Chaitra Navratri 4 Day 2024: मां कूष्मांडा नवरात्रि के चौथे दिन की देवी हैं. कुछ धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, कद्दू को मां कुष्मांडा का प्रतीक माना जाता है. कद्दू "कुष्मांड" शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है "ब्रह्मांड का अंडा". मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की आदिदेवी माना जाता है, जिन्होंने ब्रह्मांड को अपने अंडे से जन्म दिया था. इसलिए, कद्दू को मां कुष्मांडा को बलि चढ़ाने का प्रतीकात्मक महत्व है. यह बलि मां के प्रति भक्ति, कृतज्ञता और समर्पण का प्रतीक है. कद्दू बलि चढ़ाने से मां प्रसन्न होती हैं और भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. मां कूष्मांडा की पूजा करते समय, हमें उनके दयालु और करुणामय स्वरूप को याद रखना चाहिए और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए.
कद्दू की बलि का धार्मिक महत्व:
प्रतीकात्मक बलि
कद्दू को अहंकार और अज्ञानता का प्रतीक माना जाता है. बलि देने का प्रतीकात्मक अर्थ है कि हमें अपने अहंकार और अज्ञानता का त्याग करना चाहिए. कद्दू को काटकर, हम अपनी नकारात्मक प्रवृत्तियों को त्यागने और मां कूष्मांडा के प्रति समर्पण करने का संकल्प लेते हैं.
सात्विक भोग
कुछ लोगों का मानना है कि कद्दू मां कूष्मांडा का पसंदीदा भोजन है. इसलिए, वे इसे भोग के रूप में अर्पित करते हैं. कद्दू सात्विक भोजन है और नवरात्रि के दौरान सात्विक भोजन का सेवन करना शुभ माना जाता है.
कृषि का सम्मान
कद्दू एक फल है जो भारत में आसानी से उपलब्ध है. कद्दू की बलि चढ़ाकर, हम किसानों और कृषि के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हैं.
यह परंपरा धार्मिक ग्रंथों में वर्णित नहीं है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार भी नहीं है. लेकिन, कुछ लोगों का मानना है कि मां कूष्मांडा को कद्दू की बलि चढ़ाने से मां प्रसन्न होती हैं और मनोकामनाएं पूरी करती हैं. नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. पापों का नाश होता है. धन-धान्य की वृद्धि होती है.
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिंदू धर्म में किसी भी जीव की बलि देना वर्जित है. मां दुर्गा सभी जीवों की रक्षा करने वाली देवी हैं, और वे कभी भी किसी जीव की हत्या को स्वीकार नहीं करेंगी. आजकल, ज्यादातर लोग कद्दू की प्रतीकात्मक बलि चढ़ाते हैं, जैसे कि कद्दू का हलवा बनाकर मां को भोग लगाना. आप नवरात्रि के दौरान नॉनवेज भोजन, शराब, और अश्लील शब्दों का सेवन न करें. इसके बजाय, आप उपवास रख सकते हैं और सात्विक भोजन का सेवन कर सकते हैं. नवरात्रि आध्यात्मिकता और आत्म-शुद्धि का समय है. मां कुष्मांडा की पूजा करते समय, हमें उनके दयालु और करुणामय स्वरूप को याद रखना चाहिए और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau