दुनिया के सबसे विकसित देशों में से एक फ्रांस पिछले कुछ दिनों से धधक रहा है. फ्रांस की आवाम का एक हिस्सा सड़कों पर उतर आया है इनमें ज्यादातर फ्रांस में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हैं. देश में इमरजेंसी जैसे हालात है. उपद्रवियों ने सालों पुरानी लाइब्रेरी तक फूंक दी है. फ्रांस में ये दंगे 17 साल के एक किशोर नाहेल की मौत के बाद भड़के हैं, जिसे एक पुलिस अधिकारी ने सड़क पर गोली मार दी थी. दरअसल नाहेल अल्जीरिया मूल के फ्रांस के अल्पसंख्यक समुदाय का एक लड़का था. उसके पिता के बारे में कोई जानकारी नहीं है उसकी मां उसे अकेले ही पाला था. नाहेल एक डिलीवरी बॉय का काम करता था. नाहेल की मां के मुताबिक उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था, उसने इलेक्ट्रिशियन बनने के लिए कॉलेज में एडमिशन लिया था, लेकिन उसकी अटेंडेंस का रिकॉर्ड खराब था. उसकी मां के मुताबिक 27 जून को नाहेल ने जब ट्रैफिक पुलिस की चेंकिंग से बचने की कोशिश की तो उसे गोली मार दी गई. नाहेल की मौत ने पूरे फ्रांस को हिला दिया है. अब सवाल उठता है कि आखिरकार पुलिस ने उसे गोली क्यों मारी.
पुलिस के मुताबिक नाहेल को इससे पहले भी कई बार जब रुकने के लिए कहा जाता था तब भी वो नहीं रुकता था. 17 साल की उम्र में उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था. इस बार जब वो पोलेंड के नंबर वाली गाड़ी से गुजर रहा था और जब उसे रुकने के लिए कहा गया तो वो नहीं रुका और उसने पुलिस अधिकारी को कुचलने की कोशिश की. नतीजतन उसे गोली मारना पड़ा जो कि फ्रांस के नियमों के हिसाब से सही है. पुलिस के मुताबिक उसे पिछले हफ्ते एक जुवेनाइल मामले में कोर्ट में पेश भी होना था लेकिन वो नहीं हुआ था पुलिस के बयान के मुताबिक उसके अधिकारी ने कुछ भी गलत नहीं किया था लेकन एक वीडियो ने पुलिस की कहानी की धज्जियां उड़ा दीं.
राष्ट्रपति ने घटना की निंदा की
दरअसल किसी इस घटना के वक्त उस सड़क से गुजर रहे कुछ लोगों ने इस वाकिए का वीडियो बना लिया जिससे साफ पता चलता है कि नाहेल की गाड़ी को रोककर उसे पॉइंट ब्लैंक से गोली मारी गई थी. इन वीडियोज के सामने आने के बाद तो मानो फ्रांस में हड़कंप ही मच गया. गोली मारने वाले पुलिस अधिरकारी को हिरासत में ले लिया गया और खुद फ्रांस की प्रेजीडेंट एमेन्युल अल मैक्रो ने इस घटना की निंदा की, लेकिन तब तक इस वाकिेये से पैदा हुआ गुस्सा सड़कों पर पहुंच चुका था. फ्रांस मे गृहयुद्ध जैसे हालात हैं, 1,000 से ज्यादा लोग हिरासत में लिए जा चुके हैं. मैक्रों को ब्रसेल्स में चल रही एक बड़ी इंटरनेशनल मीटिंग को बीच में छोड़कर वापस आना पड़ा है. और करीब 50,00 के आसपास की संख्या में सुरक्षाबलों को तैनात किया गया है.
फ्रांस मे उपद्रव करने वालों में ज्यादातर वो लोग हैं जो फ्रांस में अफ्रीकी-अरब देशों से रिफ्यूजी बन कर आए हैं. ईजिप्ट, अल्जीरिया, ट्यूनिशिया, जाम्बिया जैसे कई अफ्रीकी देश फ्रांस का उपनिवेश रहे हैं. इन देशों ने से ज्यादातर मुल्क लंबे वक्त से गृह युद्ध जैसे हालात से जूझ रहे हैं. ऐसे में इन देशों से बहुत लोग रिफ्यूजी के तौर पर फ्रांस में रह रहे हैं. इनमें से ज्यादातर लोग इस्लाम मजहब को मानने वाले हैं. इन लोगों का आरोप हैं कि वो पिछले कई सालों से फ्रांस में भेदभाव का सामना कर रहे हैं. उन्हें उनके मजहब और नस्ल के चलते शक की निगाहों से देखा जाता है और पुलिस उन पर कड़ी कार्रवाई करते वक्त इनके नागरिक अधिकारों का ख्याल नहीं रखती है.
17 साल का नाहेल भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखता था और उसकी मौत कई सालों से दबे गुस्से को चिंगारी दिखा दी है. उपद्रवियों का आरोप है कि नाहेल को अरब मूल का होने की वजह से गोली मारी गई थी. साल 2017 में मानवाधिकार एक्टिविस्ट्स की ओर से एक स्टडी की गई थी. जिसके मुताबिक फ्रांस में सड़क पर किसी श्वेत फ्रेंच की तुलना में अश्वेत या अरब मूल के व्यक्ति को पुलिस द्वारा रोके जाने की संभावना 20 गुना ज्यादा होती है. एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी प्रतिष्ठित संस्था भी फ्रांस की पुलिस पर नस्ल के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगा चुकी है.
2005 में फ्रांस में इमरजेंसी लगाई गई थी
पिछले दिनों फ्रांस में रिटायरमेंट की उम्र को लेकर हुए सरकार के फैसले के बाद भी जमकर विरोध प्रदर्शन हुए थे और उस वक्त फ्रांस की पुलिस पर प्रदर्शनकारियों पर जरूरत से ज्यादा सख्ती बरतने के आरोप लगे थे. लेकिन इस बार के दंगे साल 2005 के उन दंगों की याद दिलाते हैं फ्रांस में आपातकाल लगाना पड़ा था. उस वक्त पुतिस से बचने के लिए तीन टीएनएजर लड़के एक बिजली घर में छुप गए थे जहां करंट लगने से दो लड़कों की मौत हो गई थी. बताया गया था कि वो लड़के बेकसूर थे लेकिन पुलिस के खौफ ने उन्हें बिजलीघर लमें छुपने के लिए मजबूर कर दिया था.
उस वक्त भी फ्रांस में बहुत बड़े दंगे भड़के थे जो करीब तीन सप्ताह तक चले थे. फ्रांस के करीब 30 शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा था. इस घटना के बाद फ्रांस में पुलिस सुधारों की बात भी चली थी. अब फ्रांस के प्रेजीडेंट मैक्रों की कोशिश है कि उनके मुल्क में साल 2005 जैसे हालात दोबारा पैदा ना हों. इन दंगो से फ्रांस में दक्षिणपंथी राजनीति को भी बल मिलने की संभावना है. सेकुलरिस्म फ्रांस के संविधान का अहम हिस्सा है लेकिन पिछले कुछ सालों में फ्रांस की राजनीति में दक्षिणपंथी पार्टियों का आधार भी मजबूत हुआ है. पिछले साल हुए फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में राइट विंग की केंडीडेट मरीन ली पेन 41.45 फीसदी वोट लाने में कामयाब हुई थीं. जाहिर हैं, अगर ये दंगे जल्द नहीं रुके तो फ्रांस में काउंटर पोलराइजेशन को भी मदद मिल सकती है और अगर ऐसा होता हैं फिर 17 साल के नाहेल की मौत फ्रांस की राजनीति को बदल कर रख देगी.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau