वो चीन जो दुनिया के मंच पर अमेरिका को हटा कर खुद को ऐसी सुपरपावर के तौर पर खड़ा करना चाहता है जिसकी मर्जी के बिना दुनिया में कोई बड़ा फैसला ना हो सके.लेकिन भारत के साथ अमेरिका की नजदीकी ने चीन के इस गेम को बिगाड़ दिया है और यही वजह है कि चीन को पीएम मोदी का ये अमेरिका दौरा किसी भी सूरत में नहीं सुहा रहा है. इस वीडिय़ो में हम आपको बताएंगे कि कैसे मोदी की ये राजकीय यात्रा दुनिया की राजनीति में गेम चेंजर साबित हो सकती है लेकिन पहले हम आपको बताते हैं कि कैसे चीन कैसे भारत अमेरिका के रिश्तों में आई इस गर्माहट को देखकर तिलमिला गया है.
मोदी की अमेरिका यात्रा पर चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख लिखकर भारत को अमेरिका के जाल में ना फंसने की चेतावनी दी है. अपने संपादकीय में ग्लोबल टाइम्स ने अमेरिका को धोखेबाज करार देते हुए भारत को सतर्क रहने की हिदायत दी है. इतना ही नहीं, ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि कि चीन और रूस का मुकाबला करने के लिए अमेरिका भारत का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहा है. लेकिन सवाल ये हैं कि अगर भारत अमेरिका के करीब जा रहा है तो चीन को वो अपना दुश्मन क्यों नजर आ रहा है.
दरअसल भारत ही वो देश है जिसमें चीन को टक्कर देना का माद्दा है. चीन ने जिस तरह से साल 2020 में भारत के लद्दाख सेक्टर में घुसपैठ करके जमीन पर कब्जा जमाना चाहा तो इंडियन आर्मी ने उसे करारा जवाब दिया.
गलवान घाटी में तो दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी झड़प भी हुई जिसमें भारत के 20जवानों ने शहादत भी दी लेकिन भारत झुका नहीं. मौजूदा वक्त में भी सरहद पर भारत के करीब 50,000 जवान चीन को तगड़ा जवाब देने के लिए तैनात हैं. इसके अलावा भारत अमेरिका के उस क्वाड संगठन का भी सदस्य है जिसे चीन अपने खिलाफ मानता है. चीन का मानना है कि अमेरिका ने क्वाड को उसे घेरने के लिए ठीक वैसे ही तैयार किया है जैसे यूरोप में रूस को घेरने के लिए नाटो बनाया गया था. इसके अलावा व्यापार भी एक ऐसा मसला है जिसे लेकर चीन को भारत से डर बना हुआ है.
वर्तमान में चीन दुनिया की फैक्ट्री है. चीन की इकॉनोमी की सबसे बड़ी ताकत उसकी प्रॉडक्शन पावर है. चीन में मौजूद सस्ते मजदूरों के चलते दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियों अपने प्रॉडक्शन को चीन से ही आउटसोर्स करती हैं लेकिन अमेरिका के साथ चीन के ताल्लुकात बिगड़ने के बाद ये तस्वीर बदल सकती है और भारत के पास मजदूरों की ताकत मौजूद है लिहाजा अगर अमेरिका ने प्रॉडक्शन के लिए अपनी कंपनियों को भारत को रूख करने का इशारा कर दिया तो चीन के लिए अपनी इकॉनोमी की रफ्तार को बनाए रखना बेहद मुश्किल हो जाएगा.
यही नहीं, चीन को एक बड़ा डर ये भी है कि अगर भारत और अमेरिका के बीच रक्षा हथियारों की बड़ी डील्स होनी शुरू हो जाएंगी तो भारत की फौजों के पास अच्छी क्वालिटी के ऐसे हथियार आ जाएंगे जिनका सामना करने में चीन के फौज को परेशानी होगी. गौर करने वाली बात ये है कि भारत अपने बड़े हथियारों का 85 फीसदी हिस्सा रूस से ही खरीदता है. लेकिन एक बार अगर भारत की रूस पर निर्भरता कम हो गई तो रूस के जरिए भारत परह दबाब डलवाने के चीनी के इरादों पर बी पानी फिर सकता है. पिछले कुछ सालों में रूस के साथ चीन की दोस्ती काफी ज्यादा बढ़ गई है और यूक्रेन युद्ध में तो चीन ने खुलकर रूस का साथ दिया है.
भारत और अमेरिका के साथ आने पर प्रशांत महासागर की राजनीति पर भी बड़ा असर पड़ेगा. इस इलाके के जापान, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे कई देशों के साथ चीन का तनाव चल रहा है. और अगर भारत भी खुलकर चीन के खिलाफ हो गया तो फिर हिंद महासागर के इलाके में भी चीन को घेरना अमेरिका के लिए आसान हो जाएगा.
चीन अपनी ऊर्जा जरूरत का 80 फीसदी आयात हिंद महासागर के इलाके से ही करता है.
अगर भारत और अमेरिका के बीच आगे चलकर रणनीतिक गठबंधन बन जाता है तो चीन के बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है क्योंकि ऐसा होने पर हिंद महासागर मे चीन की सप्लाई पर शिकंजा कसा जा सकता है. अमेरिका के साथ भारत की नजदीकी उसे क्लीन एनर्जी के मामले में भी काफी आगे ले जा सकती है. क्रिटिकल मिनरल्स की माइनिंग और प्रौसेसिंग में अमेरिकन टेक्नोलॉजी भारत के लिए अहम भूमिका निभा सकती है. टेलीकॉम और सेमीकंडक्टर्स जैसे मसलों पर चीन खुद को दुनिया का सबसे पावरपुल देश बनाना चाहता है लेकिन भारत को अगर अमेरिकी टेक्नोलॉजी का साथ मिलता है तो इस क्षेत्र में चीन को तगड़ी चुनौती मिल सकती है.
अमेरिकी प्रेजीडेंट बाइडन भी जानते हैं कि मोदी के अमेरिका दौरे से सबसे ज्यादा परेशानी चीन को ह रही है और उन्होंने इस मौके पर चीन के प्रेजीटेंड शी जिनपिंग को तानाशाह करार देते हुए बड़ा हमला किया. मोदी के दौरे के दौरान बाइडन का ये बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि इस बयान के जरिए अमेरिका चीन को ये संदेश देना चाहता है कि चीन में एक तानाशाही शासन है जबकि मोदी एक लोकतात्रिक देश की नुमाइंदगी करते हैं. अमेरिका दुनिया का पहला लोकतांत्रिक देश है जबकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है.
जाहिर है, बाइडन दुनिया को भारत और चीन के बीच का फर्क समझाना चाहते थे. अब ये देखना होगा कि भारत-अमेरिका की दोस्ती में नए रिश्ते का ये आगाज आगे चलकर कहां तक पहुंचता है और इसके जबाव में चीन क्या कदम उठाता है.
रिपोर्ट- सुमित कुमार दुबे
Source : News Nation Bureau