चीन से एक बार फिर तवांग के बदले अक्साई चिन लेन-देन का मुद्दा उठा दिया है। ज़ाहिर है चीन के इस मुद्दे को एक बार फिर हवा देने से भारत-चीन संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिशों में दिक्कतें आने की संभावना है।
चीन के पूर्व वरिष्ठ डिप्लोमैट दाई बिंगुओ ने एक इंटरव्यू में कहा है कि, 'अगर भारत तवांग चीन को सौंप दे तो अक्साई चीन का कुछ हिस्सा भारत को दिया जा सकता है।'
दाई बिंगुओ चीन के पूर्व वरिष्ठ डिप्लोमेट दाई बिंगुओ है और 2013 में अपने पद से रिटायर हो चुके हैं लेकिन वो भारत चीन के बीच हुई सीमा विवाद पर होने वाली बैठकों में हमेशा अहम भूमिका निभाते रहे है।
दाई बिंगुओं ने एक दशक से भी ज़्यादा समय तक चीन का प्रतिनिधित्व किया है। ऐसे में उनका यह बयान चिंता पैदा करने वाला ज़रुर हैं। हालांकि इससे पहले भी चीन कई बार भारत को 'यह ऑफर' दे चुका है और हर बार भारत ने इसे गंभीरता से नहीं लिया है।
बावजूद इसके जब भारत और चीन के बीच रिश्ते एक नए मोड़ पर हैं जिसमें एक और जहां भारत-चीन के बीच विवादों की लंबी फेहरिस्त है और इन पर चीन के हमेश कड़े रुख का सामना भारत को करना पड़ता है तो वहीं दूसरी ओर भारत और चीन के बीच बढ़ती कारोबारी दोस्ती है।
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भारत चीन के लिए एक बड़ा बाज़ार बनता जा रहा है जहां से उसकी अर्थव्यवस्था को काफी बल मिलता है तो वहीं दूसरी ओर कठिन राजनैतिक मुद्दे भी हैं जिन्हें सुलझाने की कोशिश में भारत सरकार दशकों से लगी है।
इनमें से एक अह्म मुद्दा है अक्साई चिन...
अक्साई चिन सीमा विवाद आज का नहीं है, इस सीमा विवाद की जड़ अंग्रेज़ों के ज़माने से हैं। विवाद का बीज 1834 में पड़ गया था। भारत का शुरू से मानना है कि जम्मू-कश्मीर की 41180 वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन ने गैर कानूनी कब्ज़ा किया हुआ है। इसमें 5180 वर्ग किलोमीटर अक्साई चीन का लद्दाखी क्षेत्र है।
यह इलाका भारत को सिल्क रुट से जोड़ता था। लेकिन यहां ऐसे भौगोलिक हालात हैं कि इंसान का रह पाना बेहद मुश्किल है।
बावजूद इसके यह विवाद का बड़ा कारण है। दरअसल एक और यह इलाका जहां जम्मू-कश्मीर से लगा हुआ है तो वहीं दूसरी और यह चीन के जिंगजियांग प्रांत से भी सटा हुआ है। अक्साई चिन से तिब्बत हाईवे होकर गुज़रता है जो चीन का है। इसीलिए आजकल चीन का इस पर कब्ज़ा है।
मैक्मोहन लाइन
वहीं दूसरी और दोनों देशों के बीच दूसरा सीमा विवाद है अरुणाचल प्रदेश का... यह मुद्दा एक नहीं बल्कि कई लकीरों में उलझा हुआ है। इनमें से एक लकीर है मैकमोहन लाइन।
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1913-14 में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधि शिमला में मिले और तीनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच सरहद मुद्दों पर बातें हुईं। ब्रिटिश अफसर हेनरी मैकमोहन ने समझौते के लिए एक नक्शा पेश किया।
जो तिब्बत और भारत की पूर्वी सरहद तय कर रहा था। चीन ने यह समझौता मंजूर नहीं किया। मैकमोहन लाइन का आधार हिमालय था, हिमालय के दक्षिणी हिस्से भारत से जोड़े गए थे।
ब्रिटिश सरकार चीन के साथ सीमा विवाद को सुलझा नहीं पाई और 1947 में भारत की आजादी के बाद सरकार ने जॉनसन लाइन को ही आधिकारिक सरहद माना जिसमें अक्साई चिन भारत का हिस्सा था।
लेकिन चीन ने इस 1950-57 के दौरान जिनजियांग और पश्चिमी तिब्बत को जोड़ने के लिए इस हिस्से से गुज़रता हुआ 1200 किलोमीटर लंबा हाइवे बना डाला। 1957 तक तो भारत को ये तक पता नहीं चल सका कि चीन ने अक्साई चिन के इसी विवादित हिस्से में सड़क तक बना ली है।
पहली बार यह बात सामने तब आई जब 1958 में चीन के नक्शे में इस सड़क को दिखाया गया।
तवांग
मैकमोहन लाइन के इस पार अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा था। अरुणाचल प्रदेश में 3000 मीटर ऊंचाई पर बसे तवांग में मुश्किल से 10,000 लोग रहते हैं। यह शहर भारत चीन सीमा से 40 किलोमीटर दूर है और बौद्ध मठ के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है।
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तवांग पर भारत और चीन के बीच 2005 में एक अहम बैठक हुई थी और इस सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बीच का रास्ता निकाला गया था। समझौते के तह्त दोनों देशों मुद्दे को सुलझाने के लिए एक यहां के लोगों की इच्छा के मुताबिक करने के लिए राजी हो गए थे।
तब भारत को लगा कि क्योंकि इलाके में (तवांग) भारत समर्थक आबादी रहती है और वह कभी भी तिब्बत (चीन) में नहीं शामिल होना चाहेंगे, इसलिए तवांग को लेकर भारत को कोई सौदेबाजी नहीं करनी होगी।
क्यों चीन इस हिस्से पर अपना अधिकार चाहता है-
चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत से अलग करने वाली लाइन मैकमोहन को नहीं मानता है। भारत-चीन के बीच पिछले 32 सालों में कई बार बैठकें हो चुकी हैं और सभी बैठकों में चीन तवांग को अपना हिस्सा बताता रहा है।
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तवांग को चीन दक्षिणी तिब्बत कहता है और 15वीं में यहां तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा का जन्म हुआ था। तवांग सामरिक नजरिये से भी अहम है। बेहद खुबसूरत यह शहर मठ की तिब्बत और भारत के बौद्धों के लिए खासी अहमियत रखता है।
1962 भारत-चीन युद्ध में भी इस इलाके के लिए लड़ाई लड़ी गई थी। तवांग पर चीन के अधिकार से उसकी तिब्बत पर पकड़ और मजबूत होगी। इसीलिए चीन यह ख़्वाब पाले बैठा है कि भारत तवांग को चीन को दे देगा और इसके बदले वो भारत को अक्साई चीन का कुछ हिस्सा सौंप कर चुप करा लेगा।
लेकिन सवाल यहां यह उठता है कि वैश्विक आर्थिक माहौल को बेहतर बनाने की दिशा में जब दोनों देश एक दूसरे के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा के साथ और एक दूसरे के बाज़ारों को भी आकर्षित कर रहे हैं, ऐसे में क्या इस तरह के बयान दोनों देशों की कोशिशों में खलल नहीं डालेंगे।
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Source : Shivani Bansal