जैसे गुटों के साथ-साथ पाकिस्तान की सेना से भी अच्छे संबंध हैं. मौलाना की सबसे बड़ी ताकत यही मानी जाती है.
- उनकी एक खासियत यह भी है कि वे चुनाव से पहले कई दलों का गठबंधन बनाने में कामयाब हो जाते हैं.
- 2018 के राष्ट्रीय चुनावों ने (JUI-F) को लगभग खत्म कर दिया गया और स्वयं फजलुर्रहमान की हार हुई और वह लंबे अंतराल के बाद नेशनल असेंबली में जगह नहीं बना सका.
- इसके साथ ही उसने कश्मीर कमेटी के चेयरमैन की अपनी लंबे समय से कब्जा की हुई स्थिति को भी खो दिया.
- फजलुर्रहमान सत्ता के साथ चिपकने वाले नेता माने जाते हैं और 1990 के दशक की शुरुआत से (JUI-F) लगभग सभी सरकारों का हिस्सा रहा है, चाहे वह किसी भी दल की हो.
फजलुर्रहमान के बागी तेवर
- (JUI-F) 2002-2007 तक बलूचिस्तान में पीएमएल-क्यू सरकार का भी हिस्सा थी, जब जनरल परवेज मुशर्रफ का सत्ता पर नियंत्रण था.
- उन दिनों छह कट्टर पंथी इस्लामिक धार्मिक दलों का गठबंधन, मुत्तहिदा मजलिस-ए-अमल (एमएमए), का नेतृत्व जेयूआई-एफ ही कर रही थी जिसका मूल ही मुशर्रफ का विरोध था.
- फजलुर्रहमान ‘लोकतंत्र और संविधान की खातिर’ पीएमएल-एन और पीपीपी का समर्थन करते हैं.
मुशर्रफ के खिलाफ सीक्रेट डिनर
- मुशर्रफ के शासन काल में भी मौलाना फजलुर रहमान हमेशा विरोध का झंडा बुलंद किए रहे.
- 2001 में अमेरिका में हुए 9/11 के हमले के बाद जब पाकिस्तान को मजबूरन तालिबान के खिलाफ अमेरिकी ऑपरेशन में साथ होना पड़ा तो मौलाना ने मुशर्रफ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
- जॉर्ज बुश के खिलाफ जेहाद का ऐलान कर पाकिस्तान के कई शहरों में तालिबान के पक्ष में रैलियां की. परवेज मुशर्रफ ने तब मौलाना को नजरबंद भी करवा दिया था.
- अमेरिकी केबल्स लीक से हुए खुलासों से ये बात भी सामने आई कि 2007 में मुशर्रफ की सत्ता को उखाड़ फेंकने के अपने प्लान के तहत मौलाना ने अमेरिकी राजदूत को सीक्रेट डिनर पर बुलाकर पीएम बनने के लिए अमेरिकी समर्थन मांगा था.
- डिनर में मौलाना ने ऑफर किया था कि तालिबान का समर्थन छोड़ वे पाकिस्तान का पीएम बनना चाहते हैं और अमेरिका की यात्रा करना चाहते हैं.
इमरान से रार
- 2018 के जिन चुनावों में बिना बहुमत हासिल किए सेना की रहम पर इमरान खान सत्ता में आ गए उन चुनावों को मौलाना फजलुर रहमान धांधली वाला चुनाव बताते हैं.
- चुनाव के समय से ही मौलाना ने इमरान खान के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.
- पहले साझा विपक्षी सरकार बनाने की कोशिश, फिर राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी गोलबंदी और अब आजादी मार्च का ऐलान...
- मौलाना एक तरफ जहां एक साल में पाकिस्तान में नासूर बन चुके आर्थिक संकट का कारण इमरान खान की नीतियों को बताते हैं वहीं नए सिरे से चुनाव कराकर नई सरकार के गठन की मांग पर अड़े हुए हैं.
मौलाना फजलुर्रहमान का धार्मिक कार्ड और तालिबान कनेक्शन
- मौलाना का धार्मिक कार्ड सबसे मजबूत रहा है.
- वे खुले तौर पर देश की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी चलाते हैं.
- कभी तालिबान के खिलाफ अमेरिकी अभियान को इस्लाम विरोधी बताकर वे जेहाद का ऐलान किया करते थे.
- पहली बार 1988 में जब बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनी थीं तो मौलाना ने एक महिला के देश की अगुवाई करने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. हालांकि बाद में बेनजीर भुट्टो से मुलाकात के बाद मौलाना ने अपना विरोध वापस ले लिया था.
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