आज के दिन बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के हीरो राष्ट्रपति मुजीब उर-रहमान का तख्तापलट हो गया था. यह बात 1975 की है. 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्र होकर बांग्लादेश बना था. इसकी अगुवाई मुजीब ने की थी. शुरूआत में सबकुछ ठीक था मगर बाद में अस्थिरता का दौर शुरू हो गया. सरकार की छवि धूमिल होने लगी.आंतरिक समस्याएं उत्पन्न होने लगी. प्रशासनिक अक्षमताओं, आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हो गया. इसके साथ सैन्य और नागरिक प्रशासन के बीच संघर्ष ने स्थिति को और भी मुश्किल बना डाला.
ये भी पढे़ं: रक्षाबंधन पर आम जनता को सस्ते में मिलेंगे लग्जरी फ्लैट, DDA ने दी बड़ी राहत, ये है स्कीम
14 अगस्त को पाकिस्तानी सेना ने अचानक राष्ट्रपति मुजीब उर-रहमान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्हें इस बात की भनक तक नहीं लगी. सैनिकों ने राष्ट्रपति को हटाने के साथ नए प्रशासन की स्थापना का निर्णय लिया. राष्ट्रपति मुजीब उर-रहमान के साथ उनकी बेटों और पत्नी की हत्या कर दी गई और देश में नए नेतृत्व की शुरुआत हो गई. घर में मौजूद 11 सदस्यों को मार दिया गया. उस समय शेख हसीना जर्मनी में अपने पति के साथ रह रही थीं. तब भारत में इंदिरा गांधी की सरकार थी. उस समय हमारी सरकार ने शेख हसीना और उनके पति को शरण थी. वह दिल्ली में विशेष सुरक्षा के बीच रहा करती थीं. उनके पति एक वैज्ञानिक थे. वे भारत में नौकरी करने लगे थे.
बांग्लादेश में लंबे समय तक अस्थिरता दौर जारी रहा
इस तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की राजनीति में अराजकता फैल गई. सैन्य अधिकारियों ने देश की सत्ता पर नियंत्रण कायम कर लिया. नई सरकार ने तुरंत प्रशासन में सुधार की उम्मीइ जताई, मगर इसके परिणाम स्वरूप बांग्लादेश में लंबे समय तक अस्थिरता दौर जारी रहा.
राष्ट्रपति मुजीब उर-रहमान का तख्तापलट बांग्लादेश के इतिहास में एक बड़ा अध्याय था. इसने केवल बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित किया. दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन की भी बिगड़ा. इस घटनाक्रम के बाद बांग्लादेश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं और नागरिक अधिकार लंबे समय तक चुनौतीपूर्ण स्थिति में रहे.